लखनऊ। शारदीय नवरात्र में दुगार्पूजा को लेकर तैयारियां शुरू होने लगी है। सभी मां दुर्गे के स्वागत में जुटे हुए हैं। बाजारों में जहां दुकानें सजने लगी हैं तो वहीं दूसरी तरफ मूर्तिकार भी देवी की मूर्ति को अंतिम रूप देने में जी जान से जुट गए हैं। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गारिमामय स्थान को दशार्ता है।
नवरात्र में देवी मां के व्रत रखे जाते हैं। जगह-जगह पर देवी की मूर्तियां बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती हैं। घरों में भी अनेक स्थानों पर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ आदि होते हैं। भगवती के नौ प्रमुख रूप है जिसकी पूजा की जाती है। नवरात्र हिन्दू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। साल के चार नवरात्रों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं।
रविंद्रपल्ली के मूर्तिकार अविनाश ने बताया कि कई समितियों ने अपने हिसाब से देवी-देवताओं के प्रतिमाओं को बनाने के लिए आर्डर दिया है। सभी मूर्तियां लगभग बन चुकी हैं। बस उन्हें अंतिम रूप दिया जा रहा है। जल्द ही ये मूर्तियां नवरात्रि में अलग-अलग जगहों पर दिखेंगी।
े शारदीय नवरात्र पर्व शुरू होने जा रहा है। पर्व के लिए अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। राजधानी सहित पूरे देश मे नवरात्र पर्व आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है। कई जगहों पर मां दुर्गा प्रतिमा की स्थापना कर 9 दिन तक उनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्र को लेकर अन्य संस्थाओं की भी तैयारी तेज हो गई है। इन दिनों श्राद्ध चल रहे हैं। श्राद्धपक्ष की समाप्ति के बाद से ही नवरात्र शुरू होंगे।
मां जगदंबा की मूर्ति बनाने का काम तेज
प्रदेश भर में धार्मिक आस्था और श्रद्धा का बड़ा पर्व नवरात्र इस बार 22 सितंबर से शुरू हो रहा है। नवरात्र के आगमन से पहले ही राजस्थान के विभिन्न जिलों में दुर्गा माता की भव्य मूर्तियां बनाने का काम तेजी से चल रहा है। कारीगर दिन-रात जुटकर मां दुर्गा की विविध स्वरूपों वाली प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं।
बता दें कि लखनऊ सहित कई जिलों में कारीगरों की बस्तियों में इन दिनों खास रौनक देखने को मिल रही है। कहीं मिट्टी और प्लास्टर आॅफ पेरिस की मूर्तियां बनाई जा रही हैं, तो कहीं बड़े आकार की फाइबर मूर्तियां तैयार हो रही हैं। कारीगरों के अनुसार इस बार मूर्तियों में पारंपरिक कला के साथ आधुनिक रंग-रूप का मेल देखने को मिलेगा। मूर्तियों को सजाने के लिए विशेष रंग, गहने और आकर्षक पोशाकों का उपयोग किया जा रहा है। कारीगर बताते हैं कि नवरात्र करीब आते ही मूर्तियों की मांग बढ़ गई है। जयपुर के एक कारीगर ने बताया कि इस बार खासकर 5 से 12 फीट तक की मूर्तियों की अधिक डिमांड है। मूर्तियों की कीमत आकार और सजावट के आधार पर 5 हजार रुपए से लेकर लाखों रुपए तक पहुंच रही है। नवरात्र के दौरान राजस्थान के मंदिरों और पंडालों में दुर्गा माता की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और नौ दिनों तक श्रद्धालु माता की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान विशेष धार्मिक आयोजन, भजन संध्या और गरबा-डांडिया कार्यक्रम भी आयोजित होंगे।
‘प्रतिमाएं बनाने का काम मेहनत और धैर्य मांगता है’
कारीगरों का कहना है कि भले ही प्रतिमाएं बनाने का काम मेहनत और धैर्य मांगता है, लेकिन जब लोग माता की आराधना करते हैं और उनकी प्रतिमाओं की भव्यता की सराहना करते हैं, तो सारी थकान दूर हो जाती है। नवरात्र के शुभारंभ से पहले ही बाजारों और गलियों में भक्ति और उत्साह का माहौल दिखाई देने लगा है।
नवरात्र में बंगाल के मूर्तिकारों की दुर्गा प्रतिमा की डिमांड ज्यादा
लखनऊ। शारदीय नवरात्रि सोमवार से शुरू हो रही है और पंचमी (पांचवें दिन) पर पूजा पंडालों में दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। मूर्तियों की पूजा षष्ठी (छठे दिन) से शुरू होगी। लखनऊ के तालकटोरा इलाके में कोलकाता के फेमस मूर्तिकार निलॉय मित्रा अपने आठ मजदूरों के साथ तेजी से मां दुर्गा के प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहे हैं, उनको मूर्तियों के 60 से अधिक आॅर्डर मिला है। निलॉय मित्रा के पिता ने दशकों पहले केवल दो आॅर्डर के साथ मूर्ती बनाने का काम शुरू किया था।
