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श्रद्धा पूर्वक मनाया गया गुरु रामदास जी का प्रकाश उत्सव

’रहिरास साहिब का पाठ हुआ, गायन सुन संगत हुई निहाल
लखनऊ। शहर के गुरुद्वारों में बुधवार को साहिब श्री गुरु रामदास महाराज का प्रकाश उत्सव जन्मोत्सव श्रद्धा सत्कार से मना। इस मौके पर गुरुद्वारों में विशेष दीवान हुआ। दीवान व शबद कीर्तन के बाद गुरु के लंगर का प्रसाद लोगों ने ग्रहण किया।
नाका गुरुद्वारा में शाम का विशेष दीवान रहिरास साहिब के पाठ के बाद हजूरी रागी भाई राजिन्दर सिंह ने रामदास सरोवर नाते, सब उतरे पाप कमाते… गायन कर संगत को नाम सिमरन करवाया। भाई गुरमीत सिंह उना साहिब वालों ने शबद सा धरती भइी हरियावली जिथै मेरा सतिगुरु बैठा आइि… शबद कीर्तन गायन कर समूह संगत को निहाल किया। मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने बताया कि गुरु रामदास का जन्म 1534 को चूना मण्डी लाहौर पाकिस्तान में हुआ। उनके पिता का नाम हरदास और माता दया कौर था। सिमरन साधना परिवार के बच्चों ने शबद धनुं धनुं रामदास गुरु जिन सिरिआ तिनै सवारिआ… गायन कर संगत को मुग्ध कर दिया। दीवान समापन पर लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बग्गा ने समूह संगत को गुरु रामदास के जन्मोत्सव की बधाई दी।

सदर गुरुद्वारे में सजा विशेष दीवान
आज गुरुद्वारा सदर में श्री गुरु राम दास जी के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में विशेष दीवान का आयोजन प्रात: 6 बजे से 9:30 बजे तक किया गया। ज्ञानी जगजीत सिंह जी ने गुरु राम दास जी के जीवन और शिक्षाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि गुरु राम दास जी चौथे सिख गुरु थे, जिन्होंने अमृतसर नगर की स्थापना की और हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) का नींव पत्थर रखा। उनकी वाणी गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित है, जिसमें प्रेम, सेवा और विनम्रता का संदेश मिलता है। दीवान के उपरांत गुरु का लंगर श्रद्धालुओं को वितरित किया गया।

यहियागंज गुरुद्वारे में शबद कीर्तन सुन संगत हुई निहाल

लखनऊ। ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में श्री गुरु रामदास जी का प्रकाश पर्व शाम 7:00 से 11:00 तक बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया गया। गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि डॉ गुरमीत सिंह के संयोजन में रुद्रपुर से आए भाई गुरविंदर सिंह जी शबद कीर्तन द्वारा संगतो को निहाल किया। हेड ग्रंथी ज्ञानी परमजीत सिंह ने सभी संगतो को प्रकाश पर्व की बधाई दी। गुरु रामदास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए मीत ग्रंथि ज्ञानी गुरमीत सिंह ने बताया कि धन श्री गुरु रामदास महाराज जी का जन्म 1534 ईस्वी में माता दया कौर और पिता हरदास जी के घर चुना मंडी लाहौर में हुआ। बचपन में ही गुरु रामदास महाराज जी को उनके माता और पिताजी सदैव बिछुड़ा देकर संसार में अकेला छोड़ गए थे फिर नानी मां के साथ वह गांव बासरके आ गये। गुरु रामदास महाराज जी छोटी उम्र में ही किरत करने लग गए थे तब उन्हें गुरु अमरदास महाराज जी मिले कुछ समय के बाद वह गुरु अमरदास महाराज जी की शरण गोविंदवाल साहिब चले गए वहां पर रहकर गुरु रामदास महाराज जी ने बहुत सेवा की नाम जपा और एक दिन ऐसा आ गया था कि गुरु अमरदास महाराज जी की कृपा हुई और वह चौथे गुरु साहिब बन गए अगर गुरु रामदास महाराज जी के जीवन से सीखना हो तो हम यह सीख सकते हैं कि गुरु रामदास महाराज जी बचपन में ही अकेले रह गए तब उन्होंने अपनी नानी के साथ रहकर बचपन में ही किरत करने लग गए किरत करते-करते वह प्रभु को हमेशा याद रखते थे और उनके जीवन में से हमें एक शिक्षा और मिलती है गुरु रामदास महाराज जी कहते हैं कि प्रभु हमारी बिध को हमारी हालत को बहुत अच्छे तरीके से जानता है इसलिए उसके चरणों में ही हमेशा अरदास करनी चाहिए।

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