विश्वभारती (पश्चिम बंगाल)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक अहम पड़ाव करार देते हुए शुक्रवार को कहा कि यह पुरानी बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही विद्यार्थियों को उनका सामर्थ्य दिखाने की पूरी आजादी देती है। विश्वभारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इस विश्वविद्यालय में जो व्यवस्थाएं विकसित की थीं वह शिक्षा व्यवस्था को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करने और आधुनिक बनाने का एक माध्यम थी।
मोदी ने कहा, आज भारत में जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, वह भी पुरानी बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही, विद्यार्थियों को अपना सामर्थ्य दिखाने की पूरी आजादी देती है। यह शिक्षा नीति आपको अलग-अलग विषयों को पढऩे की आजादी देती है। यह शिक्षा नीति, आपको अपनी भाषा में पढऩे का विकल्प देती है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति उद्यमिता और स्वरोजगार के साथ ही शोध और नवोन्मेष को भी बढ़ावा देती है।
उन्होंने कहा, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में यह शिक्षा नीति भी एक अहम पड़ाव है। प्रधानमंत्री ने कहा, भारत की आत्मनिर्भरता, देश की बेटियों के आत्मविश्वास के बिना संभव नहीं है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहली बार जेंडर इंक्लूसन फंड की भी व्यवस्था की गई है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने विश्व भारती विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक व प्रेरणादाई विरासत का उल्लेख करते हुए यहां के छात्रों से विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए गांवों के किसानों और शिल्पकारों के उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार उपलब्ध कराने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, मैं इस प्रेरणादाई विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों से आग्रह करता हूं कि वे इस संस्था द्वारा गोद लिए गए गांवों के किसानों और शिल्पकारों के उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार उपलब्ध कराएं। यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में एक कदम होगा। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिए विश्व भारती सिर्फ ज्ञान देने वाली एक संस्था नहीं थी बल्कि भारतीय संस्कृति के शीर्षस्थ लक्ष्य तक पहुंचने का माध्यम भी थी।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल ने अतीत में भारत के समृद्ध ज्ञान-विज्ञान को आगे बढ़ाने में देश को नेतृत्व दिया और अब विश्व भारती को भारत की विश्व कल्याण की भावना का एहसास दुनिया के देशों को कराने के लिए देश की शिक्षण संस्थाओं का नेतृत्व करना चाहिए। देश के सबसे पुराने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शुमार विश्व भारती के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह नामचीन विश्वविद्यालय अपने आप में ज्ञान का वो उन्मुक्त समंदर है, जिसकी नींव ही अनुभव आधारित शिक्षा के लिए रखी गई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञान और रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं होती और ये हमेशा याद रखना चाहिए कि ज्ञान, विचार और कौशल, स्थिर नहीं है बल्कि ए सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने कहा, इसमें सुधार की गुंजाइश भी हमेशा रहेगी। लेकिन ज्ञान और शक्ति जिम्मेदारी के साथ आती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञान सिर्फ व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि समाज और देश की धरोहर होती है और जिस प्रकार, सत्ता में रहते हुए संयम और संवेदनशील रहना पड़ता है, उसी प्रकार हर विद्वान को भी जिम्मेदार रहना पड़ता है।
छात्रों को झकझोरने की कोशिश के तहत उन्होंने कहा कि उनका ज्ञान और कौशल एक समाज और देश को गौरवान्वित भी कर सकती है तो वह समाज को बदनामी और बर्बादी के अंधकार में भी धकेल सकती है। इतिहास और वर्तमान में ऐसे उदाहरणों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, आप देखिए, जो दुनिया में आतंक फैला रहे हैं, जो दुनिया में हिंसा फैला रहे हैं, उनमें भी कई उच्च शिक्षा और कौशल वाले लोग हैं।
दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए दिनरात प्रयोगशालाओं में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर नीयत साफ है और निष्ठा मां भारती के प्रति है तो हर निर्णय किसी ना किसी समाधान की तरफ ही बढ़ेगा। उन्होंने कहा, सफलता और असफलता हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं करती। हो सकता है आपको किसी फैसले के बाद जैसा सोचा था वैसा परिणाम न मिले, लेकिन आपको फैसला लेने में डरना नहीं चाहिए।
इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और विश्व-भारती के कुलाधिसचिव (रेक्टर) जगदीप धनखड़, केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री संजय धोत्रे भी उपस्थित थे। विश्व-भारती की स्थापना 1921 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह देश का सबसे पुराने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक है। मई 1951 में संसद के एक अधिनियम के जरिए विश्व-भारती को केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था। प्रधानमंत्री इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं।