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सूर्यकुमार पाण्डेय को मिला ‘निशंक साहित्य’ सम्मान

डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र निशंक की 106वीं जयन्ती पर आयोजित सम्मान समारोह-2024
लखनऊ। सोमवार को डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र निशंक की 106वीं जयन्ती के अवसर पर निराला सभागार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सभागार में वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता, विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्या विन्दु सिंह की उपस्थिति में डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र निशंक साहित्य सम्मान-2024 से सुप्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकुमार पाण्डेय, लखनऊ को तथा विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान-2024 से श्रीमती उषा सक्सेना, कानपुर को सम्मानित करते हुए प्रत्येक को ग्यारह-ग्यारह हजार रुपये की धनराशि, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न व प्रशस्ति-पत्र भेंट किया गया। इस अवसर पर श्रीमती नीलम चतुवेर्दी एवं सुश्री दिशा जगूड़ी द्वारा डॉ. निशंक जी की कविता लखनऊ-नगर पर निर्मित वृत्तचित्र की प्रस्तुति की गयी। डॉ. निशंक द्वारा रचित वाणी वन्दना की सस्वर प्रस्तुति श्रीमती रूपा पाण्डेय सतरूपा द्वारा की गयी।सभाअध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि का उत्तरीय एवं उपहार भेंट कर स्वागत, संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कमलाशंकर त्रिपाठी एवं श्री योगीन्द्र द्विवेदी द्वारा किया गया। अभ्यागतों का स्वागत डॉ. निशंक संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कमलाशंकर त्रिपाठी द्वारा किया गया। डॉ. निशंक साहित्य सम्मान से सम्मानित सूर्यकुमार पाण्डेय ने कहा डॉ. निशंक जी से बहुत कुछ सीखने को मिला। उनका व्यक्तित्व काफी सरल एवं सौम्य था। छन्द, सवैया, कवित्त, घनाक्षरी आदि के वे एक हस्ताक्षर कवि थे। उन्होंने कविता मैंने तो मधुबन मांगा था, तुमने तो पतझड़ दे डाला सुनाते हुए कहा हम कवियों ने उनसे बहुत कुछ सीखा, पढ़ा व जाना। पाण्डेय जी ने डॉ. निशंक जी व पं. श्रीनारायण चतुवेर्दी जी के मध्य बीते हुए कुछ क्षणों के रोचक तथ्यों को भी सुनाया। पाण्डेय जी ने अपनी बाल रचित रचना कान कुछ के पंखे जैसे होते, हुए कुछ के होते छोटे कान सुनायी।
विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान से सम्मानित उषा सक्सेना ने कहा कि मेरी मुलाकात निशंक जी से बाल्यकाल में हुई। डॉ. निशंक जी का व्यक्तित्व काफी विराट था। उन्होंने बताया कि उनकी कविताएं सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थ्ो। उनकी सरलता सभी को आकर्षित कर लेती थी। डॉ. निशंक जी जब बोलते थे तब हवा रुक जाती थी, कोयले कूकना बंद कर देती थी। वे मधुर गाते थे, अच्छा लिखते थे। वे हमेशा अमर रहेंगे। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित पद्मश्री डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने कहा डॉ. निशंक साहित्य जगत के महान विभूति हंै। हमें अपनी पीढ़ियों को अपने अनुभव व विरासत देना चाहिए। गीत लिखने की प्रेरणा मुझे डॉ. निशंक जी से ही मिली। माता-पिता की विरासत को बढ़ाने में संतानों को अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री गोपाल चतुवेर्दी ने कहा डॉ. निशंक जी हास्य व्यंग्य कविताएं भी लिखा करते थे। श्री सूर्य कुमार पाण्डेय जी अखिल भारतीय कवियों में गिने जाते हैं। डॉ. निशंक जी ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ी है।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह ने कहा डॉ. निशंक छन्दबद्ध कविताएं लिखने के कारण वे जीवनभर अनुशासित रहे। वे साहित्य जगत में एक मशाल के रूप में जाने जाते रहेंगे। वे साहित्य जगत को हमेशा रोशन करते रहेंगे। वे छन्द विधा के बादशाह थे। छन्दकार के रूप में वे सदैव अनुशासित रहे। वे जिन वसूलों को मानते थे उन वसूलों पर जीवन भर चलते रहे। उदय प्रताप ने अपनी शरदपूर्णिमा और चांदनी पर लिखी कविता सुनाई। समारोह का संचालन डॉ. योगेश ने किया। धन्यवाद प्रो. उषा सिन्हा ने दिया।

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