दुसरे देश की सीमाओं में घुसपैठ करना, दूसरे देश के भूभाग को अपना बताकर डरा-धमका कर हड़पने की साजिश करना और विस्तारवाद की महत्वाकांक्षा में पूरी दुनिया को चिढ़ाने और परेशान करने की चीन की फितरत रही है। युद्धों में मात खाने, अपने तमाम सैनिको का खून बहाने के बाद भी चीन डराने-धमकाने की हरकत करता रहता है। 1962 के बाद जब भी सीमा पर चीन ने हरकत की है तो भारत ने उसी की भाषा में जवाब दिया है।
चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वहां भी उसे हार का सामना करना लेकिन अपने आकार-प्रकार और आर्थिक शक्ति के कारण चीन घमंडी और बेलगाम हो गया है और इसी का नतीजा है कि भारत जैसे शांतिप्रिय देश को उसने युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी के विश्वास घात के कारण 20 जवानों की जो शहादत हुई है उससे पूरा देश गुस्से में है और अधिकतम कीमत चुकाकर भी बदला लेना चाहता है।
जब दो देशों के बीच युद्ध होता है तब आर्थिक, सैनिकों की संख्या जैसी चीजों से युद्ध का फैसला नहीं होता है बल्कि युद्ध में हौसले की विजय होती है और चीन को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उसने एक बड़ी गलती कर दी है जिसकी कीमत उसे हर हाल में चुकानी पड़ेगी। 15-16 दिसम्बर की रात में चीन ने विश्वासघात करके भारतीय सेना हमला कर किया जिसमें 20 जवान शहीद हो गये लेकिन चीन इस धोखे के बाद भी जिस तरह हमारे जवानों ने चीन को सबक सिखाया है उससे चीन को 2020 के भारत की क्षमता का काफी हद तक अंदाजा हो गया होगा।
इस विश्वासघात के बाद चीन भले ही अपने बयानों में गांधी और बुद्ध को एक साथ उतार दे लेकिन वह ऐसा भेड़िया है जिसके मुंह से शांति की बात हमेशा साजिश ही लगती है। चीन ने विश्वासघात का जो जख्म दिया है उससे चीन की बातों पर भारत भरोसा नहीं कर सकता है। क्योंकि लद्दाख में तनाव को खत्म करने के लिए टॉप मिलिटरी लेबल पर जो वार्ता हुई थी उसमें सहमति बनी थी कि चीन की सेना पीछे हटेगी लेकिन चीन पीछे भी नहीं हटा और हमले की साजिश भी कर बैठा।
इसलिए अब चीन से वार्ता का कोई महत्व नहीं रह जाता है, अब चीन को उसी की भाषा में जवाब देना होगा। वैसे भी देश कायर होकर या डरकर बैठ जाता है तो ऐसी कायरता से शांति नहीं मिल सकती है। शांति के लिए युद्ध करना पड़ता है और बल का प्रदर्शन आज की दुनिया का यथार्थ है। चीनी साजिश के 36 घंटे बाद भारत के प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में बहुत सख्त लहजे में संदेश भी दे दिया है कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।
भारत शांति चाहता है लेकिन उकसाने पर माकूल जवाब भी देने में सक्षम है। लगभग इसी भाषा का प्रयोग सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने भी सैनिको ंको श्रद्धांजलि देते हुए किया है। विदेश मंत्री जयशंकर ने चीनी समकक्ष यांव वी के साथ बातचीन में भी स्पष्ट कर दिया है कि जो कुछ एलएसी पर हुआ वह चीनी सुनियोजित साजिश है और इससे द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ेगा।
चीन के विश्वास घात के बाद जिस तरह टॉप लेबल पर बैठकों का दौर चल रहा है, सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी है और सैन्य तैयारियां तेज की गयी हैं उससे स्पष्ट है कि सरकार चीन के खिलाफ सख्त और बड़ा कदम उठा सकती है। देश को इसके लिए मानसिकस, आर्थिक और भौतिक रूप से तैयार रहना चाहिए।





