सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए चतुर्थी का व्रत रखा जाता है
लखनऊ। सनातन धर्म में चतुर्थी तिथि का खास महत्व है। यह पर्व हर महीने धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कामों में सफलता और सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 14 जून को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शुरू होगी। वहीं, 15 जून को दोपहर 03 बजकर 51 मिनट पर आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का समापन होगा। तिथि गणना से 14 जून को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर चन्द्रोदय का शुभ समय 10 बजकर 07 मिनट है।
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर शुभ योग
आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर इंद्र योग का संयोग दोपहर 03 बजकर 13 मिनट से हो रहा है। साथ ही भद्रवास का भी योग है। इन योग में भगवान गणेश की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होगी। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर शिववास योग का संयोग है। इस योग का निर्माण दोपहर 03 बजकर 46 मिनट से हो रहा है। इस शुभ अवसर पर देवों के देव महादेव कैलाश पर जगत की देवी मां पार्वती के साथ विराजमान रहेंगे इस समय में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।
पूजा का शुभ मुहूर्त
सूर्योदय – सुबह 05 बजकर 23 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 07 बजकर 20 मिनट पर
चंद्रोदय- रात 10 बजकर 07 मिनट पर
चंद्रास्त- सुबह 07 बजकर 44 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 02 मिनट से 04 बजकर 43 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से 03 बजकर 37 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 19 मिनट से 07 बजकर 39 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक
कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी 2025 की पूजा विधि में, आप सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर, एक साफ चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें फूल, दूर्वा, सिंदूर, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें। मोदक या लड्डू का भोग लगाएं, आरती करें और गणेश जी के मंत्रों का जाप करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें। सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। भगवान गणेश को फूल, दूर्वा, सिंदूर, चंदन, अक्षत, मोदक या लड्डू अर्पित करें। धूप, दीप जलाएं, आरती करें, गणेश जी के मंत्रों का जाप करें, व्रत कथा का पाठ करें।