कतकी मेला : मिट्टी के बर्तन और ऊंचे झूले कर रहे आकर्षित

लखनऊ। राजधानी में ऐतिहासिक कतकी मेले की शुरूआत हो चुकी है। गोमती नदी के किनारे झूलेलाल पार्क में सैकड़ों लोग मेले का आनंद लेने पहुंच रहे हैं। यहां लगे इलेक्ट्रॉनिक झूले बच्चों और युवाओं को खूब पसंद आ रहे हैं। मेले में आई महिलाएं मिट्टी के घरेलू सामान को खूब पसंद कर रही हैं। कपड़ों और मेकअप के सामान की दुकानों पर भी उनकी खूब भीड़ दिख रही है। मेले में विशेष रूप से घर को सजाने के लिए सजावट के सामान, चाय के सेट, खुर्जा की क्रॉकरी, आचार दानी, डिनर सेट, फैंसी ज्वेलरी, महिलाओं और बच्चों के लिए गर्म कपड़े और फुटवियर के विशेष स्टॉल लगे हैं।
इस मेले के बारे में कई रोचक बातें भी हैं, कहा जाता है कि ये मेला खास तौर पर महिलाओं की खरीदारी के लिए था, इसलिए ये मेला आधी रात तक चलता था. तब महिलाएं समूह में आ कर इस मेले में रात में घर के सामान की खरीदारी करती थीं और सुबह पुरुषों के जागने से पहले ही लौट जाती थीं। आज भी मेले का रंग दोपहर बाद से चढ़ता है और शाम को इसमें सबसे ज्यादा रौनक दिखाई पड़ती है। अभी भी इसमें घरेलू इस्तेमाल की चीजें ज्यादा खरीदी जाती हैं। अलग अलग जिलों से आने वाले दुकानदार बताते हैं कि महीना भर चलने वाले मेले में कमाई का अच्छा मौका मिल जाता है।

बच्चों और युवाओं को पसंद आ रहा मेला
आसमानी झूला, नाव वाला झूला और ट्रेन झूला बच्चों समेत बड़ों को भी खूब पसंद आ रहा है। बढ़ती ठंड के कारण चाय की दुकानों पर लोगों की विशेष भीड़ देखने को मिल रही है।
नवाबों के दौर से चल रहा यह विशेष मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है और मकर संक्रांति तक चलता है। लगभग दो महीने तक चलने वाले इस मेले में लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से बड़ी संख्या में दुकानदार पहुंचे हैं। मेले की विशेष पहचान क्रॉकरी के समान और मिट्टी के बर्तन हैं। यहां पर बेहद सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं।
पहले कतकी मेला डालीगंज पुल पर लगता था। ट्रैफिक व्यवस्था के चलते अब गोमती के तट पर लगाया जाता है। नगर निगम मेले में आने वाले लोगों और दुकानदारों के लिए व्यवस्था करती है।
पिछले चार साल से नगर निगम ने मेले की जिम्मेदारी स्वयं ले ली है। झूलेलाल घाट पर लगे इस मेले में आधुनिकता की छाप जरूर पड़ी है, लेकिन पुराने जमाने की झलक भी इस मेले में नजर आती है। दुकानदारों का कहना है कि इतना महंगा मेला होगा तो यह सस्ती गृहस्थी का मेला नहीं रहा। आम लोगों के बजाय यह अब खास लोगों का मेला हो गया है। गरीब दुकानदार भी दुकान नहीं लगा पाएंगे और सामान भी महंगा मिलेगा।

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