दिल्ली में दृश्यता घटने के लिए प्लास्टिक जलाया जाना मुख्य कारण : अध्ययन

नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में कहा गया है कि प्लास्टिक जलने के कारण पैदा होने वाले क्लोराइड युक्त अति सूक्ष्म कण सर्दी के दिनों में दिल्ली समेत उत्तर भारत में धुंध और कोहरे के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

शोध पत्रिका नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन से उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता और दृश्यता को बेहतर करने के लिए नीतियां बनाने में मदद मिल सकती है। पूर्व में कई अध्ययनों में भी कहा गया था कि 2.5 माइक्रोमीटर (पीएम 2.5) से कम व्यास वाले अति सूक्ष्म कण प्रदूषण के मुख्य कारक होते हैं। दिल्ली समेत गंगा के मैदानी क्षेत्रों में धुंध और कोहरा के लिए मुख्य रूप से यही कण जिम्मेदार होते हैं। हालांकि, पीएम 2.5 की भूमिका और राष्ट्रीय राजधानी में धुंध और कोहरा के छाने के संबंध में विस्तृत अध्ययन नहीं हो पाया है।

एक नए अध्ययन में पाया गया कि क्लोराइड वाले अतिसूक्ष्म कण क्षेत्र में धुंध और कोहरा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। आईआईटी मद्रास में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सचिन एस गुंथे ने कहा, हमें पता चला कि दिल्ली के ऊपर छाने वाली धुंध में पीएम 2.5 का द्रव्यमान बीजिंग समेत दुनिया के दूसरे प्रदूषित शहरों की तुलना में बहुत कम है।

दिल्ली के प्रदूषण और वातावरण की स्थिति को समझना बहुत जटिल है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन ने प्लास्टिक अपशिष्ट जलाने या अन्य औद्योगिक प्रक्रिया के कारण हाइड्रोक्लोरिक एसिड (एचसीआई) उत्सर्जन से दिल्ली के आसपास दृश्यता घटने या धुंध छाने के बारे में विश्लेषण के महत्व को रेखांकित किया है।

गुंथे ने कहा कि नवीनतम अध्ययन से कोहरा के निर्माण में पीएम 2.5 की भूमिका के बारे में और जानकारी मिली है। इससे नीति निर्माताओं को राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता और दृश्यता को ठीक करने के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। अध्ययन करने वाली इस टीम में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका और ब्रिटेन के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधार्थी भी थे।

आईआईटी मद्रास में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आर रविकृष्णा ने कहा कि अध्ययन के तहत शुरुआती कुछ दिनों के नतीजे से स्पष्ट है कि दिल्ली का वातावरण बिल्कुल अलग है। अध्ययन में शामिल रहे रविकृष्णा ने कहा, दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरी क्षेत्रों में सल्फेट का स्तर सबसे ज्यादा रहने की आशंका रहती है, लेकिन हमने पाया कि अति सूक्ष्म कणों में क्लोराइड का स्तर अधिक था।

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