आर्टिकल 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार के पास राज्य के स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार होता है। स्थायी नागरिक को मिलने वाले अधिकार और विशेष सुविधाओं की परिभाषा भी आर्टिकल 35ए के ही तहत तय की जा सकती है। यह कानून 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के तहत शामिल किया गया था।
क्या है इसका इतिहास
आर्टिकल 370 के अंतर्गत 35ए में यह प्रावधान भारतीय संविधान में जोड़ा गया था। जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच 1949 में हुए समझौतों के तहत आर्टिकल 35ए का विशेष प्रावधान जोड़ा गया। जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी संबंधी नियमडोगरा नियमों के तहत 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही राजा हरि सिंह ने लागू किया था। जम्मू-कश्मीर 1947 तक राजशाही के अंतर्गत आता था और इंस्ट्रूमेंट ऑफ असेसन (आईओए) के तहत इसे भारत में शामिल किया गया।
लिंग आधारित भेदभाव करता अनुच्छेद 35ए
अनुच्छेद 35ए को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया था। इसके साथ ही इस अनुच्छेद के कारण पाकिस्तान से आए शरणार्थीयों को आज भी उनके मौलिक अधिकारों से वंचिक रखा गया है। इन वंचितों में 80 फीसद लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय से हैं। जम्मू कश्मीर में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि यहां पैदा होने के बावजूद अगर वे बाहर के राज्य के पुरुष से शादी कर लेती हैं तो उनका राज्य में संपत्ति खरीदने, मालिकाना हक रखने या अपनी पुश्तैनी संपत्ति को अपने बच्चों को देने का अधिकार खत्म हो जाता है। बाहरी युवक से शादी करने के कारण उनकी राज्य की स्थाई नागरिकता खत्म हो जाती है जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं है। राज्य के पुरुष अगर दूसरे राज्य की महिला से शादी करते हैं तो उस महिला को भी राज्य के स्थाई निवासी का दर्जा मिल जाता है। इस तरह अनुच्छेद 35ए जम्मू एवं कश्मीर की बेटियों के साथ लिंग आधारित भेदभाव करता है। इस कानून के तहत जो लोग राज्य के स्थायी नागरिक नहीं हैं उन्हें स्थायी तौर पर प्रदेश में बसने की अनुमति नहीं है। प्रदेश की सरकारी नौकरियां, स्कॉलरशिप और अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री का अधिकार भी सिर्फ स्थायी नागरिकों को ही है। इसके अलावा शर्त यह है कि अगर प्रदेश की स्थायी नागरिक महिला किसी गैर-स्थायी नागरिक से विवाह करती है तो वह राज्य की ओर से मिलनेवाली सभी सुविधाओं से वंचित कर देता है। हालांकि, 2002 में हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कानून के इस हिस्से को बदल दिया था। हाईकोर्ट ने ऐलान किया कि प्रदेश की महिलाएं अगर गैर-स्थायी नागरिकों से विवाह करती हैं तब भी उनके सभी अधिकार विधिवत बने रहेंगे, लेकिन ऐसी महिलाओं के संतान को स्थायी नागरिक को मिलनेवाली सुविधा से वंचित रहना पड़ेगा।
आर्टिकल 35ए का मौजूदा घटनाक्रम
2014 में आर्टिकल 35ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। याचिका के अनुसार, यह कानून राष्ट्रपति के आदेश के द्वारा जोड़ा गया और इसे कभी संसद के सामने पेश नहीं किया गया। कश्मीरी महिलाओं ने भी इस कानून के खिलाफ अपील की और कहा कि यह उनके बच्चों को स्थायी नागरिकों को मिलने वाले अधिकार से वंचित करता है।
35ए कैसे आया?
