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हिंदी में मुक्त छंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं निराला : प्रो. पवन

निराला की पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया नमन

लखनऊ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लखनऊ महानगर के कार्यकतार्ओं ने छायावाद के कवियों में अपना प्रमुख स्थान रखने वाले पद्म भूषण एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित महाकवि सूर्य कांत त्रिपाठी ‘निराला ” की पुण्यतिथि पर आईटी.चौराहे पर स्थित ‘ निराला” की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया,जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय हिंदी एवं भारतीयभाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो० पवन अग्रवाल व अभाविप अवध प्रांत के शोध कार्य प्रमुख डॉ० जितेंद्र शुक्ला विशेष रूप से उपस्थित रहे ।
विभागाध्यक्ष प्रो.पवन अग्रवाल ने निराला को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि महाकवि निराला छायावादी कवियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं,निराला जी का जन्म बंगाल के महिषदल में हुआ उनका जीवन जन्म से संघर्षों के साए में रहा निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ।
उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। 1918 में स्पेनिश फ्लू इन्फ्लूएंजा के प्रकोप में निराला ने अपनी पत्नी और बेटी सहित अपने परिवार के आधे लोगों को खो दिया।शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला जी की बहु चर्चित कविता वह तोड़ती पत्थर देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर यह कविता मजदूर के कहानी को बयां करते हुए निराला की हृदय की गहराई को दशार्ती है। शोध कार्य प्रमुख डॉ० जितेंद्र शुक्ला ने महाप्राण को नमन करते हुए कहा कि महाप्राण नाम से विख्यात निराला छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक हैं। उनकी कीर्ति का आधार सरोज-स्मृति, राम की शक्ति-पूजा और कुकुरमुत्ता सरीखी लंबी कविताएँ हैं; जो उनके प्रसिद्ध गीतों और प्रयोगशील कवि-कर्म के साथ-साथ रची जाती रहीं। उन्होंने पर्याप्त कथा और कथेतर-लेखन भी किया। बतौर अनुवादक भी वह सक्रिय रहे। वह हिंदी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। निराला जी ने सरोज स्मृति में अपनी पुत्री के असामयिक देहावसान हो जाने के बाद वह लिखते हैं धन्ये, मैं पिता निरर्थक का, कुछ भी तेरे हित न कर सका! जाना तो अर्थागमोपाय, पर रहा सदा संकुचित-काय लख कर अनर्थ आर्थिक पथ पर हारता रहा मैं स्वार्थ-समर।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मीडिया संयोजक व हिंदी साहित्य के पूर्व छात्र रहे विकास तिवारी ने निराला को नमन करते हुए कहा कि निराला का व्यक्तित्व घनघोर सिद्धांतवादी और साहसी था। वह सतत संघर्ष-पथ के पथिक थे। यह रास्ता उन्हें विक्षिप्तता तक भी ले गया। उन्होंने जीवन और रचना अनेक संस्तरों पर जिया, इसका ही निष्कर्ष है कि उनका रचना-संसार इतनी विविधता और समृद्धता लिए हुए है। हिंदी साहित्य संसार में उनके आक्रोश और विद्रोह,उनकी करुणा और प्रतिबद्धता की कई मिसालें और कहानियाँ प्रचलित हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पुण्य तिथि पर आयोजित इस श्रद्धांजलि एवं माल्यार्पण कार्यक्रम में मनकामेश्वर वार्ड, बाबूगंज के पार्षद रंजीत सिंह अभाविप अवध प्रांत से जयव्रत राय, शांडिल्य सूरज त्रिपाठी,नवनीत यादव, अर्जुन सिंह,ज्ञानेंद्र सिंह, शुभांश शुक्ला,प्रियांशु पांडेय, अपूर्व,अभिषेक सिंह सहित तमाम छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे।

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