मोंगली का हुआ पारंपरिक शैली में मंचन

भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय के कला मण्डपम में हुआ मंचन
लखनऊ। भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ में अध्ययनरत द्वितीय सेमेस्टर के छात्रों द्वारा पारंपरिक नाट्य परंपरा के विधिवत प्रशिक्षण को प्राप्त करते हुए, नाटक मोंगली का मंचन भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय के कला मण्डपम सभागार में किया।
मोंगली की कथा वस्तु बूढ़े आदमी के पाँच बेटों की पाँच बहुओं में छोटी बहू जो गाने गाती गाँव में घूमती रहती थी, उसे गाँव वाले मोंगली के नाम से पुकारते हैं, फिर एक दिन मोंगली अपने घर से गायब हो जाती है, बूढ़ा ससुर अपनी बहू को सभी जगह खोजता है। जिसे “जराफगला” के नाम से जाना जाता है गहरी नींद में सोते हुए सपना देखा। अगले दिन बूढ़ा जराफगला बोड़ो भाषा में पारंपरिक खेराई की रचना करता है तभी से आज तक खेराई बोडो लोगों की मुख्य पूजा के रूप में जानी जाती है। नाटक की कहानी के आधार पर सामाजिक व्यवहार, रीति-रिवाज, रहन-सहन बोडो लोगों की संस्कृति बन जाते हैं वह सब मोंगली के सपनों की योजना बनाते हैं, इसमें विविध पात्रों का संयोजन हुआ और मानव व्यवहार बनाने का प्रयास करता है यह परंपरा नवीनतम तकनीकी युग से प्रभावित होने के बावजूद वर्तमान समय में स्थिर और अखण्ड है।
नाटक में बोडो भाषा, संकेतों, प्रतीकों का संभव प्रयोग हमें आश्वस्त करता है नाटक मोंगली से बोडो संस्कृति के सामाजिक संरचना का दर्पण है। खाम, शिफूंग, चेर्जा और खोल के सुमधुर संगीत ने दर्शकों का मन मोह लिया। नाटक ने उत्तरपूर्वी भारत की ताकतवर परम्परा को हमने देखा।
विशालदीप, सुरज्जान, आशीष मिश्रा, मानसी, आयुष, अंकित, शैलेश, एकाग्र, अक्षय, अनुराग, नन्दिनी, कर्तुम, दिवाकर, शहंशाह, आशीष यादव, सुंदरम, भारत, आकाश, टोको अकादमी के प्रशिक्षु छात्र एवं हिमांशी, सनश्री, रवम्वी एवं रानी अतिथि बोडो कलाकारों ने मंच पर अभिनय से सम्मोहित किया। फुलेन, जगन्नाथ, निकन्ता, जेंगसर और जीतू राभा ने संगीत की आत्मा को विस्तार दिया, वेशभूषा, मंच सामग्री, मंच और प्रकाश व्यवस्था नाटक के अनुकूल थी। नाटक का आलेख संयोजन, परिकल्पना एवं निर्देशन पबित्र राभा ने किया है आप राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक एवं दपोन द मिरर दल, टांगला, असम के निदेशक हैं।

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