महाराजा हरि सिंह जो कि आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर के राजा हुआ करते थे, उन्होंने दो नोटिस जारी करके यह बताया था कि उनके राज्य की प्रजा किसे-किसे माना जाएगा? ये दो नोटिस उन्होंने 1927 और 1933 में जारी किये थे। इन दोनों में बताया गया था कि कौन लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक होंगे? फिर जब भारत की आजादी के बाद अक्टूबर, 1947 में महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, तो इसके साथ ही भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 जुड़ गया। यह आर्टिकल जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देता था। इसके बाद केंद्र सरकार की शक्तियां जम्मू-कश्मीर में सीमित हो गई। अब केंद्र, जम्मू-कश्मीर में बस रक्षा, विदेश संबंध और संचार के मामलों में ही दखल रखता था।
इसके बाद 14 मई, 1954 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया। इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया। संविधान की धारा 370 के तहत यह अधिकार दिया गया था। राष्ट्रपति का यह आदेश 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए ‘दिल्ली समझौते’ के बाद आया था। दिल्ली समझौते के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी। 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू होने के साथ ही इस व्यवस्था को लागू भी कर दिया गया।
35ए को संसद के समक्ष कभी प्रस्तुत ही नहीं किया गया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आर्टिकल 35ए को संविधान संशोधन करने वाले अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करके नहीं जोड़ा गया बल्कि इसे तब की सरकार ने अवैध तरीके से जोड़ा था। संविधान में संशोधन का अधिकार केवल संसद को है। आर्टिकल 35ए न केवल आर्टिकल 368 में निर्धारित संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करता है, बल्कि भारत के संविधान की मूल संरचना के भी खिलाफ है। संविधान में कोई भी आर्टिकल जोड़ना या घटाना केवल संसद द्वारा अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही किया जा सकता है। जबकि आर्टिकल 35ए को संसद के समक्ष आजतक कभी प्रस्तुत ही नहीं किया गया।
आर्टिकल 35ए के जरिए, जन्म के आधार पर किया गया वर्गीकरण आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। यह कानून के समक्ष हरेक नागरिक की समानता और संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है। आर्टिकल 35ए के अनुसार गैर-निवासी नागरिकों के पास जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों के समान अधिकार और विशेषाधिकार नहीं हो सकते हैं। आर्टिकल 35ए एक महिला को उसकी मर्जी के पुरुष के साथ शादी करने के बाद उसके बच्चों को जायजाद में हक न देकर उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। अगर कोई महिला किसी ऐसे पुरुष से शादी करती है जिसके पास कश्मीर का स्थायी निवास प्रमाण पत्र न हो तो उसके बच्चों को न तो स्थायी निवास प्रमाण पत्र मिलता है और न ही जायजाद में हिस्सा। उन्हें जायजाद में हिस्सा पाने के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता है भले ही महिला के पास कश्मीर की नागरिकता हो।
इस अनुच्छेद से उन श्रमिकों और मूल निवासियों जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की भी खुली छूट मिलती है जो कई पीढ़ियों से कश्मीर में निवास कर रहे हैं। जिन दलितों और वाल्मीकियों को 1950-60 के बीच जम्मू-कश्मीर राज्य में लाया गया था, उन्हें इस शर्त पर स्थायी निवास प्रमाण पत्र दिया गया था कि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियां राज्य में तभी रह सकती हैं, जब वे मैला ढोने वाले बने रहें। आज राज्य में छह दशक की सेवा करने के बाद भी उन मैला ढोने वालों के बच्चे सफाई कर्मचारी हैं और उन्हें कोई और पेशा चुनने का अधिकार नहीं है। आर्टिकल 35ए गैर-निवासियों को संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने या स्थानीय चुनाव में वोट देने से वर्जित किया जाता है। आर्टिकल 35ए मनमाने तरीके से थोपा गया है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 और 21 में दिए गए समानता, रोजगार, समान अवसर, व्यापार और व्यवसाय, संगठन बनाने, सूचना पाने, विवाह, निजता, आश्रय पाने, स्वास्थ्य और शिक्षा के मूल अधिकारों का उल्लघंन करता है।
दिल्ली एग्रीमेंट के बारे में जानिए
