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संतान के निरोगी रहने के लिए जितिया व्रत आज

रविवार को व्रत रख कर सोमवार को उसका पारण सुबह करेंगी
लखनऊ। संतान के दीघार्यु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत, जितिया व्रत रखा जाता है। जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस बार रविवार की सुबह 05:04 बजे पर लग जाएगी। उसका समापन सोमवार तड़के 03:06 बजे होगा। माताएं रविवार को व्रत रख कर सोमवार को उसका पारण सुबह करेंगी। ज्योतिषाचार्य पं. आनंद दुबे ने बताया कि इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं जिसमें जल, फल या अन्न आदि ग्रहण नहीं किया जाता है। जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से भी जुड़ी है।

जितिया व्रत की पूजा सामाग्री:
इस व्रत में लाल कपड़ा, पूजा की चौकी जिसे पर भगवान की मूर्ति रखी जाएगी चाहिए। इसके अलावा मिट्टी की जरूरत होगी, -जिससें गणेश जी. कुशा या मिट्टी से जीमूतवाहन देव की मूर्ती, चील और सियारिन की प्रतिमा बनाई जाएंगी। इसके अलावा एक कलश, नारियाल, हल्दी, सुपारी,दुर्वा, इलायची , लौंग आदि इस कलश मेंं रखा जाता है। पूजा में जितिया का धागा खास तौर पर रखा जाता है। रौली, मौली और कुछ खिलौने या टॉफी भी पूजा में रखते हैं और पूजा के बाद बच्चों में बांट देते हैं। नैनुआ के पत्तों को पूजा में रखा जाता है। पान के पत्ते या अशोक के पत्ते भी ले सकते हैं। भोग में भीगे हुए काले चने चाहिए होते हैं, इन्हें आप सुबह भिगो सकते हैं। वा घर में बनी मिठाईऔर पांच फल भी पूजा में चाहिए ।

पूजा-विधि :
आंगन में पोखर बना पाकड़ वृक्ष रोपें। उसमे गोबर माटी से चिल्ली डाली पर तथा पुन: गोबर माटी से सियारिनी वृक्ष के नीचे धोधर में रखें। मध्य में जल से भरा हुआ कलश रखे। उस कलश पर कुश से निर्मित जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा मूर्ति स्थापित कर अनेक रंगों की पताखा लगानी चाहिए तत्पश्चात कुश तिल जल लेकर संकल्प आदि कर अनेक पदार्थों से पूजन करें एवं जीमूतवाहन भगवान की कथा श्रवण करनी चाहिए। जीमूतवाहन व्रत उपवास में वंश वृद्धि के लिए बांस के पतों से पूजन करने की परंपरा है।

व्रत से जुड़ी मान्यताएं:
जितिया व्रत के पारण में महिलाएं जितिया का लाल रंग का धागा गले में पहनती हैं। व्रती महिलाएं जितिया का लॉकेट भी धारण करती हैं। जितिया व्रत की पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है। व्रत पारण के बाद यह तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाते हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने से पहले कुछ जगहों पर महिलाएं गेहूं के आटे की रोटियां खाने की बजाए मरुआ के आटे की रोटियां भी खाती हैं। इस परंपरा के पीछे का कारण स्षष्ट नहीं है लेकिन ऐसा सदियों से होता आ रहा है। इस व्रत से पहले नोनी का साग खाने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि नोनी के साग में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है। जिसके कारण व्रती के शरीर को पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है। सनातन धर्म में पूजा.पाठ में मांसाहार का सेवन वर्जित माना गया है। लेकिन इस व्रत की शुरूआत बिहार में कई जगहों पर मछली खाकर की जाती है। कहते हैं कि इस परंपरा के पीछे जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा में वर्णित चील और सियार का होना है।

फल व सब्जी की दुकानों में लगी रही लोगों की भीड़:
शहर के फलों व सब्जी दुकानों में जीउतिया पर्व को लेकर सुबह से ही लोगों की भीड़ दिखीं। लोगों ने बैंगन, कंदा, परवल, गोभी, पटल, आलू प्याज की खरीदारी की। वहीं फल दुकान में भी लोगों की भीड़ रही।

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