हालांकि पिछले साल जैसा मंजर तो नहीं है जब तपती धूप व गर्मी में भूख-प्यास की शिद्दत बर्दाश्त करते हुए लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल ही सैकड़ों मील का सफर तय करते हुए महानगरों से अपने गांवों की तरफ पलायन कर रहे थे, क्योंकि लॉकडाउन के कारण वह रोटी व रोजगार से वंचित हो गये थे।
इस सबके चलते वह कहीं ट्रेन से कट कर मर रहे थे तो कहीं सड़क हादसों में उनकी बलि चढ़ रही थी या मजबूरी की मशक्कत से जिस्म ही इस तरह जवाब दे गया था कि एक दो साल की बच्ची रेलवे प्लेटफार्म पर मृत पड़ी अपनी मां को ‘जगाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि जो प्रवासी मजदूर दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में काम पर (या काम की तलाश में) लौट आये थे, वह एक बार फिर पलायन करने के लिए विवश हो रहे हैं। अर्थव्यवस्था को अगर अतिरिक्त चौपट होने से रोकना है तो प्रवासी मजदूरों के पलायन को रोकना हर हाल में आवश्यक है। समय रहते केंद्र व राज्य सरकारें इस ओर धयान दे लें तो बहुत बड़े संकट से बचा जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्घि हो रही है, पिछले सात दिनों में उससे पहले के सप्ताह की तुलना में मौतों में 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। नये कोरोनावायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र बच नहीं पा रहा है। हद तो यह है कि थाईलैंड, जिसने कोरोनावायरस महामारी को बहुत से देशों से बेहतर नियंत्रित किया था, भी अब कोविड-19 की नई लहर को नियंत्रित करने में संघर्ष कर रहा है। अपने को कोविड-19 मुक्त घोषित करने वाले न्यूजीलैंड ने भी भारत व अन्य जगहों से फ्लाइट्स के आने पर पाबंदी लगा दी है।
भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग दस लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं। जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है। कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है।
एक अन्य समस्या यह है कि बहुत सी जगहों से वैक्सीन की कमी की खबरें आ रही हैं और यह भी कि टीकाकरण के बाद भी लोग संक्रमित हुए हैं व साइडइफेक्ट्स का सामना करना पड़ा है। भारत में 31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चौथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं।
बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कर्फ्यू, सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कलेजों को बंद करना आदि शामिल है।
हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कर्फ्यू का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है)।