एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में किया गया मंचन
लखनऊ। आनन्द अनुभूति वेलफेयर सोसाइटी की नाट्य प्रस्तुति नाटक उजड़ा हुआ महाविद्यालय का मंचन एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में किया गया। नाटक का लेखन ब्रजभूषण व निर्देशन सोनी सिंह ने किया।
उजड़ा हुआ महाविद्यालय एक परिवार की कहानी है जिसमें सब कुछ सामान्य ढंग से चल रहा हैं। इस परिवार में दादा-दादी, पिता (केदारनाथ) माँ (गीता) बेटा (बंटी) बेटी (रीटा) हैं। सब हंसी-खुषी रह रहे हैं और बच्चें अपने दादा-दादी से कहानिया सुन रहे हैं- कभी इतिहास की कहानी, कभी खरगोष की कहानी तो कभी कुत्ते-बिल्लियों की कहानी, कभी किसान की कहानी। इन कहानियों की जरिये दादा-दादी अपने पोता-पोती को संस्कार दे रहे हैं। पर माँ गीता को लगता है कि इन कहानियों से हमारे बच्चें पिछड़े जा रहे हैं, जमाना कहा से कहा पहुंच गया है यह बुड्ढा-बुढिया हमारे बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं। गीता चूंकि बहुत ही महत्वाकांक्षी है और उसे यह भी रहता है कि उसका पति ऐसी कुर्सी पर बैठा है कि वो चाहे तो रूपयों की बरसात हो जाये पर उसका पति कुछ करता नहीं है।
आज केदारनाथ बहुत खुश है क्योंकि वह पहली बार घूस में पचास हजार रुपए घर लाया, रुपए देखकर गीता फूली नही समाती है बातों ही बातों में वह कहती है कि अम्मा-बाबा को पुराने मकान में रहने को भेज दो, क्योंकि वह हम लोगों की उन्नति में बाधा डाल रहे हैं, उन्हें अलग कर दो, यह बातें अम्मा-बाबा सुन लेते है और वह तुरन्त अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर पुराने घर में रहने के लिए चले जाते है।
जब परिवार का मुखिया ही नही रहेगा तो लाजमी है कि बच्चें बिगड़ जायेंगे, तो बंटी और रीटा पूरी तरह से बिगड़ गये है, लड़ाई-झगड़ा और नशा-पत्ती करने लगे है। और केदारनाथ और गीता तो बस अब पैसा कमाओं और खूब शोहरत कमाओं में लग गये हैं, बच्चे क्या कर रहे कोई मतलब नहीं, शिकायतें आती है तो दोनों एक-दूसरे पर तोहमत लगाते रहते है। केदारनाथ का दोस्त प्रोफेसर अंसारी आ कर समझाता है, पर उन लोगों पर कोई फर्क नही पड़ता है। धीरे-धीरे हालात यह हो जाते है कि कस्टम विभाग से रेड पडनी की नौबत आ जाती। और दोनों बच्चे नशे की हालत में घर आते है, रीटा ड्रग्स लेती है तो बंटी शराब पीता है। लेकिन आज जब केदारनाथ और गीता बच्चों को बिगड़े हुए पर कोसते हैं। तब बंटी नशें की हालत में अपने हालात का जिम्मेदार माता-पिता को ठहराता है। काफी बहस होने के बाद केदारनाथ और गीता को अहसास होता है कि बच्चों के बिगड़ने की जिम्मेदारी माँ-बाप की होती है। अहसास होने के बाद केदारनाथ और गीता अम्मा-बाबा को घर वापस लाते है और कहते है मुझे आज मालूम हो गया कि आप लोग जो कुत्ते-बिल्लियों की कहानी सुनाते थे वह महज एक कहानी नही होती थी, बल्कि आप उन कहानियों के जरिए बच्चों को संस्कार दे रहे थे। अब आप लोग इस उजड़े हुए महाविद्यालय को फिर से सम्भालिए और अपनी कहानियों के जरिये संस्कारी बनाइये। आप प्राचार्य की भूमिका निभाइये हम फाइनेंसर की भूमिका निभाते हैं।