बहनें भाई की कलाई पर दिनभर बांध सकेंगी राखी

297 साल बाद इस बार राखी पर भद्रा का साया नहीं

लखनऊ। इस बार 297 साल बाद भद्रा रहित निर्विघ्न राखी 9 अगस्त को मनाई जाएगी। भाई-बहन के स्नेह के पर्व पर 297 साल बाद कल्याणकारी दुर्लभ मंगलकारी संयोग रहेगा। इसके चलते पूरे दिन बहनें भाई की कलाई पर रेशम की डोर बांध सकेंगी।
पं. बिन्द्रेस दुबे ने बताया कि एक शताब्दी बाद निर्विघ्न राखी का संयोग बन रहा है। ज्योतिर्विद आचार्य शिवप्रसाद तिवारी के अनुसार, रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को भद्रा रहित तीन मुहूर्त या उससे अधिक व्यापिनी पूर्णिमा तिथि को अपराह्न व प्रदोष काल में मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि आठ अगस्त को दोपहर 2.12 बजे से नौ अगस्त को दोपहर 1.24 बजे तक रहेगी। भद्रा भी पूर्णिमा के साथ आठ अगस्त को शुरू होकर रात 1.49 बजे तक रहेगी। सूर्योदय से पहले भद्रा के समाप्त होने से पर्व इस बार निर्विघ्न रूप से मनाया जाएगा।
इस बार रक्षाबंधन पर 297 साल बाद दुर्लभ योग बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा में राखी नहीं बांधी जाती। इस बार भद्रा भूलोक पर नहीं रहेगी। इसलिए सुबह से दोपहर 2:24 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस दिन ग्रहों की स्थिति विशेष रहेगी। सूर्य कर्क राशि में रहेगा। चंद्रमा मकर में, मंगल कन्या में, बुध कर्क में, गुरु और शुक्र मिथुन में, राहु कुंभ में और केतु सिंह राशि में रहेगा. ऐसा संयोग 1728 में बना था, तब भी भद्रा भूलोक पर नहीं थी और ग्रहों की स्थिति ऐसी ही थी। इस बार भी वैसा ही योग बन रहा है। यह समय शुभ कार्यों के लिए उत्तम रहेगा।

ऐसे निर्मित होता नवपंचम योग
पं. बिन्द्रेस दुबे के अनुसार, नवपंचम योग को शुभ योग माना जाता है। जब दो ग्रह कुंडली के नौवें एवं पांचवें भाव में स्थित होते हैं, जिससे 120 डिग्री का कोण बनता है। यह योग बुद्धि, ज्ञान और भाग्य के लिए शुभ माना जाता है।
राखी पर सूर्य व बुध की कर्क एवं गुरु एवं शुक्र की मिथुन राशि में युति बनेगी। मंगल कन्या, राहु कुंभ व केतु सिंह राशि में होंगे। साथ ही श्रवण नक्षत्र और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। शास्त्रों के अनुसार श्रवण नक्षत्र के अधिपति विष्णु एवं सौभाग्य योग के अधिपति ब्रह्मा हैं। इसके चलते यह पर्व सृष्टि के निमार्ता ब्रह्मा एवं जगत के पालनहार भगवान विष्णु की साक्षी में मनेगा।

इस बार भद्रा भूलोक पर नहीं, सर्वार्थ सिद्धि योग भी

पं. बिन्द्रेस दुबे के अनुसार शास्त्रों में उल्लेख है कि भद्रा में राखी नहीं बांधी जानी चाहिए। इस बार रक्षाबंधन के दिन सूर्य की पुत्री एवं शनि की बहन भद्रा भूलोक में नहीं होगी। भद्रा को शुभ कार्यों में अशुभ माना जाता है। भद्रा का निवास स्थान चंद्रमा के अनुसार बदलता रहता है। इस दिन कार्य में सिद्धि देने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग भी दोपहर 2.24 बजे तक रहेगा।

राखी की थाली और सामग्री
राखी की थाली में रोली, हल्दी, अक्षत, घी दीपक, श्रीफल, फूल, रक्षासूत्र और मिठाई का होना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। इन चीजों को लेकर पूजा करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। राखी बांधने से पहले राखी की थाली सजाई जाती है। इस थाली को भी पूजा की थाली की तरह सजाया जाता है। बहनों को अपनी राखी की थाली में इन जरूरी सामग्रियों से पूजा बहुत शुभ होती है। पूजा की थाली में रोली से स्वास्तिक या अष्ट लक्ष्मी का चिन्ह बनाना शुभ होता है, इसके बाद उसमें एक लाल रंग का कपड़ा भी बिछा लेना चाहिए और फिर इन सामग्रियों को उस थाली में रख लेना चाहिए। उस थाली में राखी, तिलक के लिए कुमकुम और अक्षत. याद रखें कि अक्षत यानी चावल टूटा हुआ ना हो। नारियल, मिठाई, सिर पर रखने के लिए छोटा सा रुमाल, आरती के लिए दीपक रखें।

रक्षाबंधन पूजन विधि
रक्षा बंधन के दिन सबसे पहले भाई बहन जल्दी सुबह उठकर स्नान आदि कर, साफ-सुथरे कपड़े पहनकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं, फिर घर के मंदिर में या पास ही के मंदिर जाकर पूजा अर्चना करें। भगवान की आराधना के पश्चात राखी बांधने से संबंधित सामग्री एकत्रित कर लें, इसके बाद मुख्य रूप से चांदी, पीतल, तांबे या स्टील की कोई भी साफ थाली लेकर उस पर एक सुंदर-साफ कपड़ा बिछा लें। उस थाली में एक कलश, नारियल, सुपारी, कलावा, रोली, चंदन, अक्षत, दही, राखी और मिठाई रख लें. सामग्री को सही से रखने के बाद घी का दीया भी रखें. यह थाल पहले घर में या मंदिर में भगवान को समर्पित करें। सबसे पहले एक राखी कृष्ण भगवान और एक गणेश जी को चढ़ाएं। भगवान को राखी अर्पित कर ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त देख अपने भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करवाकर बिठाएं. इसके उपरान्त भाई को तिलक लगाएं, फिर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधें और इसके बाद उसकी आरती करें। इसके बाद अपने भाई का मिठाई से मुंह मीठा करें। राखी बांधते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भाई-बहन दोनों का सिर किसी कपड़े से ढका जरूर होना चाहिए। रक्षा सूत्र बंधवाने के बाद माता-पिता या घर के बड़ों का आशीर्वाद लें।

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