गुजरात हाई कोर्ट के मास्क न लगाने वाले आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बगैर मास्क के पकड़े गये लोगों को सामुदायिक सेवा के लिये कोविड-19 मरीज देखभाल केन्द्रों में भेजने के गुजरात उच्च न्यायालय के निर्देश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने उच्च न्यायालय के बुधवार के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की इस दलील का संज्ञान लिया कि किसी कानूनी अधिकार के बगैर ही ये निर्देश दिये गये हें और न्यायिक तरीके से इन पर अमल करना मुश्किल है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश बहुत ही सख्त है और इसका उल्लंघन करने वालों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। शीर्ष अदालत ने इससे सहमति व्यक्त की लेकिन केन्द्र और राज्य के कोविड-19 से सुरक्षा के बारे में दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन नहीं होने पर नाराजगी जताई।

न्यायालय ने कहा कि राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाये रखने संबंधी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन हो। शीर्ष अदालत ने राज्य के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दिशा निर्देशों पर सख्ती से अमल सुनिश्चित करने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारियों को इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माना लगाने सहित दंडात्मक कार्वाई करनी चाहिए।

न्यायालय ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने वाले विशाल अवतनी को नोटिस जारी किया और गुजरात सरकार की अपील सुनवाई के लिये जनवरी के दूसरे सप्ताह में सूचीबद्ध कर दी। मामले की सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि गुजरात में चेहरे पर मास्क लगाने के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करने वालों पर एक हजार रूपए का जुर्माना लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार के दिशा निर्देशों पर प्राधिकारियों को अनिवार्यता के साथ सख्ती से अमल करना होगा लेकिन उच्च न्यायालय का निर्देश ज्यादी ही सख्त है।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में सामुदायिक सेवा के सिद्धांत के आधार पर राज्य सरकार को कई निर्देश दिये थे। न्यायालय ने कहा था कि सामुदायिक सेवा का आदेश मास्क लगाने के निर्देश का उल्लंघन करने वाले सभी व्यक्तियों पर समान रूप से बगैर किसी भेदभाव के लागू करना होगा। उच्च न्यायालय ने इस तरह की घटनाओं का व्यापक प्रचार करने पर जोर दिया था ताकि इसका जनता पर अपेक्षित असर पड़ सके।

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