कृषि सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए पास किये गये तीन विधेयकों पर मचे घमासान, सांसदों के निलंबन के विरोध में विपक्ष के बहिष्कार और महामारी के चलते संक्षित सत्र के बीच सरकार ने मौका देखकर बहुप्रतीक्षित श्रम सुधारों से जुड़े तीन विधेयकों को पास करा लिया। विपक्ष आठ सांसदों के हक की लड़ाई लड़ता रहा और सरकार ने बिना किसी खास बहस के 40 करोड़ श्रमिकों के जीवन को प्रभावित करने वाले कानून पर फैसला कर दिया।
यह विपक्ष की ऐतिहासिक चूक है। 1991 में जब नरसिम्हा राव-मनमोहन सिंह की जोड़ी ने देश में व्यापक आर्थिक सुधारों का आगाज किया तभी से व्यापक श्रम सुधार का प्रयास सरकारें कर रही थीं। पुराने श्रम कानून जो मूलत: श्रमिकों के कल्याण, रोजगार एवं आर्थिक सुरक्षा पर केन्द्रित थे, उनको खत्म करने या शिथिल करने की मांग कारपोरेट जगत तीन दशकों से कर रहा था। आधुनिक आर्थिक परिवेश में यह श्रम सुधार जरूरी भी हैं लेकिन इनको लागू करने से पहले देश में श्रमिकों के लिए एक व्यापक आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा का ढांचा विकतिस करने की आवश्यकता थी।
देश में अभी ऐसा कोई कल्याणकारी ढांचा विकसित नहीं है कि अगर कोई श्रमिक छंटनी का शिकार होता है तो उसे रोजी-रोटी की सुरक्षा मुहैया करायी जा सके। विकसित देशों की सरकारें श्रमिकों के हित में अनेक योजनाएं चला रही हैं जिसमें छंटनी होने पर उसे बच्चों की फीस, इलाज और भूखों रहने की चिंता नहीं होती। सरकार तुरंत श्रमिकों की मदद करती है और इस कारण छंटनी की प्रक्रिया से गुजरने वाले श्रमिकों के सामने कोई बड़ा संकट नहीं आता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहां छंटनी के बाद श्रमिक के सामने दो जून की रोटी का संकट तुरंत खड़ा हो जाता है।
ऐसे में जब सरकार श्रम सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए तीन कानून- विकासजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020, लेकर आयी थी जिसमें 29 से अधिक श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समाहित कर इनको शिथिल करने का प्रावधान है, तो विपक्ष को यह बात उठानी चाहिए कि सरकार अगर कारपोरेट को छंटनी करने की छूट देती है तो उसे एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा स्कीम भी प्रस्तावित करनी चाहिए जिससे श्रमिकों को भुखमरी का शिकार न होना पड़े।
केन्द्र सरकार औद्योगिक विकास तेज करने, रोजगार बढ़ाने, निवेश और एफडीआई लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और कारपोरेट की मांग के अनुरूप ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, टैक्स सुधार, कारपोरेट टैक्स में कटौती जैसी पहल कर चुकी है। अब उसने श्रम सुधारों को लागू करके कारपोरेट की सारी मांगे पूरी कर दी हैं। नये कानून में न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कुछ सकारात्मक प्रावधान भी हैं लेकिन मनमानी छंटनी का अधिकार देकर एक तरह से सरकार ने श्रमिकों को पूरी तरह कारपोरेट के हवाले भी कर दिया गया है।