सौ साल का गौरवमयी चमकदार सफर, लिखी गयी हैं सुनहरी इबारतें, देश को दिये असंख्य अनमोल रतन
लखनऊ। अतीत की सुनहरे और गौरवशाली चादर को विश्व पटल तक फैलाने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह गुरुवार से शुरू हो रहा है। इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे जबकि समापन कार्यक्रम में यहां देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शिरकत करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल माध्यम से समारोह का समापन करेंगे। सौ सालों में देश को क्या नहीं दिया इस विश्वविद्यालय ने।
शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, चिंतक-विचारक, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, क्रांतिकारी, डाक्टर, वकील, पत्रकार, फिल्मकार हर वर्ग के विशिष्ट महानुभावों की थाती संजोये है देश और प्रदेश का यह प्रमुख शिक्षा संस्थान। यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के समृद्ध इतिहास को तो प्रदर्शित करता ही है नगर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से भी एक है। इसका प्राचीन भवन मध्यकालीन भारतीय स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है। इसमें पढ़ने और पढाने वाले अनेक शिक्षक और विद्यार्थी भारत ही नहीं, विदेश में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना 18 मार्च 1921 को लखनऊ में गोमती के तट पर हुई थी। स्थापना में तत्कालीन संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल ‘सर हरकोर्ट बटलर’ तथा अवध के तालुकेदारों का विशेष योगदान रहा। इससे पूर्व अवध के तालुकेदारों ने लार्ड कैनिंग की स्मृति में 27 फरवरी 1864 को लखनऊ में कैनिंग कालेज के नाम से एक विद्यालय स्थापित करने के लिए पंजीकरण कराया। 1 मई 1864 को कैनिंग कालेज का औपचारिक उद्घाटन अमीनुद्दौला पैलेस में हुआ।
प्रारम्भ में 1867 तक कैनिंग कालेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया गया था। बाद में 1888 में इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया गया। सन 1905 में प्रदेश सरकार ने गोमती की उत्तर दिशा मे लगभग 90 एकड़ का भूखंड कालेज को स्थानांतरित किया, जिसे बादशाहबाग के नाम से जाना जाता है। मूलरूप से यह अवध के नवाब नसीरुद्दीन हैदर का निवास स्थान था।
इसी कैनिंग कालेज के परिसर में ‘सैडलर आयोग’ द्वारा लखनऊ में एक आवासीय और अध्यापन विश्वविद्यालय खोलने के प्रस्ताव को तत्कालीन संयुक्त राज्य के उप राज्यपाल सर हरकोर्ट बटलर, महमूदाबाद के राजा मुहम्मद अली खान आदि के प्रयासों से 7 अगस्त 1920 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय की सीनेट ने अतिविशिष्ट बैठक में अपनी सहमति प्रदान की।
सहमति के दो महीनों बात 8 अक्टूबर 1920 को विधान परिषद ने लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना संबधी विधेयक पारित किया, जिसे 1 नवम्बर 1920 को उपराज्यपाल और 25 नवम्बर 1920 को गवर्नर जनरल की मंजूरी मिली। ज्ञानेन्द्र नाथ चक्रवर्ती लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति बनाये गये थे। सन 1922 में इसका पहला दीक्षान्त समारोह आयोजित किया गया। तब से लेकर आज तक लखनऊ विश्वविद्यालय उत्तरोत्तर उन्नति पथ पर अग्रसर है। इसका आकार बढ़ता ही चला गया।
सन 1991 से लखनऊ विश्वविद्यालय का द्वितीय परिसर 75 एकड़ भूमि पर सीतापुर रोड पर प्रारम्भ हुआ, जहाँ वर्तमान में विधि तथा प्रबंधन की कक्षाएं चलती हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की कमेटी ने सर्वांगीण क्षेत्रों में गुणवत्ता के लिए ‘फोर स्टार’ प्रदान किये हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज यहां कला, विज्ञान, वाणिज्य, शिक्षा, ललित कला, विधि और आयुर्वेद सात संकायों से संबद्ध 51 विभाग हैं।
इन संकायों मे लगभग 196 पाठ्यक्रम संचालित है, जिसमें 70 से अधिक व्यावसायिक पाठ्यक्रम स्ववित्तपोषित योजना में संचालित हैं। यहां 38,000 के लगभग छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस समय 72 महाविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। ख्यातिनाम समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव के कुलपतित्व वाले इस विश्वविद्यालय से निकली विभूतियों की जहां तक बात है तो महान अंतराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी केडी सिंह बाबू, सुजीत कुमार, वर्तमान क्रिकेट खिलाड़ी सुरेश रैना और आरपी सिंह, अशोक बाम्बी यहां के विद्यार्थी रहे हैं।
यहीं शिक्षक रहे डा. बीरबल साहनी जैसे महान प्रोफेसर ने वनस्पति विज्ञान की नयी विधा पोलियो बाटनी का आविष्कार तक किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा, योजना आयोग के पूर्व अक्ष्यक्ष केसी पंत, पूर्व मुख्य न्यायधीश एएस आनंद, पूर्व राज्यपाली सुरजीत सिंह बरनाला (तमिलनाडु), सैयद सिब्ते रजी (झारखंड) के अतिरिक्त अनेक पत्रकार, साहित्यकार, वैज्ञानिक, कलाकार, चिकित्सक एवं प्रशासनिक आधिकारी यहाँ के छात्र रहे है।
गर्व का विषय है कि प्रो. टीएन मजूमदार, प्रो. डीपी मुखर्जी, प्रो. कैमरॉन, प्रो बीरबल साहनी, प्रो राधाकमल मुखर्जी, प्रो. राधाकुमुद मुखजी, प्रो. सिद्धान्त, आचार्य नरेन्द्र देव, प्रो. काली प्रसाद, डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, रमेश कुन्तल मेघ, प्रो. शंकरलाल यादव आदि विद्वानों ने अपने ज्ञान के आलोक से लखनऊ विश्वविद्यालय को प्रकाशित किया है। मंगल अभियान की निदेशक डा. रितु कारिधल श्रीवास्तव, सीडीआरआई व सीमैप के निदेशक, आईआईटीआर के निदेशक डा. अशोक धवन तथा सीडीआरआई की मुख्य वैज्ञानिक रितु त्रिवेदी भी यहां के छात्र रहे।
पहली बार रेडियो प्रसारण का गौरव भी इसे प्राप्त हुआ। यहीं के खगोल विज्ञान तथा गणित के प्रो. एएन सिंह 1950 में यहां नक्षत्रशाला की स्थापना करवायी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्तंभ माने जाने वाले संगठनकर्ता भाऊराव देवरस ने भी यहीं से शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा विद हरेकृष्ण अवस्थी यहां के छात्र तो रहे ही, उन्होंने यहां के कुलपति का सफल दायित्व भी निभाया। प्रसिद्ध क्रांतिकारी स्वर्गीय भगवान दास माहौर ने भी यहीं शिक्षा ग्रहण की थी।