back to top

स्मार्ट होती पुलिस

शहरों में कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने और अपराधों को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के दो जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू करने का फैसला किया है। राष्ट्रीय राजधानी से सटे गौतमबुद्ध नगर और प्रदेश की राजधानी लखनऊ को सबसे पहले पुलिस आयुक्त प्रणाली के लिए चुना गया है। बड़े शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने से पुलिस स्मार्ट हो जाती है और कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर होती है, ऐसी दलीलें वर्षों से दी जाती रही हैं।

इस संदर्भ में समितियों के रिपोर्ट भी हैं और अदालत का भी सुझाव रहा है कि राज्य सरकारें पुलिस व्यवस्था में अनावश्यक बाहरी हस्तक्षेप को रोकने के लिए आयुक्त प्रणाली बड़े शहरों में लागू करें। हालांकि इसके विपरीत भी तर्क दिए जाते हैं। ऐसे लोगों के तर्क भी गौर करने वाले हैं कि आयुक्त प्रणाली में चेक एण्ड बैलेंस खत्म हो जाता है जिससे पुलिस का रवैया मनमाना हो जाता है। वैसे राष्ट्रीय राजधानी नयी दिल्ली में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू है, लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरह अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं उससे भरोसे के साथ यह नहीं कहा जा सकता है कि आयुक्त प्रणाली से कानून व्यवस्था दुरुस्त ही होगी।

मध्य प्रदेश के इंदौर में भी आयुक्त प्रणाली है। इंदौर में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान मिनी मुंबई की बन रही है। लेकिन कानून व्यवस्था इस शहर की खराब है। गुरुग्राम एनसीआर का हिस्सा है और यहां आयुक्त प्रणाली है, लेकिन कानून व्यवस्था बदतर है। ऐसे भी शहर और जिले हैं जहां वर्तमान व्यवस्था में भी पुलिस ने अच्छा काम कर कानून व्यवस्था को अपेक्षाकृत दुरुस्त किया है। इसलिए बात प्रणाली की नहीं है बल्कि किसी शहर की कानून व्यवस्था कैसी होगी यह इस पर निर्भर करता है कि उसका जिम्मा संभालने वाले लोग कैसे हैं। सिर्फ कुछ पद और उनके अधिकार बढ़ने से व्यवस्था बेहतर हो जायेगी ऐसा मानना एक तरह से अतिरिक्त उत्साह दिखाना होगा, लेकिन अगर कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए पुलिस के पास पर्याप्त अधिकार नहीं हैं, तो उसे यह अधिकार देना चाहिए। मोटे तौर पर वर्तमान व्यवस्था में और आयुक्त प्रणाली में अंतर सिर्फ इतना है कि वर्तमान व्यवस्था में पुलिस के पास मजिस्ट्रेट के अधिकार नहीं हैं।

सीआरपीसी में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर को भी सौंपी गयी है और इस कारण जैसे सभी विभाग कलेक्टर के अधीन होते हैं, उसी तरह पुलिस का भी वह बॉस होता है। कानून व्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय डीएम की सहमति और स्वीकृति से ही लिये जा सकते हैं। बात सिर्फ लॉठी-गोली चलाने, कर्फ्यू या 144 लगाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि थाना प्रमुखों तक की तैनाती में डीएम का हस्तक्षेप होता है और यह कोई गलत भी नहीं है। आयुक्त प्रणाली में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने से संबंधित सारे अधिकार पुलिस के पास होंगे। इसमें शहर या जिले का पुलिस प्रमुख एसपी के बजाय एडीजे रैंक का अनुभवी अफसर होगा। पुलिस अधिक अधिकार सम्पन्न होगी होगी और कानून व्यवस्था से जुड़े मसलों पर त्वरित और स्वयं फैसले लेने में सक्षम होगी। यूपी में आयुक्त प्रणाली दो जिलों में प्रयोग के तौर पर लागू की जा रही है। अगर यह सफल होती है तो इसका विस्तार भी किया जा सकता है। बरहाल अब पुलिस की जिम्मेदारी भी बढ़ गयी है कि वह अच्छा काम कर बेहतर परिणाम दे। क्योंकि अब कोई बहाना नहीं चलेगा।

RELATED ARTICLES

गणेश उत्सव : भगवान गणेश के प्रिय अस्त्र पाशांकुश की हुई पूजा

गणपति के हम दीवाने जी रहे है मस्ती में…,लखनऊ। श्री गणेश प्राकट्य कमेटी के तत्वावधान में झूलेलाल वाटिका निकट हनुमान सेतु के पास चल...

मोक्ष की प्राप्ति के लिए उत्तम त्याग नितांत आवश्यक

दशलक्षण पर्वलखनऊ। दसलक्षण पर्व के अष्टम दिन आज उत्तम त्याग धर्म की पूजा की गई। जैन मंदिर इंदिरा नगर मे रविवार अवकाश होने के...

जैन मन्दिरों में विधि-विधान से हुई उत्तम तप धर्म की पूजा

लखनऊ। गोमतीनगर जैन मन्दिर में चल रहे दशलक्षण धर्म महापर्व में आज उत्तम तप धर्म की पूजा हुई। भगवान का अभिषेक सांगानेर से आए...

Latest Articles