नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने सोमवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राजनीतिक दलों से कहा गया था कि कोविड-19 के मद्देनजर वे तीन नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्यक्ष रैलियां करने के बजाय चुनाव प्रचार के लिए आभासी तरीके अपनाएं।
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने भारत निर्वाचन आयोग से कहा कि कोविड-19 के दिशा-निर्देशों और कानून को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक रैलियों के संबंध में उचित निर्णय लिया जाए। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को निश्चित ही ऐसा महसूस हुआ होगा कि जमीनी हालात में बदलाव नहीं हो रहा है।
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि वह कोविड-19 महामारी के बीच चुनाव कराने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सभी निर्देशों और मानकों का पालन कर रहा है। इस पर पीठ ने द्विवेदी से कहा कि निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव कानून के अनुसार ही संपन्न हों और वह उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा देगी, लेकिन निर्वाचन आयोग को कानून के अनुसार काम करना होगा ताकि जमीनी हालात में बदलाव हो।
पीठ ने टिप्पणी की, हम उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा देंगे और यह निर्वाचन आयोग पर छोड़ देंगे कि वह सुनिश्चित करे कि सबकुछ कानून के अनुसार हो। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से चुनाव प्रचार के लिए बर्बाद हुए समय के बारे में निर्वाचन आयोग को प्रतिवेदन दें।
रोहतगी ने कहा कि अब सिर्फ सात दिन का समय बचा है और ऐसी स्थिति में चुनाव प्रचार के लिए रोजाना दो से तीन घंटे का समय और दिया जाए। पीठ ने कहा, हम स्पष्ट कर देंगे कि निर्वाचन आयोग के समक्ष जो भी मुद्दे उठाए जाएंगे, आयोग उन पर ध्यान देगा। शीर्ष अदालत निर्वाचन आयोग तथा मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी जिनमें उच्च न्यायालय के 20 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी गई थी।
न्यायालय ने इस मामले को छह सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्घ करते हुए निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए कानून के अनुसार निर्णय लेने की अनुमति प्रदान कर दी। पीठ ने कहा कि राजनीतिक नेता उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से चुनाव प्रचार के लिए नष्ट हुए समय के बारे में निर्वाचन आयोग को अपने प्रतिवेदन दे सकते हैं।