अज्ञात पंजाबी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रेरक प्रसंग समाज के समक्ष लाए जाएं

उ.प्र. पंजाबी अकादमी की ओर से पंजाब के स्वतंत्रता सेनानी विषयक संगोष्ठी हुई

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से पंजाब के स्वतंत्रता सेनानी विषय पर सारगर्भित संगोष्ठी का आयोजन बुधवार 11 दिसम्बर को इंदिरा भवन में किया गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि संभवत: राजनीतिक दुराग्रह के कारण भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भगत सिंह, लाला लाजपत राय और उधम सिंह के अतिरिक्त अगण्य पंजाबी स्वतंत्रता सेनानियों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया जा सका है। इसलिए अज्ञात वीर सेनानियों के प्रेरक प्रसंगों को उजागर करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में उपस्थित सम्माननीय वक्ताओं को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।
संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वान नरेन्द्र सिंह मोंगा ने कहा कि संभवत: राजनीतिक दुराग्रह के कारण भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भगत सिंह, लाला लाजपत राय और ऊधम सिंह के अतिरिक्त अगण्य पंजाबी स्वतंत्रता सेनानियों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया जा सका है। उनके अनुसार गदर पार्टी और कूका आंदोलन के क्रांतिकारियों और महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे शहीद बाबा महाराज सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं। 19 साल की उम्र में फांसी चढ़ने वाले करतार सिंह सराभा और उनके छह साथी, बाबा सोहन सिंह भकना और उनकी गदर पार्टी के तमाम स्वतंत्रता सैनानी जो फांसी चढ़ गए। शहीद मदन लाल ढींगरा, शहीद सोहनलाल पाठक, भाई बाल मुकुंद, सोहन सिंह जोश जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास भी सामने लाया जाए। इसके साथ ही आमंत्रित विद्वान दविन्दर पाल सिंह बग्गा ने कहा कि बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में विदेश में विशेष कर अमेरिका, कनाडा, फिलिपींस, सिंगापुर और हांगकांग जैसे विभिन्न देशों में रह रहे पंजाबियों के मन में राष्ट्रप्रेम की ज्वाला भड़की और उन्होंने अपनी सुख सुविधाओं को छोड़कर देश की आजादी को लक्ष्य बनाते हुए लाला हरदयाल और युवा करतार सिंह सराभा जैसे अनेक जुझारू और दृढ़ निश्चयी सदस्यों के साथ गदर पार्टी नाम के एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की और छोटे-छोटे दलों के रूप में भारत आ कर क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए। इनमें से ही एक थी बहुत ही बहादुर, दिलेर और दूरदर्शी, 25 वषीर्या नवयुवती गुलाब कौर। उसने भूमिगत रहते हुए स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी संगठनों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पर उसका नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों में बहुत कम आया और यह वीरांगना इतिहासकारों और देशवासियों की नजरों से अछूती ही रही।
विद्वान प्रकाश गोधवानी ने कहा कि हरनाम सिंह सैनी एक भावुक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे, जिन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने लाहौर, ब्रिटिश भारत में फांसी दी थी। हालांकि ऐसा कोई अपराध नहीं था जिसके लिए उन्हें फांसी दी जानी हो लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अनुसार, हरनाम सिंह ने साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह को उकसाया था। आमंत्रित विदुषी रनदीप कौर ने कहा कि भारत मां के अमर शहीद पुत्र करतार सिंह सराभा, जो 16 नवंबर 1915 को लाहौर के सेंट्रल जेल में खुशी-खुशी फांसी पर चढ़कर शहीद हुए थे, ने 19 साल की आयु में इतने काम कर दिखाएं की जानकर हैरानी होती है। इतना आत्मविश्वास, आत्म त्याग, ऐसी लगन बहुत कम देखने को मिलती है। ऐसी लगन को देखकर ही शहीद-ए-आजम भगत सिंह भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे। वह आंधी की तरह अचानक कहीं से आए। अग्नि प्रज्वलित की। रणचंडी को जागृत किया। आजादी का यज्ञ रचा और अंत में उसमें स्वयं भस्म हो गए। संगोष्ठी में मुख्य रूप से मीना सिंह, अंजू सिंह, महेन्द्र प्रताप वर्मा, रवि यादव, मीनू पाठक, प्रियंका त्रिपाठी सहित कई विशिष्ट जन उपस्थित रहे।

RELATED ARTICLES

लखनऊ जू : वन्य जीव ठंड से बचने के लिए ले रहे हीटर व कंबल का सहारा

लखनऊ चिड़ियाघर में वन्य जीवों को ठंड से बचाने के लिए किये गये विशेष इंतजामलखनऊ। वन्य जीवों को सर्दी के मौसम में सर्दी से...

गीता जयंती पर श्लोकों का हुआ पाठ व हवन पूजन

लखनऊ में गीता जयंती पर शहर के मंदिरों में हुए विविध आयोजन लखनऊ। गीता जयंती व मोक्षदा एकादशी पर राजधानी लखनऊ में विविध आयोजन किये...

किसने सजाया तुमको भोले, बड़ा प्यारा लागे…

मन में छल कपट हो तो कोई कामना पूर्ण नहीं होती : पं. गोविंद मिश्रालखनऊ। यदि धन चला जाए तो फिर आ जायेगा, बीमारी...

Latest Articles