नई दिल्ली। भारत ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली द्वारा पारित प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि यह पड़ोसी देश द्वारा अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति किए जा रहे दुर्भावनापूर्ण व्यवहार एवं उत्पीडऩ से ध्यान हटाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रम फैलाने का निष्फल प्रयास है।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि कल, पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली द्वारा पारित प्रस्ताव में जिन मामलों का उल्लेख किया गया है, वे पूरी तरह से भारत के आंतरिक मामले हैं। मंत्रालय ने कहा, हम स्पष्ट तौर पर इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि पाकिस्तान द्वारा पारित यह प्रस्ताव जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख के मुद्दे पर उसके द्वारा चलाए जा रहे भ्रामक अभियान की ही दिशा में किया गया एक दुष्प्रयास है।
बयान के अनुसार, उक्त प्रस्ताव का उद्देश्य भारत में सीमा पार से चलाई जा रही आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान के सतत समर्थन को न्यायोचित ठहराना है। हमें विश्वास है कि पाकिस्तान अपने ऐसे दुष्प्रयासों में विफल होगा। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस प्रस्ताव में पाकिस्तान द्वारा अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ किए जा रहे दुर्भावनापूर्ण व्यवहार व उत्पीडऩ से ध्यान हटाने के लिए एक निष्फल प्रयास किया गया है। पाकिस्तान में इन अल्पसंख्यकों, चाहे वे हिंदू हों या ईसाई या सिख या कोई अन्य समुदाय, उनकी मौजूदा जनसंख्या ही वास्तविक स्थिति बयान कर रही है।
बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने अपने प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के उद्देश्यों के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रम फैलाने का प्रयास किया है। मंत्रालय ने उक्त प्रस्ताव को भ्रामक बताते हुए जोर दिया कि इस अधिनियम के तहत चुनिंदा देशों के उन विदेशियों को नागरिकता प्रदान की जानी है जो उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यक हैं। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम में किसी भी भारतीय की नागरिकता को उसके धर्म या आस्था को ध्यान में रखते हुए छीने जाने का कोई प्रावधान नहीं है।