पूणार्हुति और भंडारे के साथ श्रीमद् भागवत कथा का समापन
सनातन परंपरा में व्यक्ति नहीं, विश्व का कल्याण सर्वोपरि : पं. गोविंद मिश्रा
लखनऊ। हरि की कथा सुनाने वाले तुमको लाखों प्रणाम…, तेरा सुंदर रूप सलोना… जैसे भजनों पर भक्त जमकर झूमे। मौका था विश्वनाथ मंदिर के 34वें स्थापना दिवस पर श्रीरामलीला पार्क, सेक्टर-ए, सीतापुर रोड योजना कॉलोनी में 27 नवंबर से चल रहे श्रीमद् भागवत कथा और रासलीला के समापन का। गुरुवार को वातावरण वैदिक मंत्रोच्चार, भजनों और प्रभु स्मरण की ध्वनियों से गूँज उठा। हवन और पूणार्हुति के बाद भक्तों ने आरती की। देर रात तक चले भंडारे में भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।
वहीं दिव्य मंच पर जब राधा-कृष्ण की अलौकिक झांकी प्रस्तुत हुई तो भक्त भावविभोर होकर झूम उठे। भक्तों ने पारंपरिक उत्साह के साथ फूलों की होली खेलकर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने भी भक्तों पर पुष्पवर्षा कर आशीर्वाद प्रदान किया। वातावरण में भक्ति, संगीत और रंगों का ऐसा संगम देखने को मिला कि पूरा परिसर राधे-राधे और कृष्ण कन्हैया लाल की जय के जयकारों से गूंज उठा।
कथाव्यास आचार्य पं. गोविंद मिश्रा ने कहाकि सनातन धर्म का मूल सूत्र ह्यसर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया: है। इसका तात्पर्य केवल अपने सुख, समृद्धि या कल्याण की इच्छा करना नहीं, बल्कि समस्त विश्व के कल्याण की कामना करना है। सनातन परंपरा में व्यक्ति का नहीं, बल्कि विश्व का कल्याण सर्वोपरि माना गया है। इसी भावना के कारण हमारे धर्म में वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा जन्म लेती है, जो बताती है कि संपूर्ण जगत एक परिवार है और हम सबके सुख-दु:ख साझा हैं। सुदामा चरित्र और श्रीकृष्ण-सुदामा मिलन का वर्णन करते आचार्य पं. गोविंद मिश्रा ने बताया कि सुदामा का त्याग, सादगी और मित्रता का भाव आज भी समाज को आदर्श मार्ग दिखाता है। वहीं पूरे दिन भक्ति का उत्सव दिखाई दिया। मंच पर प्रस्तुत भजनों ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।





