लखनऊ। जगन्नाथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुंडीचा मंदिर जाते हैं। गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथ के मौसी के घर के रूप में जाना जाता है। इस यात्रा का आयोजन सदियों से होता आ रहा है, जिनके पीछे एक पौराणिक मान्यता चली आ रही है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 26 जून को दोपहर 1 बजकर 24 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 27 जून को सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरूआत शुक्रवार 27 जून से होने जा रही है।
मौसी के घर होती है खातिरदारी
जगन्नाथ यात्रा के पीछे यह मान्यता चली आ रही है कि इस दौरान कुछ दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ, उसके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार पड़ जाते हैं, इसलिए वह 15 दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद वह आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन स्वस्थ होकर विश्राम कक्ष से बाहर आते हैं।
इसी खुशी में रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ मौसी के घर जाते हैं और 7 दिनों तक वहीं विश्राम करते हैं। मौसी के घर पर उनका आदर-सत्कार किया जाता है। इसके वह तीनों वापस अपने रख पर सवार होकर जगन्नाथ मंदिर जाते हैं।
रथ यात्रा से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा जाहिर की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर दर्शन करवाया और अपनी मौसी के घर भी ले गए, जहां वे 7 दिन तक रुकें। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि हर साल भगवान अपने भाई और बहन के साथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।
रथ यात्रा की खास बातें
इस यात्रा में तीन भव्य रथ निकाले जाते हैं। सबसे आगे भगवान बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष कहलाता है जिसकी ऊंचाई करीब 45 फीट होती है और इसमें 16 पहिए होते हैं। यह रथ नीम और हंसी की लकड़ी से बनाया जाता है और इसे खींचने वाली रस्सी को ह्यशंखचूड़ह्ण कहा जाता है। रथ निर्माण में किसी भी प्रकार की कील या लोहे का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि यह आध्यात्मिक रूप से अशुभ माना जाता है।
रथों का रंग और स्वरूप
भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का रथ लाल रंग का होता है जबकि भगवान जगन्नाथ का रथ पीले या लाल रंग में सजाया जाता है। रथों को सजाने और सज्जा में पारंपरिक कारीगरों का विशेष योगदान होता है। यह कार्य भी पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जाता है।
रथ यात्रा का धार्मिक महत्त्व
ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन और रथ को खींचने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं और उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। रथ यात्रा में शामिल होकर मोक्ष की प्राप्ति तक का मार्ग खुल जाता है। यही वजह है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु हर साल पुरी पहुंचते हैं।
इसलिए अपनी मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि ये आस्था, भक्ति और एक अनूठी परंपरा का प्रतीक है। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, 2025 को शुरू होगी, जिसमें भक्तों की भारी उमड़ेगी। वहीं, इस यात्रा की सबसे खास बात ये है कि भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ जाते हैं, पुरी स्थित गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। इस मंदिर का नाम रानी गुंडिचा के नाम पर रखा गया है, जो राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं। राजा इंद्रद्युम्न ने ही पुरी में भगवान जगन्नाथ का मुख्य मंदिर बनवाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की बहुत बड़ी भक्त थीं और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें हर साल अपने घर आने का वरदान दिया था। इसी वरदान को पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ अपनी रथ यात्रा के दौरान गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों तक निवास करते हैं।
बीमार हो जाते है भगवान जगन्नाथ
एक और प्रचलित कथा के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्नान कराया जाता है, जिसे ‘स्नान पूर्णिमा’ कहते हैं। माना जाता है कि इस स्नान के बाद वे बीमार पड़ जाते हैं और लगभग 15 दिनों जब वे ठीक हो जाते हैं, तो अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जहां उन्हें ठीक होने के बाद दिया जाने वाला भोजन कराया जाता है।
वापसी की यात्रा
नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहने के बाद, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के साथ अपने मुख्य मंदिर में वापस लौटते हैं, जिसे ‘बाहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ अपनी वापसी पर ‘मौसी मां मंदिर’ में रुकते हैं और वहां ‘पोड़ा पीठा का भोग ग्रहण करते हैं, जो आस्था और भक्ति का प्रतीक है। इसी के साथ यह शुभ यात्रा पूर्ण हो जाती है।