लखनऊ। सनातन धर्म में सर्व पितृ अमावस्या का खास महत्व होता है। यही वो दिन होता है जब पूरे पितृपक्ष में जिन पूर्वजों का श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया हो, उनका तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करके उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। मान्यता है कि इस दिन पितृलोक से आए हुए सभी पितर अपने-अपने श्राद्ध की प्रतीक्षा करते हैं और इस दिन विधिपूर्वक किए गए कर्मों से तृप्त होकर वापस अपने लोक लौट जाते हैं। इस पावन दिन के बाद ही शारदीय नवरात्र की शुरूआत होती है, जो देवी उपासना का विशेष पर्व होता है। इस बार सर्व पितृ अमावस्या पर कुछ विशेष ज्योतिषीय योग भी बन रहे हैं, जो इसे और भी अधिक शुभ और फलदायक बना देते हैं। मान्यता है कि इन योगों में तर्पण और पिंडदान करने से तीन पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और साथ ही, परिवार पर पितरों की कृपा बनी रहती है।अमावस्या तिथि की शुरूआत 20 तारीख को रात 12 बजकर 17 मिनट पर होगी और 21 तारीख को रात में 1 बजकर 24 मिनट पर अमावस्या तिथि समाप्त होगी। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या उदय तिथि के अनुसार 21 तारीख को ही मनाई जाएगी। इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर शुभ योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा।
तर्पण करने के लिए शुभ समय
सुबह 11:50 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक का समय तर्पण और कुतुप मूहूर्त के लिए बहुत शुभ है।
इसके बाद दोपहर 12:38 से 1:27 बजे तक का समय रौहिण मूहूर्त कहलाता है, जो भी तर्पण के लिए अच्छा माना जाता है।
फिर दोपहर 1:27 बजे से शाम 3:53 बजे तक का समय भी पिंडदान और तर्पण करने के लिए उपयुक्त है।
सर्व पितृ अमावस्या पर कौन-कौन से दान करें
काले तिल या तिल के लड्डू दान करना पितरों की तृप्ति का मुख्य साधन है। इसे जल, गाय, कुत्ते या गरीबों को दान करें। इस दिन गाय को भोजन या घास देना अत्यंत शुभ होता है। गरीबों को सफेद या काले कपड़े देना शुभ माना जाता है। गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं। दान सामग्री में चावल, गुड़, गेंहू आदि: ये वस्तुएं भी दान में दी जा सकती हैं। दान करते हुए तिल के साथ पानी का तर्पण करना चाहिए, जिससे दान का फल दोगुना होता है।
सर्वपितृ अमावस्या की पूजा विधि
इस दिन स्नान करने के बाद किसी पवित्र नदी या किसी शुद्ध जगह पर अपना आसन लगाएं। इसके बाद हाथ में थोड़ा चावल लेकर सभी पितरों को याद करते हुए श्राद्ध का संकल्प लें। जल में अक्षत डालें और उसे देवताओं को अर्पित करें। इसके बाद पितरों के नाम से तर्पण करें। पितरों के तर्पण के लिए काले तिल, सफेद फूल हाथ में लेकर फिर जल डालते हुए तर्पण किया जाता है। तर्पण के लिए तर्जनी अंगुली और अंगूठे के बीच कुशा लें और एक अंजलि बनाए। अंजलि में जल लेकर उसे खाली पात्र में अर्पित करें। सभी पितरों को याद करते हुए सभी के नाम से तीन बार जल अर्पित करें। तर्पण करते समय ओम पितृभ्य नम: का जप करते रहें। इसके बाद तर्पण का जल किसी पेड़ में अर्पित कर दें। इसके बाद ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराएं।