चिंतन प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं हो सकती है जब तक ध्यान एवं लक्ष्य को लेकर एकाग्रता न हो। वैसे कोई भी काम हो अगर लक्ष्य को लेकर भटकाव है तो उस काम का पूर्ण हो पाना बहुत कठिन होता है। अपने चिंतन को इधर-उधर भटकने से रोक कर उत्कृष्ट प्रवाह के साथ जोड़ देना उसी प्रकार है जैसे अपने अंदर के क्रिस्टल को ईथर में संव्याप्त तरंगों को ग्रहण करने योग्य बना लेना व अदान-प्रदान का क्रम आरम्भ कर देना।
सद्भाव सम्वर्द्धन-श्रद्धा अभिवर्द्धन हेतु ध्यानयोग से श्रेष्ठ कोई साधना नहीं। सोहं की हंसयोग साधना, नादयोग, त्राटक, बिन्दू अवतरण एवं चक्र भेदन इत्यादि साधनाएं मूलत: ध्यान परक हैं। इन सभी में अपने चिंतन को ध्यान प्रक्रिया उत्कृष्टता से जोड़ने व उस महत् तत्व से प्राप्त प्राण शक्ति से प्रसुप्त को जगाने उभारने का पुरुषार्थ किया जाता है।
साधना चेतन क्षेत्र का ऐसा व्यवसाय है जिसमें पुरुषार्थ की तुलना में लाभ की मात्रा अत्यधिक है। पूंजी परिश्रम और अनुभव के आधार पर संसार के सभी व्यवसाय चलते हैं और परिस्थिति के अनुसार उनसे लाभ भी मिलता है। साधना व्यवसाय इन सबसे सरल और फलप्रद है। उसमें न बाहर की सहायता अपेक्षित होती है न साधन जुटाने पड़ते हैं और न परिस्थितियों के अनुकूलन प्रतीक्षा करनी पड़ती है। अपने आप को समझा लेने और सुधार लेने भर से वह प्रयोजन पूरा हो जाता है। जिसमें लाभ ही लाभ है।
वह भी इतना असाधारण जिसकी तुलना में अन्य सभी व्यवसायों का लाभांश हलका पड़ता है। दूरदर्शी सदा से व्यवसाय की महत्ता समझते उसे प्रमुखता देते और समुचित लाभ उठाते रहे हैं। प्रगति शीलता में रुचि लेने वाले प्रत्येक जागरुक को लाभदायक व्यवसायों में से चुनाव करते समय साधना को प्रमुखता देने में ही बुद्धिमानी प्रतीत हुई है। आज भी उसी राजमार्ग का अनुसरण सबसे अधिक दूरदर्शिता पूर्ण है। सामान्य स्थिति में हर वस्तु तुच्छ है। पर यदि उसे उत्कृष्ट बना लिया जाये, उसकी सूक्ष्मता तक प्रवेश पा लिया जाये तो उससे ऐसा कुछ मिलता है जिसे विशिष्टि और महत्वपूर्ण कहा जा सके।
समुद्र में खारा पानी भरा पड़ा है पर उसकी गहराई में उतरने वाले मणि मुक्तक ढूंढ लेते हैं और उस निरर्थक दिखने वाले जलाशय को रत्नाकर के रूप में सम्पदा का भण्डारगृह पाते हैं। बात दोनों ही सही है। उथली दृष्टि से खारे पानी का गड्ढा बेकार इतनी जमीन घेरे हुए है। सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर समस्त भूमण्डल को सुख वर्षा के रूप में जीवन रस देने वाला वही प्रतीत होता है। खनिज पदार्थ जब भूमि से निकलते हैं, तो धूल मिश्रित अनगढ़ होते हैं, उस रूप में उनका कोई उपयोग नहीं। किन्तु जब उन्हें परिशोधित करके धातुओं के रूप में बना लिया जाता है।