नई दिल्ली। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाने के लिए रैपिड एंटीजन जांच (आरएटी) सस्ती है और इससे तुरंत नतीजे मिल जाते हैं लेकिन त्रुटिपूर्ण नतीजे देने के कारण यह आरटी-पीसीआर टेस्ट की तरह भरोसेमंद नहीं है। ऐसे में, रैपिड एंटीजन जांच की भूमिका सहायक से ज्यादा नहीं हो सकती।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को लक्षण वाले सभी मरीजों की आरएटी की जांच के मामले में संक्रमण की पुष्टि नहीं होने पर आरटी-पीसीआर जांच कराने का निर्देश दिया। वैज्ञानिकों ने कहा कि मंत्रालय का यह निर्देश सही दिशा में उठाया गया कदम है।
मंत्रालय ने कहा कि रैपिड जांच में लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण की पुष्टि नहीं होने पर आरटी-पीसीआर जांच कराए जाने का कुछ राज्य पालन नहीं कर रहे हैं। इस विचार का यही मकसद है कि कोविड-19 के हर मरीज की पहचान हो। प्रतिरक्षा वैज्ञानिक सत्यजीत रथ ने कहा कि आरएटी के मामले में कई बार त्रुटिपूर्ण नतीजे आते हैं और संक्रमण की पुष्टि नहीं होती है।
नई दिल्ली के राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक ने कहा, आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) इस बारे में अवगत है और रैपिड जांच में लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण की पुष्टि नहीं होने पर फिर से आरटी-पीसीआर जांच कराने की सलाह दी थी।
विषाणु वैज्ञानिक शाहिद जमील ने कहा कि आरएटी बहुत संवेदनशील जांच होती है और इसमें कई नतीजे त्रुटिपूर्ण आ जाते हैं। जमील ने कहा, अगर किसी में लक्षण हैं तो उसकी फिर से जांच होनी चाहिए। इसे ठीक करना होगा। रथ ने कहा, आरटी-पीसीआर जांच बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण रैपिड जांच की शुरुआत की गई क्योंकि आरटी-पीसीआर के लिए बहुत सारे उपकरण और जांच के लिए भी दक्षता की जरूरत होती है।
जैव चिकित्सा विज्ञान और चिकित्सा अनुसंधान प्रारूप निर्माण में निवेश करने वाली संस्था डीबीटीावेलकम ट्रस्ट इंडिया अलायंस के सीईओ जमील ने कहा कि रैपिड जांच में 30 मिनट में नतीजे मिल जाते हैं और इससे कई बार विभिन्न स्थितियों में मदद मिलती है। जैसे कि मरीजों के उपचार के पहले जांच कर लेने से डॉक्टरों की सुरक्षा हो जाती है।
उन्होंने कहा, रैपिड जांच भले पूरी तरह सटीक नहीं हो लेकिन इससे डॉक्टरों की हिफाजत हो जाती है। एक और फायदा यह है कि आरटी-पीसीआर की तुलना में इसमें कम खर्च होता है। रैपिड एंटीजन जांच में वायरल प्रोटील का पता लगाया जाता है जबकि आरटी-पीसीआर जांच में वायरल आरएनए या इसकी आनुवांशिक सामग्री की पड़ताल की जाती है।