‘चलो कुंभ की ओर’ में दिखा आध्यात्मिक व सांस्कृतिक महत्व

दस कलाकारों को मातृ रंग सम्मान दिया गया

लखनऊ। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से मदर सेवा संस्थान द्वारा द्वितीय रंग महोत्सव के अंतर्गत पहले दिन चलो कुम्भ की ओर का मंचन शनिवार को संगीत नाटक अकादमी स्थित वाल्मीकि रंगशाला में हुआ। रंगकर्मी महेश चंद्र देवा ने नाटक से पूर्व 10 कलाकारों को अतिथियों ने मातृ रंग सम्मान -2024 से सम्मानित किया, जिसमे वरिष्ठ रंगकर्मी व फिल्म कलाकार अचला बोस, वरिष्ठ रंगकर्मी प्रभात कुमार बोस, मो. हफीज, रमेश चंद्र सैनी, तमाल बोस, सुरेश कुमार सुदर्शन, अनिल मिश्रा ‘गुरूजी’ को व गायक इलियास खान, उद्घोषक राजेंद्र विश्ववकर्मा ‘हरिहर’ आर्टिस्ट अश्वनी कुमार प्रजापति को किया।
नाटक की कहानी उन्नाव जिले के रामपुर गॉव के गरीब किसानों की है ’नाटक की कथानक में ग्रामीण परिवेश से ठेठ ग्रामीण भाषा में से आरम्भ होती जो सन 2000 से पहले के ग्रामीणों के जनजीवन को दशार्ता है ’ ठुठरति जाड़े की रात में गॉव की चौपाल में बैजू (इलियास खान) के कबीरपंथी गीत झीनी झीनी बिनी चदरिया को सरपंच (मोहम्मद अमन ), किशोर (अभिषेक पाल ) और अन्य साथी सुन रहे होते है कि बैजू के जाने के बाद मुरारी ( उज्जवल सिंह ) सरपंच को याद दिलाता है कि का ई बार सरपंच जी कुम्भ मेला ना चलियो की तभी सरपंच के पौत्रा और पौत्री गोलू (खुशी गौतम ), गुड़िया (शिखा वाल्मीकि ) पूछ बैठते है की कुम्भ का है ’ इस बात को मनोहर ( कृष्णा सिंह ) और गॉव के बुजुर्ग दद्दा ( के.क. पांडेय ) समुद्रमंथन के बारे में बताते ही है कि बच्चों में इसकी भी जानने की उत्सुकता बढ़ती है तो सरपंच बोल उठते है ये सब अब कुंभ चलकर ही पता चलेगा, तो सभी चलो कुंभ की कह कर अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते है’ रात में सरपंच जी की पत्नी सुलोचना (प्रियंका देवी ) कुम्भ जाने की तैयारी कर रही है कि दोनों बच्चे गोलू गुड़िया भी जिद्द करते है कुम्भ जाने कि लेकिन दादी नाराज हो जाती है सरपंच और सुलोचना में खूब झगड़ा होता है लेकिन बच्चों को किया वादा वो पूरा करता है और बच्चे कुंभ चलते है। दूसरी तरफ किशोर अपनी पत्नी गीता से कहता हैं तो पत्नी (कशिश सिंह ) उसे घर बच्चे की जिम्मेदारी के कारण मना करती है तो मनोहर जो कई साल से पैसों की तंगी के वजह से कुम्भ ना जा सका, जो इस बार सोचता की कुम्भ चले तो कंबल के ना होने के कारण किशोर के पास कंबल की आस लेकर जाता है तो किशोर पत्नी के मना करने पर भी अपना कंबल ही उसे दे देता, मनोहर के चेहरे की खुशी देखकर किशोर भी खुश हो जाता है।
ठंड और गरीबी की मार फिर भी आस्था व सनातनी पर्व का हर्ष उल्लास और पूरे गॉव में दिखता है सुबह भौर से ही पूरा गॉव तैयारी में जुट जाता है। राकेश (मोनू गौतम ) राम मिलन की ट्राली लेकर आता है। सरपंच घर घर जाकर सबको बुलाते है, सभी गॉव वाले अपने अपने परिवार के साथ झोला, गठरी, लेकर गंगा मईया की जयकारा लगाते हुए निकल पडते है। गांव के सरपंच के नाते गांव के प्रति आत्मीयता का भाव रख सभी को ट्रेन से प्रयागराज ले जाते है जंहा संतो का समागम, गंगा आरती, गोलू का खो जाना, बच्चें का नदी में बहना ’ गौतखोर द्वारा मिल जाना ’ जगह जगह कथाओं का पंडाल,आदि का मनोहारी दृश्यों से नाटक दर्शकों को बांध देता हैं।
नाटक का सह लेखन किया हरी वर्मा और सह निर्देशन अदीर्रका उमराव ने किया। नाटक में अन्य कलाकार शिखा श्रीवास्तव, पूर्णिमा सिद्धार्थ, श्लोक वाल्मीकि, रोहित बटोही ने साधु व साध्वी का किरदार, किशोर के बच्चें , पलक व पिंकी कनौजिया, सनोज का चरित्र सुमित कनौजिया, दद्दा की बेटी तनु कश्यप, चंपत व चायवाला विकास राजपूत, पुलिस वाला मोहम्मद सैफ, उज्जवल की पत्नी छवि श्रीवास्तव, बेटी व विदेशी फोटोग्राफर अदिर्का उमराव आदि ने चरित्र को सशक्त अभिनय से जीवंत किया।

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