सुब्रत रॉय : छोटे-छोटे कदमों से तय किया शिखर तक का सफर, 2000 रूपये से शुरू किया था बिजनेस

नयी दिल्ली। सुब्रत रॉय बेशक आज देश के उद्योग क्षेत्र का जाना-पहचाना नाम है, लेकिन वह यहां काफी संघर्ष के बाद पहुंचे थे। उन्होंने छोटे-छोटे कदम के साथ शिखर तक पहुंचने का सफर तय किया।

रॉय ने 1978 में दो हजार रुपये उधार लेकर अपना सफर शुरू किया और तीन दशक तक उसके आगे बढ़ाया। प्रत्येक निवेशक के 10-20 रुपये के न्यूनतम योगदान से हजारों करोड़ रुपये का कोष बनाया … लेकिन विवादों में घिरने के बाद यह ढहने लगा। लंबे समय से बीमार सुब्रत रॉय का मंगलवार को मुंबई में निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे।

रॉय को अपने समूह की कंपनियों के संबंध में कई नियामकीय तथा कानूनी लड़ाइयों से जूझना पड़ा। यह वाकया मशहूर है जब रॉय से करोड़ों निवेशकों से एकत्र किए गए भुगतान तथा रिटर्न के साथ उन्हें किए गए पुनर्भुगतान का सबूत मांगा गया, तो उन्होंने 31,000 से अधिक गत्ते के डिब्बों में दस्तावेजों को 128 ट्रकों में मुंबई में पूंजी बाजार नियामक सेबी के मुख्यालय भेज दिया था।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अधिकारियों को ढेरों निवेशक कागजातों को छांटने तथा सत्यापित करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसके बाद आखिरकार सेबी ने इन दस्तावेजों को किराये पर लिए एक बड़े गोदाम में रखा। इस गोदाम में स्वचालित रोबोटिक सिस्टम और 32 लाख क्यूबिक फीट के सुरक्षित वॉल्ट थे।

सेबी की परेशानियां यही नहीं थमीं। इसके बाद नियामक को मामले में 20 करोड़ स्कैन किए गए पन्नों के डेटाबेस के लिए इलेक्ट्रॉनिक डेटा भंडारण तथा वेब एक्सेस सेवाएं प्रदान करने के लिए एक सर्वर होस्टिंग विक्रेता को नियुक्त करना पड़ा। सहारा समूह के खिलाफ निवेशकों के एक समूह और रोशन लाल नामक एक व्यक्ति की शिकायत के बाद यह मामला खड़ा हुआ, जिसने धीरे-धीरे तूल पकड़ ली। इसका असर सहारा समूह पर दिखने लगा और उसकी साख कमजोर पड़ने लगी।

समूह ने कमजोर पड़ने से पहले वित्त सेवाएं, रियल एस्टेट, विमानन, लंदन तथा न्यूयॉर्क में प्रमुख होटल, एक आईपीएल क्रिकेट टीम तथा फॉर्मूला वन रेसिंग टीम के साथ-साथ देश की क्रिकेट और हॉकी टीमों के लिए प्रायोजक की भूमिका निभाई।

सहारा की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक थी महाराष्ट्र में एक पहाड़ी टाउनशिप एंबी वैली जिसमें क्रिकेट और फिल्मों से लेकर राजनीतिक क्षेत्र की कई महशहूर हस्तियों के विला हैं, जिनमें से कई सुब्रत रॉय के दोस्त थे।

अकसर यह आरोप लगाया गया कि सहारा ने जो हजारों करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे, वे वास्तव में कई राजनेताओं, क्रिकेटरों और बॉलीवुड सितारों के थे लेकिन इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला।

एंबी वैली समूह की रियल एस्टेट शाखा सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड द्वारा शुरू की गई कई परियोजनाओं में से एक थी और यह 2009 में इस कंपनी का ही प्रस्तावित आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) था जिसके कारण नियामक सेबी ने जांच शुरू की थी।

सेबी जब आईपीओ के लिए दाखिल दस्तावेजों पर गौर रहा थी तो उसे 25 दिसंबर, 2009 में प्रोफेशनल ग्रुप फॉर इन्वेस्टर प्रोटेक्शन से एक शिकायत मिली। इसमें आरोप लगाया गया था कि सहारा समूह की कंपनी सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीआईआरईसीएल) कई महीनों से पूरे देश में जनता को परिवर्तनीय बॉन्ड जारी कर रहा है और मसौदा दस्तावेजों में इसका खुलासा नहीं किया गया।

रोशन लाल की इसी तरह की शिकायत सेबी को नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिये चार जनवरी, 2010 को एक पत्र से मिली थी। इसके बाद संख्या 4 सेबी-सहारा गाथा में एक महत्वपूर्ण तारीख बन गई। सेबी ने जब सहारा को नोटिस जारी किया तो उन्होंने इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का रुख किया, जिसने इसपर रोक लगा दी। यह मामला सुनवाई के लिए चार जनवरी को सूचीबद्ध किया गया।

रॉय को चार तारीख (4 मार्च, 2014) को जेल भेजा गया। लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई में सेबी के वकील अरविंद दातार पहली बार चार तारीख को सेबी के लिए पेश हुए थे। सहारा का मुख्य हलफनामा चार तारीख को ही दिया गया। उच्चतम न्यायालय में भी यह मामला चार जनवरी रखा गया। इसके अलावा मामले के विभिन्न अदालतों तथा न्यायाधिकरणों में लंबित होने के समय भी सहारा समूह ने धन इकट्ठा करना जारी रखा। उसने किसी भी गलत काम में लिप्त होने से इनकार किया और हमेशा कहा कि सभी निवेशकों को वादा किए गए रिटर्न के साथ उनका पैसा वापस मिला।

पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 2011 में सहारा समूह की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) को वैकल्पिक रूप से पूर्ण परिवर्तनीय बॉन्ड (ओएफसीडी) के रूप में पहचाने जाने वाले कुछ बॉन्ड के जरिए करीब तीन करोड़ निवेशकों से जुटाए गए धन को वापस करने का आदेश दिया था।

नियामक ने आदेश में कहा था कि दोनों कंपनियों ने उसके नियमों और विनियमों का उल्लंघन करके धन जुटाया था। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने 31 अगस्त, 2012 को सेबी के निर्देशों को बरकरार रखा और दोनों कंपनियों को निवेशकों से एकत्र धन 15 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने को कहा था। इसके बाद सहारा को निवेशकों को धन लौटाने के लिए सेबी के पास अनुमानित 24,000 करोड़ रुपये जमा करने को कहा गया। सेबी के अनुसार, 31 मार्च 2023 तक राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा कुल राशि करीब 25,163 करोड़ रुपये है।

रॉय को उनके कर्मचारियों और दोस्तों द्वारा सहाराश्री कहा जाता था और वे प्रबंध निदेशक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैसे नामों के स्थान पर सहारा इंडिया परिवार के प्रबंध कार्यकर्ता और मुख्य संरक्षक जैसे पदनामों का इस्तेमाल करते थे। समूह की वेबसाइट के अनुसार, उसके पास नौ करोड़ से अधिक निवेशक व ग्राहक हैं। उसके पास 30,970 एकड़ जमीन है और 2,59,900 करोड़ रुपये की संपत्ति है।

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