लखनऊ। इतिहास और आधुनिकता का संगम अनोखा होता है। विरासत को सुरक्षित रख आधुनिकता के साथ कदम ताल मिलाकर ही हम अपने गौरवशाली इतिहास को संजी सकते हैं। संगीत के साथ भी कुछ ऐसा ही है। सहद दीवारों और चंदिशों से परे संगीत के शहर में अनोखा मिश्रण देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां सदियों पुराने वाद्य यंत्र को संजोया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ युवाओं में इन वाद्य यंत्र के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। इसका श्रेय लखनऊ के शेख मोहम्मद इब्राहिम को जाता है। वह कई साल से देशभर के दुर्लभ वाद्ययंत्रों को संजो रहे हैं। साथ ही युवाओं को इसके महत्ता और इसकी बारीकिय भी सिखा रहे है। इन दुर्लभ यंत्रों के महत्व और युवाओं में इनके प्रति आकर्षण पर मशहूर तबला वादक शेख मोहम्मद इब्राहिम से खास बातचीत।
युवाओं की बढ़ रही दिलचस्पी:
पुराने और दुर्लभ वाद्य यंत्रों के संरक्षण का काम करने वाले शहीद पथ निवासी मला सादक शेख मोहम्मद इब्राहिम बताते हैं कि बीते कुछ समय में चमेली, दुक्कड़, राम मंडली, हुड़का, मैडल रमनियम नक्कारा, कोरियोनेट जैसे यंत्रों के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है। मैं समय-समय पर पत्रो को लेकर वर्कशॉप करता रहता हूँ। आज से पहले वाओं को इनके नाम तक नहीं पता थे। अब वर्कशॉप में ढेरों छात्र.आते हैं। इनका इतिहास जानने के साथ सौखते भी है। मैं हर साल कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, बनारस, गोरखपुर सहित कई जगहों पर वर्कशॉप करता है। हर वकशॉप में करीब 25 से 30 नए पतना आते हैं। कई सीखने के बाद मेरे साथ प्रस्तुतियां भी देते हैं।
खास हैं पुराने वाद्य यंत्र:
हमारे पुराने वाद्य यंत्र सबसे यूनिक है। आज हम कितने भी आॅटो पैड इस्तेमाल करें लेकिन जब नक्कारा, हारमोनियम, राम कुंडली, चमेली आदि बजते हैं तो उनकी धुनें खुद.ब.खुद लोगों को आकर्षित कर लेती है। साउंड की जो मिठास व असर है, वो नए वाद्य यंत्रों में नहीं। रोजगार के रूप में देखें तो हमें इसको आधुनिकता के साथ जोड़ना होगा अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो ये सब एक दिन लुप्त हो जाएंगे। पुराने वाद्य यंत्रों के साथ फ्यूजन होने से यह तरोताजा रहते हैं। इस ओर ध्यान बना रहे, तभी इसका द्यभविष्य सुरक्षित रहेगा।
दुर्लभ वाद्य के प्रति मेरा रुझान बढ़ा:
मैं 2008 से लखनऊ में हर साल वर्कशॉप करता आ रहा है, जहां तक लोगों के आने का सवाल है तो शहर के साथ लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग सीखने आते हैं। शुरूआत में बहुत कम लोग आते थे। धीरे-धीरे लोगों को पता चला तो उन्होंने आना शुरू किया। मैं स्टेज पर जब इन वाद्ययंत्रों के साथ प्रस्तुति देता था तो लोग आकर पूछते थे कि यह कौन सा वाद्य यंत्र है। लोगों में जिज्ञासा बढ़ी तो ये सीखने आने लगे। मैं अब तक 60 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित कर चुका हूं। इसमें से 10-12 ऐसे कलाकार है, जिन्होंने इसको अपना लिया है। सिराज अहमद कहते हैं 15 साल से मैं तबला वादन कर रहा हूं। दुर्लभ वाद के प्रति मेरा रुझान बढ़ा। तब मैंने इनको सीखना शुरू किया। आज मैं अवध और बुंदेलखंड का पुराना वाच यंत्र राम कुंडली, हुड़का, चमेली बजा रहा हूँ। साथ में उन्नाव में दुर्लभ वाद्ययंत्रों की क्लास भी लेता हूं।
घर पर ही बनाया संग्रहालय
भारत सरकार की ओर से आयोजित खेलो प्रतियोगिता में शेख इब्राहिम से दुर्लभ वाद्य यंत्रों की के साथ अस्तुति दी थी। इसमें उन्होंने चमेली, दुक्कड, पैडल अमोनियम सहित कई दुर्लभ चाद्य यंत्र बजाए थे। सुनकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए थे। इन दुर्लभ वायंत्रों के लिए काम करने वाले शेख इब्राहिम शहर के इकलौते ऐसे कलाकार है, जिन्होंने अलग-अलग राज्यों के दुर्लभ हो चुके 105 वाद्य यंत्रों का घर पर संग्रहालय बनाया है। इसमें ज्यादातर अवध व उत्तर प्रदेश के पुराने वाद्य यंत्र शामिल है। शेख इब्राहिम करीब 125 से अधिक राज्यों के दुर्लभ हो चुके वाद्य यंत्रों को संजोने का काम कर रहे हैं।
यह है दुर्लभ वाद्य यंत्र
चमेली : यह अवध का दुर्लभ वाद्य यंत्र है, आजादी के समय इसको बजाकर देशभक्ति गीत गाए जाते थे। यह मिट्टी का बना होता है, जिस पर खाल मढ़कर बनाया जाता है।
दुक्कड़ : यह एक ताल वाद्य यंत्र है, यह नक्कारे का छोटा स्वरूप होता है. नक्कारे को लकड़ी की छड़ से बजाते हैं जबकि दुक्कड़ को हाथ की अंगुलियों से बजाते हैं। इसको उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने अपनी पूरी उम्र संगत में इस्तेमाल किया है।
राम कुंडली : यह भी अवध और बुंदेलखंड का बहुत पुराना वाद्ययंत्र है। इसको सपेरा बीन बजाने वाले अपने साथ संगत के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
हुड़का : यह डमरू के आकार का होता है, लेकिन इसको गले में डालकर या फिर बगल में दबाकर बजाते हैं। यह डोरियों से कसा होता है इसलिए इसमें कई तरह की धुनें निकलती हैं।
पैडल हारमोनियम : यह नौटंकी का सबसे महत्वपूर्ण वाद्य यंत्र है। नक्कारा और पैडल हारमोनियम के बिना नौटंकी की कल्पना नहीं की जा सकती. बीते कुछ दशकों में जैसे-जैसे नौटंकी का चलन बंद हुआ। वैसे-वैसे यह वाद्ययंत्र भी विलुप्त होने लगे।