आज उनके पास शहर के अधिकतर बड़े पंडालों के लिए आॅर्डर मिलते हैं, जिनकी मांग को पूरा करने के लिए उन्हें हर साल तीन महीने से अधिक समय के लिए कोलकाता से आठ सहायकों को बुलाना पड़ता है. निलॉय मित्रा ने लखनऊ विश्वविद्यालय के आर्ट्स कॉलेज से स्नातक किया है. उन्होंने बताया कि जब मैं बहुत छोटा था तब हमने केवल दो आॅर्डर के साथ मूर्ती बनाने का काम शुरू किया था।
आज यह आॅर्डर की संख्या बढ़ गई है। यह सब मां दुर्गा की कृपा है। अब शहर में दुर्गा पूजा पहले की तुलना में बहुत बड़े पैमाने पर मनाई जा रही है। निलॉय की तरह ही उनके 21 वर्षीय चचेरे भाई रॉबिन मित्रा को भी लगभग 50-60 आॅर्डर मिले हैं, जिनमें नादरगंज पूजा के लिए 11 फीट ऊंची और मॉडल हाउस दुर्गा पूजा के लिए 9 फीट ऊंची मूर्तियां भी शामिल हैं. उन्होंने भी कोलकाता से 10 मजदूरों को बुलाकर काम पर रखा है. बता दें कि मित्रा बंधुओ के तहखानों में सैकड़ों से अधिक मूर्तियां हैं जो अपना अंतिम आकार ले रही हैं क्योंकि उन्हें अगले कुछ दिनों के भीतर शहर के दुर्गा पंडालों में स्थापित किया जाना है।
मित्रा परिवार की तरह एक दूसरे फेमस मूर्तिकार सुजीत पाल हैं, जो हर साल 25 से अधिक मूर्ति बनाने का आॅर्डर नहीं लेते हैं। मूर्ति निमार्ताओं की तीन पीढ़ियों द्वारा लखनऊ और उसके आसपास के इलाके में पूजा समितियों से आॅर्डर लेने की एक समृद्ध परंपरा के बाद सुजीत पाल अपने तीन मूर्तिकारों की एक टीम के साथ काम करते हैं जो बहराईच से आते हैं. टीम में कुछ चित्रकार कोलकाता से आते हैं। उन्होंने पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी रवीन्द्र पल्ली और बंधु महल के लिए मूर्तियाँ बनाई हैं. यहां तक कि लखीमपुर खीरी और बाराबंकी में पूजा के लिए भी मूर्तियाँ बनाई है।
लखनऊ में मूर्ती पूजा
मूर्तिकारों और पूजा समितियों का मानना है कि शहर में दुर्गा पूजा उत्सव तेजी से बढ़ रहा है, खासकर महामारी के बाद और कई नए और पुराने पूजा पंडालों ने शहर में उत्सव को शानदार बना दिया है. बंगाली समुदाय के बाहर के लोग भी उत्सव में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। शहर में 1914 में केवल एक पूजा की शुरूआत बंगाली क्लब से हुई थी, आज यह संख्या 250 से अधिक पंजीकृत बड़े और छोटे पंडालों तक पहुंच गई है। लखनऊ पुलिस के पास 2022 में दुर्गा पूजा के पंजीकरण के अनुसार पूरे शहर में 121 पंडाल और 133 गैर-पंडाल स्थापित किए जाने थे। कुल 54 रामलीलाएँ और 55 रावण दहन भी हुए थे। वहीं रवीन्द्र पल्ली दुर्गा पूजा समिति के सचिव डिंपल दत्ता ने बताया कि पहले, दुर्गा पूजा का मतलब शहर के केवल कुछ पंडालों में जाना होता था. अब पंडाल हर जगह हैं। अलीगंज में ट्रांस-गोमती दुर्गा पूजा समिति के प्रशासक तुहिन बंजर्जी ने कहा कि यह अब बढ़ गया है, हालांकि हम अभी भी कोलकाता से पीछे हैं. एक अन्य मूर्ति निमार्ता और मूर्तिकार अभिजीत बिस्वास ने बताया कि हमें पहले के दिनों के विपरीत अपार्टमेंट में आयोजित होने वाली विभिन्न छोटी पूजाओं से भी मांग मिल रही है।
फेमस मूर्तिकार सुजीत पाल बनाते हैं सिर्फ 25 मूर्ति
मित्रा परिवार की तरह एक दूसरे फेमस मूर्तिकार सुजीत पाल हैं, जो हर साल 25 से अधिक मूर्ति बनाने का आॅर्डर नहीं लेते हैं। मूर्ति निमार्ताओं की तीन पीढ़ियों द्वारा लखनऊ और उसके आसपास के इलाके में पूजा समितियों से आॅर्डर लेने की एक समृद्ध परंपरा के बाद सुजीत पाल अपने तीन मूर्तिकारों की एक टीम के साथ काम करते हैं जो बहराइच से आते हैं. टीम में कुछ चित्रकार कोलकाता से आते हैं. उन्होंने पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी रवींद्रपल्ली और बंधु महल के लिए मूर्तियाँ बनाई हैं। यहां तक कि लखीमपुर खीरी और बाराबंकी में पूजा के लिए भी मूर्तियां बनाई है।
बंगाल के कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर
पश्चिम बंगाल से हजारों कलाकार विभिन्न प्रकार के काम के लिए शहर में आ रहे हैं, जिनमें मूर्ति निमार्ता, पंडाल निमार्ता, ढाकी पुजारी और अन्य शामिल हैं. जेल रोड पर एक पंडाल में 45-50, रवींद्रपल्ली में 20, जानकीपुरम सेक्टर एफ में पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से 50 और सहारा एस्टेट में 20 कर्मचारी काम कर रहे हैं. इसी तरह शहर के अधिकांश पंडालों में यूपी और पश्चिम बंगाल के मजदूरों को काम पर लगाया गया है. तालकटोरा में कोलकाता स्थित मूर्ति निमार्ता मोनोजीत पाल और उनके सहकर्मी गोपाल प्रमाणिक ने कहा कि हम हर साल यहां आते हैं क्योंकि हमें भोजन और आवास के अलावा यहां अधिक भुगतान मिलता है।