‘मसीहा’ ने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दर्द को किया उजागर

सागर सरहदी की नाट्य रचना मसीहा का नाट्य मंचन
लखनऊ। सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था श्रद्धा मानव सेवा कल्याण समिति लखनऊ द्वारा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली के सहयोग से प्रतिभागी संस्था बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति लखनऊ द्वारा लेखक सागर सरहदी की नाट्य रचना मसीहा का नाट्य मंचन अवध एकेडमी इण्टर कालेज प्रेक्षागृह, न्यू गुलिस्ता कालोनी, लखनऊ में शैली श्रीवास्तव के कुशल निर्देशन में मंचित किया। मंचन से पूर्व मुख्यअतिथि अरविन्द कुमार यादव प्रबन्धक अवध एकेडमी इण्टर कालेज, लखनऊ में दीप प्रज्जवलित कर कलाकारों को आशीर्वाद प्रदान किया। तत्पश्चात नाटक मसीहा का मंचन प्रारम्भ किया गया। सुप्रसिद्ध नाटककार एवं फिल्म के लेखक सागर सरहदी जी का ये नाटक वर्ष 1947 के भारत पाकिस्तान के बंटवारे पर शरणार्थियों की सामाजिक एंव मानसिक एवं मनोदशा को मार्मिक ढंग से उजागर करता है भारत-पाकिस्तान के सरहद पर भारत की ओर से एक शरणार्थी शिविर लगा है जिसमें सारे शरणार्थी निवासित हैं और अपने पिछड़े प्रियजनों का जो बिछड़ गये हैं उनके वहां आने का इंतजार करते हैं सरहद के दोनो तरफ मुल्क के सिपाही तैनात है जो बंटवारे से पहले एक ही गांव से अपना बचपन बिताते हैं। मास्टर संतराम जी पाकिस्तान से आया हुआ एक शरणार्थी अपनी बहन को रोजाना इन्तेजार करता है उसकी बहन को उसके ही शागिर्द उठाकर ले गये हैं, जिन्हें कभी मास्टर संतराम जी ने पढ़ाया था वतन के लिए कुर्बान होने का हौसला भी उन्होंने ही दिया था, माँ-बहन की इज्जत करने की तालीम भी उन्होंने दी थी। कैप्टन भी मास्टर संतराम जी का शिष्य रहा है, इसलिए उनकी बहन को ढूढ़ने में उनकी मदद करता है। मास्टर जी के दु:ख को बांटने की कोशिश करता है। इन्हीं हालातों का मारा एक किरदार गुमनाम भी है जो हर वक्त नशे में रहता है, उन खौफनाक मंजरों को वो कभी याद भी नहीं करना चाहता एक दिन मास्टर जी की बहन लाडली को लेकर कैप्टन आता है जो कि अर्धविक्षिप्त हो गयी है तथा शारीरिक, मानसिक यातनाओं को झेकर लौटती है। भाई से मिलने के बाद जब वो होश में आती है तो उसमें भाई से आँख मिलाने का साहस भी नहीं रहता है और वो उसे देखकर भागती है उसे बचाने मास्टर भी दौड़ता है और अन्तत: दोनो सिपाहियों की गोलियों का शिकार हो जाते हैं जब गुमनाम की चीख-चीख कर लोगों को बतलाता है कि देश का बंटवारा करने वाले राजनेता मसीहा नहीं है, बल्कि मसीहा वो है वे शरणार्थी जिनके अपनों की लाशों पर चंद सियासत दानों ने भारत देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटकर अपने-अपने सरहदरों में लकीरें खड़ी कर देते हैं। मंच पर पाकिस्तानी सिपाही की भूमिका सुमित श्रीवास्तव तथा भारतीय सिपाही की भूमिका में प्रणव श्रीवास्तव एवं मास्टर संतराम की भूमिका में अश्वनी मक्खन, कैप्टन की भूमिका में प्रणय त्रिपाठी, गुमनाम की भूमिका में अनुपम बिसारिया एवं लाडली की भूमिका में अनीता वर्मा आदि समस्त कलाकारों ने अपने भावपूर्ण एवं मार्मिक अभियन से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इससे ये कहा जा सकता है कि नाट्य निर्देशिका शैली श्रीवास्तव के निर्देशन में मंचित नाटक मसीहा रंगदर्शकों पर अमिट छाप छोड़ता है।

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