वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ। SGPGIMS के प्रशासन विभाग ने लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के सहयोग से प्रमुख डॉ. अर्चना शुक्ला गुरुवार को स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आगेर्नाइजेशन – उत्तर प्रदेश (एसओटीटीओ-यूपी) और अस्पताल के तत्वावधान में एक जागरूकता सत्र का आयोजन किया। 13वें भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में हुआ।
कार्यक्रम कुलपति प्रो आलोक कुमार राय के मुख्य भाषण के साथ आगे बढ़ा। डॉ. आर. हर्षवर्द्धन ने प्रारंभिक टिप्पणी की। उन्होंने प्रतिभागियों को महत्वपूर्ण आंकड़ों से अवगत कराया कि भारत में हर साल लगभग 5 लाख लोगों को अंगदान की आवश्यकता होती है। प्रत्यारोपण के लिए दानदाताओं की उपलब्धता की कमी के कारण देश भर में प्रतिदिन होने वाले लगभग 300 दुर्घटनाओं में से लगभग 283 लोगों की मृत्यु अंग न मिल पाने के कारण हो जाती है जबकि लगभग 17 लोगों को ही अंग दान से जीवन मिल पाता है। दर्शकों के लिए अंग और ऊतक दान पर कुछ प्रेरक वीडियो चलाये गये।
SGPGIMS के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो राजन सक्सेना ने अंग और ऊतक प्रतिज्ञा: एक आंदोलन बनाने का समय विषय पर प्रस्तुति दी। उन्होंने अंगदान का संकल्प लेने पर जोर दिया, अंगदान के माध्यम से हम मृत्यु के बाद भी जीवित रह सकते हैं। उन्होंने ब्रेन स्टेम डेथ के बारे में बुनियादी जानकारी भी दी। SGPGIMS के चीफ एटीसी और विभागाध्यक्ष प्रो. राज कुमार ने विभिन्न प्रकार के अंग दान जैसे जीवित अंग दान और मृत अंग दान के बारे में बताया। नेफ्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो नारायण प्रसाद ने प्रकाश डाला कि 17 हजार किडनी, 50 हजार लीवर, 12 हजार अग्न्याशय भारत में अंग दान की वर्तमान आवश्यकता है।
हेपेटोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित गोयल ने 10 सबसे आम मिथकों के बारे में बात की, जिनमें अंग दान से शरीर में उत्परिवर्तन होता है, धर्म अंग दान पर प्रतिबंध लगाता है आदि। उन्होंने कोमा और मस्तिष्क मृत्यु के बीच अंतर समझाया। प्रतिभागियों में से दो लोगों ने अंगदान का संकल्प लिया। कार्यक्रम में 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए।
इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों के अलावा, संबद्ध महाविद्यालयों के संकाय सदस्यों के साथ विभिन्न महाविद्यालयों के छात्र उपस्थित थे। लखनऊ विश्वविद्यालय के भिन्न विभागों के सभी प्रशासनिक प्रमुख भी सत्र में शामिल हुए। सभी प्रतिभागियों को ई प्रमाण पत्र दिये गये।