वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ। महिलाओं में बढ़ रही बांझपन समस्या को नई तकनीकियों ने आसान कर दिया है। जल्द ही एआई से और बेहतर परिणाम मिलेंगे। यह कहना है आईवीएफ विशेषज्ञ और आईएफएस (इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी) उपाध्यक्ष डा गीता खन्ना का।
वह आईवीएफ और हाई रिस्क प्रेगनेंसी पर आयोजित सीएमई को सम्बोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में प्रौद्योगिकी और उपचार चोली- दामन का साथ है और आईवीएफ उपचार में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद से, समस्या का पता लगाने की सटीकता, खुराक की समयबद्धता और वास्तविक निगरानी आईवीएफ डॉक्टरों के लिए वरदान साबित होगी।
सफलता दर बढ़ाने, रोगी के अनुभवों को बेहतर बनाने और डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि और स्वचालन के माध्यम से क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए एआई आईवीएफ के विभिन्न पहलुओं में तेजी से एकीकृत हो सकता है। उन्होंने कहा कि आईवीएफ के क्षेत्र में एआई अभी भी एक अपेक्षाकृत नई तकनीक है, लेकिन इसमें बांझपन के इलाज के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है।
सत्र के दौरान अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि रक्तचाप मधुमेह, थायरॉयड बीमारियों के साथ देर से विवाह बांझपन की मुख्य वजह है। इससे हाई रिस्क प्रेगनेंसी होने की सम्भावना अधिक होती है। कार्यक्रम में डॉ. केडी नायर, अध्यक्ष आईएफएस, डॉ. सुरवीन घुम्मन, सचिव आईएफएस, डॉ. सोनिया मलिक, मुंबई से डॉ. जतिन शाह, दिल्ली से डॉ. कुलदीप जैन, अहमदाबाद से डॉ. जयेश अमीन व डा. श्वेता मित्तल समेत करीब 400 विशेषज्ञ शामिल हुए। कार्यक्रम का शुभारम्भ केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद किया।