‘दिल्ली एग्रीमेंट’ सन् 1952 में शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री नेहरू के बीच हुआ था। इस समझौते में भारत की नागरिकता को जम्मू और कश्मीर के निवासियों के लिए भी खोल दिया गया था अर्थात जम्मू और कश्मीर के नागरिक भी भारत के नागरिक मान लिए गए थे। सन् 1952 के ‘दिल्ली एग्रीमेंट’ के बाद ही 1954 का विवादित कानून ‘अनुच्छेद 35ए’ जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के बाद ही जम्मू और कश्मीर का संविधान 1956 में बनाया गया।
1954 में राष्ट्रपति का आदेश
1954 में प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया की ओर से एक आदेश पारित किया गया। उस आदेश के तहत जम्मू और कश्मीर राज्य में भारतीय संविधान के अन्य प्रावधान लागू किए जाने थे लेकिन उन्होंने अलग से राज्य को एक कानूनी आदेश दे दिया। ऐसा आदेश, जो कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ था। दरअसल, किसी राष्ट्रपति को संविधान में कोई धारा जोड़ना या नया कानून बनाने का अधिकार नहीं है। लेकिन ऐसा कहते हैं कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू के कहने पर राज्य को विशेष अधिकार देने के लिए एक आदेश पारित कर दिया। यह विशेष अधिकार ही आर्टिकल 35ए था। यह ऐसा आर्टिकल है जिसको राष्ट्रपति को बनाने का अधिकार ही नहीं था। राष्ट्रपति के अधिकार में यह था कि जम्मू और कश्मीर राज्य में भारत के संविधान के बचे हुए प्रावधानों को लागू किया जाए। लेकिन राष्ट्रपति ने संविधान के प्रावधानों को लागू करने के बजाय एक नया आर्टिकल बना दिया आर्टिकल 35ए जिसे कि देश का सबसे बड़ा ‘संवैधानिक फ्रॉड’ माना गया।
14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया। इस आर्टिकल 35ए में लिखा है कि जम्मू और कश्मीर विधानमंडल को यह अधिकार प्रदान करता है कि संविधान जम्मू और कश्मीर को राज्य के रूप में विशेष अधिकार देता है। इसके तहत दिए गए अधिकार ‘स्थायी निवासियों’ से जुड़े हुए हैं। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वे आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किसी तरह की सहूलियतें दें अथवा नहीं दें।
आर्टिकल 35ए में लिखा है कि राज्य…
यह तय करे कि जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी कौन है?
किसे सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में विशेष आरक्षण दिया जाएगा?
किसे संपत्ति खरीदने का अधिकार होगा?
किसे जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार होगा?
छात्रवृत्ति तथा अन्य सार्वजनिक सहायता और किसे सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ किसे मिलेगा?
जम्मू कश्मीर का अलग संविधान
जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है, जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।
भारत के किसी अन्य राज्य का निवासी जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता है और इसी कारण वो वहां वोट नहीं डाल सकता है।
राज्य किसी गैरकश्मीरी व्यक्ति को कश्मीर में जमीन खरीदने से रोकता है।
अगर जम्मू और कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं, साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।
राज्य सरकार किसी कानून को अपने हिसाब से बदलती है तो उसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
कोई भी बाहरी व्यक्ति राज्य में व्यापारिक संस्थान नहीं खोल सकता है।
इस कानून की आड़ में राज्य सरकार ने देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में पाकिस्तान से आए शरणाथियों में मुसलमानों को तो जम्मू और कश्मीर की नागरिकता दे दी लेकिन हिन्दू और सिखों को इससे वंचित रखा। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर में विवाह कर बसने वालीं महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ भी जम्मू और कश्मीर सरकार अनुच्छेद 35A की आड़ लेकर भेदभाव करती है। यदि कोई मुसलमान किसी बाहरी लड़की से विवाह कर लेता है तो उसने वहां का नागरिक मान लिया जाता है लेकिन जब कोई हिन्दू ऐसा करता है तो उसे वहां का नागरिक नहीं माना जाता।
1989 तक राज्य में स्थिति शांत रही। राज्य में विकास की गति तेज हो चली थी। वहां का पर्यटन भी अपने चरम पर था। लेकिन फिर 1990 से कश्मीर घाटी में शुरू हुआ हिन्दुओं का कत्लेआम करना…! और राज्य की स्थिति बदल गई। तब से अब तक इस राज्य को वहां के कट्टरपंथियों और राजनीतिज्ञों ने इसे फिर से एक विवादित और अशांत स्थान बना रखा है, क्योंकि वे चाहते हैं कि राज्य इसी तरह अशांत रहे ताकि वहां कभी भी 35ए और धारा 370 नहीं हटाई जा सके।
अतत: यह माना जाता है कि भारत की संसद, राज्यसभा और राष्ट्रपति मिलकर धारा 370 और आर्टिकल 35ए को हटाने की शक्ति रखते हैं।