शुभारम्भ समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया
लखनऊ। गोमतीनगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित जनजाति भागीदारी उत्सव के दूसरे दिन का शुभारम्भ समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। दीप प्रज्वलन के बाद मंत्री असीम अरुण ने मंच के पीछे सोनभद्र के कर्मा नृत्य के कलाकारों से भेंट की और उनके साथ उनका पारंपरिक वाद्य मांदर बजाया। मंत्री का यह सहभाग जनजातीय कला और कलाकारों के प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित करता है। उत्सव की शुरूआत राजस्थान से आए बहुरूपिया कलाकार शमशाद की प्रस्तुति से हुई। उन्होंने अलादीन के जिन की भूमिका निभाते हुए दर्शकों का मनोरंजन किया। उनका संवाद अलादीन का जिन आज बोतल से बाहर आ गया सुनते ही सभागार में मुस्कान फैल गई और उनके चुटकुलों पर दर्शकों ने भरपूर आनंद लिया। इसके बाद जादूगर साशा ने बच्चों और बड़ों के लिए आकर्षक जादू प्रस्तुतियाँ दीं। बाल दिवस के अवसर पर बच्चों के लिए किए गए विशेष प्रदर्शन को खूब सराहा गया। साशा कई फिल्मों जैसे मुल्क, जॉली एलएलबी 2, दबंग सरकार, कंजूस मक्खीचूस तथा टीवी कार्यक्रमों क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया में भी भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने हवा में से रुपए निकालने और खाली बॉक्स से फूल निकालने जैसे कई रोचक जादूई करतब दिखाए। पीलीभीत से आए कलाकारों ने रंजीश राणा के निर्देशन में झींझी नृत्य प्रस्तुत किया। 15 कलाकारों द्वारा दी गई इस प्रस्तुति में समाज में एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश था। लाड़े सांवरिया और अन्य पारंपरिक गीतों पर प्रस्तुत नृत्य ने दर्शकों को भाव-विभोर किया। कार्यक्रम में झींझी मइया को समर्पित अनाज एकत्र करने की परंपरा और दीपकयुक्त मटके के साथ महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य भी दिखाया गया। समूह की किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाये भजन प्रस्तुति को भी दर्शकों ने सराहा। असम से आए दल ने स्वागता शर्मा के निर्देशन में बोडो नृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य में बोडो जनजाति की प्रकृति-प्रेम से जुड़ी भावना और उनकी स्वतंत्र लय का सुंदर प्रदर्शन देखने को मिला। सोनभद्र से आए अमरजीत सिंह खरवार के नेतृत्व में कर्मा नृत्य प्रस्तुत किया गया। सावन माह में किया जाने वाला यह पारंपरिक नृत्य कर्म देवता की आराधना को दशार्ता है। 15 कलाकारों द्वारा की गई प्रस्तुति में मादल वादन और समूहगत तालबद्धता विशेष रूप से आकर्षक रही। राजस्थान के भंवरू खान लंगा एंड पार्टी ने मांड गायन की प्रस्तुति से वातावरण को लोकसंगीत की सुगंध से भर दिया। केसरिया बालम और निंबूड़ा जैसे गीतों ने दर्शकों का मन मोह लिया। मोरचंग, ढोलक, खड़ताल, भपंग और सिंधी सारंगी जैसे वाद्यों की जुगलबंदी ने प्रस्तुति को जीवंत बना दिया। समूह ने होलिया में उड़े रे गुलाल पर रंगारंग नृत्य भी प्रस्तुत किया। सोनभद्र से आए अनिल के नेतृत्व में गरदबाजा वादन ने घसिया जनजाति की संगीत परंपरा को सामने रखा। विवाह आदि अवसरों पर बजाए जाने वाले गरदबाजा की धुनों को 13 कलाकारों ने पारंपरिक शैली में प्रस्तुत किया। छत्तीसगढ़ से रूपराय नेताम और संजय नेताम के नेतृत्व में मांदरी नृत्य प्रस्तुत किया गया। इस नृत्य में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने की परंपराएँ, शादी-ब्याह की सांस्कृतिक विधियाँ और धान कटाई के समय की परंपराएँ चित्रित की गईं। मांदरी, निसान, ताशक और चुटकुली कोटकार जैसे परंपरागत वाद्यों का प्रयोग प्रस्तुति की मुख्य विशेषता रहा। ओडिशा की डुरुआ जनजाति की प्रस्तुति प्रतिमा रथ के नेतृत्व में हुई। 16 कलाकारों ने विशेष दारू पूजा के उपरांत होने वाली उस जनजातीय परंपरा का मंचन किया जिसमें दो बच्चे प्रतीकात्मक संघर्ष करते हैं। यह प्रस्तुति अपनी सांस्कृतिक गहराई के कारण दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का विषय बनी। समरीन के कुशल संचालन में हुए इस यादगार शाम में संस्कृति निदेशालय की अपर निदेशक डॉ. सृष्टि धवन, सहायक निदेशक रीनू रंगभरी तथा उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।





