वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ। भांजा पुराना है लेकिन मामा नये नये बन रहे है, मामा के कहने पर भांजा मुस्करा के इशारे में कार्य कर दे रहा है। जी हां, आरटीओं कार्यालय ट्रांसपोर्टनगर में एक ऐसा भी कमरा है जहां पर एक भांजा है और उस भांजे के कई मामा है। भांजा मामा को पहचान कर किसी भी कार्य को असानी से कर देता है। इसमें चाहे ट्रेड का कार्य हो या स्कली गाड़ी का फिटनेश हो।
आपने ई-रिक्शा का शोरुम खोला है और आपको आरटीओ से ट्रेड का प्रमाण पत्र चाहिए तो आप आरटीओ में अपनी फाईल जमा कर दिजिए इसके बाद आरआई आपके शोरुम पर आकर मौके का रिपोर्ट देगा। इसके बाद फाईल आरटीओ के पास जायेगी। जिसके बाद फाईल में लगे सभी कागज देखने के बाद उसकी स्वीकृति दे देगा। इसके बाद आपको ट्रेड का प्रमाण पत्र मिल जायेगा। लेकिन ऐसा नही हो रहा है फाईल एआरटीओ के कमरा नम्बर 15 में जाती है इसके बाद भांजा पूरा फाईल को पलट कर देखेगा। फाईल जबतक देखा जायेगा जबतक भांजा को जो जो कागज मिल नही जाता। भांजा के साथ कमरे में बैठे अधिकारी भी भांजे के कहने पर ही चलते है। अब सवाल यह उठता है कि रिपोर्ट आरआई लगाता है और ट्रेड़ प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर आरटीओं का होता है तो फिर फाईल भांजे के कमरे में किसी लिए जाती है।
कागज जांच करने के नाम पर फाइल को क्यो घुमाया जाता है। जहां पर फाईल की कोई जरुरत नही है वहां पर फाइल क्यो जा रही है। इसकी रिपोर्ट एक सप्ताह के अन्दर लिया जायेगा- चंद्रभूषण सिंह, परिवहन आयुक्त