पीएम केयर्स, विवाद थमा

लोकतंत्र में सरकार और विपक्ष दोनों की राष्ट्रीय आकांक्षा के प्रति समान जिम्मेदारी होती है। सरकार संख्या बल अर्थात बहुमत से बनती है। उसका दायित्व सरकार चलाना, विकास की नीतियां बनाना है। जो संख्या बल में पिछड़ जाये तो विपक्ष की भूमिका मिलती है। विपक्ष के कार्य कई बार सरकार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। विपक्ष को सरकार के कामों पर निगरानी रखने के साथ ही देश की समस्याओं को सरकार के सामने रखना भी होता है।

हाल के वर्षों में विपक्ष लगातार ऐसे विवाद खड़ा कर उनको प्रतिष्ठा का विषय बना लेता है जिसके लिए उपयुक्त समय नहीं होता। राफेल विवाद को जिस तरह विपक्ष ने तूल दिया और सुप्रीम कोर्ट में दो-दो बार हार का सामना पड़ा, उससे विपक्ष की भारी किरकिरी हुई थी। अब पीएम केयर्स फंड को लेकर भी विपक्ष को फिर असहज होना पड़ा है।

दरअसल पीएम केयर्स फंड पर विपक्ष ने ऐसे समय तमाशा खड़ा कर दिया जब इसकी जरूरत नहीं थी। अगर पीएम केयर्स पर विपक्ष को आपत्ति थी या इसमें आने वाले फंड के उपयोग को लेकर शंका थी तो उसे फंड के खर्च होने का इंतजार करना चाहिए। जब इसमें कोई घपला या अनियमितता सामने आती तो विपक्ष कोराना संकट के बाद बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकता था।

लेकिन जब लगातार कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। देश संकटों से लड़ रहा है, तब कोरोना से लड़ने के लिए बनाये गये पीएम केयर्स फंड पर इतना वितण्डा खड़ा करना उचित नहीं था। बहरहाल विपक्ष बड़ी राजनीतिक चूक करते हुए सुप्रीम कोर्ट गया जहां उसे हार का सामना करना पड़ा। कोरोना महामारी से लड़ने, पीड़ितों को मदद देने और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के चार दिन बाद 28 मार्च को पीएम केयर्स फंड की घोषणा की गयी थी और प्रधानमंत्री ने इसमें दिल खोलकर दान करने की अपील की थी। पीएम की अपील का अच्छा असर भी हुआ और कुछ ही दिनों में टाटा ग्रुप ने 1500 करोड़, रिलायंस ने 500 करोड़ रुपये सहित बड़ी संख्या में कंपनियों ने इसमें दान किया।

वित्तीय वर्ष 2019-20 में इसमें 3076 करोड़ रुपये आये। अब तक इस फंड से 3100 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं। जो खर्च किये गये वे सीधे सरकारों एवं संस्थाओं को दिये गये हैं। इसमें 2000 करोड़ रुपये 50000 वेंटीलेटर्स के लिए, 1000 करोड़ प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए और 100 करोड़ रुपये वैक्सीन के विकास में मदद के लिए प्रदान किये गये। ये सभी खर्च जरूरी हैं और इसी के लिए यह फंड बना है। जब फंड का कोई दुरुपयोग नहीं हुआ तो फिर विवाद क्यों?

अगर सरकार पीएम केयर्स के माध्यम से कोरोना से लड़ना चाहती है तो इसमें बुरा क्या है? यह सरकार का अधिकार है कि वह प्रधानमंत्री राहत कोष से पैसे दे, पीएम केयर्स फंड से दे या फिर राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से। एक सरकार को इतना तो अधिकार है ही। पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड है जिसमें पीएम अध्यक्ष और गृह, वित्त एवं रक्षा मंत्री ट्रस्टी हैं।

सरकार कोरोना के लिए मदद पीएम केयर्स के माध्यम से देती-लेती है या किसी और फंड के माध्यम से यह उसका अधिकार है। इस मुद्दे को एनजीओ के जरिये सुप्रीम कोर्ट तक ले जाना ठीक नहीं था। इसे बेवजह तूल देकर विपक्ष ने एक और हार अपने नाम कर ली है। हां फंड का दुरुपयोग होने पर अगर विपक्ष सवाल उठाता और आंदोलन खड़ा करता तो उसे जनता का साथ भी मिलता और कानून भी उसके साथ रहता।

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