भारत, चीन की सेनाएं विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सहमत

नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि भारत और चीन द्विपक्षीय समझौतों तथा दोनों देशों के नेताओं द्वारा दिए जाने वाले दिशानिर्देशों के अनुरूप सीमा मसले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सैन्य तथा राजनयिक वार्ता जारी रखने पर सहमत हो गए हैं। विदेश मंत्रालय ने पूर्वी लद्दाख गतिरोध पर दोनों देशों की उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के परिणामों की जानकारी साझा करते हुए यह बात कही।

दोनों देशों की सेनाओं के सैन्य कमांडरों ने शनिवार को उच्च हिमालई क्षेत्र में महीने भर से चले आ रहे गतिरोध को सुलझाने के प्रयास में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के चीन के भूभाग की तरफ माल्डो में विस्तृत वार्ता की। विदेश मंत्रालय ने कहा, बैठक सौहार्दपूर्ण तथा सकारात्मक माहौल में संपन्न हुई और दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि उक्त मुद्दे के जल्द समाधान से दोनों देशों के बीच संबंधों का और अधिक विकास होगा।

मंत्रालय के बयान में कहा गया, दोनों पक्ष विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों और नेताओं के बीच बनी सहमति को ध्यान में रखते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में हालात को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर राजी हो गए। नेताओं के बीच सहमति बनी थी कि भारत-चीन सीमा क्षेत्र में अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है। चीन के शहर वुहान में 2018 में ऐतिहासिक अनौपचारिक शिखर-वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने द्विपक्षीय संबंधों के विकास के हित में भारत-चीन सीमा के सभी क्षेत्रों में अमन-चैन बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया था।

यह शिखर-वार्ता डोकलाम में दोनों सेनाओं के बीच 73 दिन तक बने रहे गतिरोध के बाद हुई थी। इस गतिरोध ने दोनों एशियाई महाशक्तियों के बीच युद्ध की आशंकाओं को पैदा कर दिया था। विदेश मंत्रालय ने शनिवार की सैन्य वार्ता के संदर्भ में कहा, दोनों पक्षों ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि इस साल दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ है और वे इस पर राजी हुए कि इस मसले के जल्द समाधान से संबंधों का और विकास होगा। उसने कहा कि दोनों पक्ष हालात के समाधान के लिए तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन के लिए सैन्य और राजनयिक संवाद जारी रखेंगे।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया, जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लिऊ लिन ने किया। समझा जाता है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने एलएसी पर सभी संवेदनशील क्षेत्रों में यथा स्थिति की पुन:बहाली के लिए दबाव बनाया और क्षेत्र से अतिरिक्त चीनी सैनिकों की वापसी की भी मांग की। सूत्रों ने कहा था कि भारत बैठक से किसी ठोस परिणाम की उम्मीद नहीं कर रहा, लेकिन इसे महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता से तनावपूर्ण गतिरोध का बातचीत से समाधान का रास्ता निकल सकता है।

उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता से एक दिन पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई और इस दौरान दोनों पक्षों में अपने मतभेदों का हल शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए एक-दूसरे की संवेदनाओं और चिंताओं का ध्यान रखते हुए निकालने पर सहमति बनी थी। पिछले महीने की शुरुआत में गतिरोध पैदा होने के बाद भारतीय सैन्य नेतृत्व ने फैसला किया था कि भारतीय जवान पैंगोंग सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी के सभी विवादित क्षेत्रों में चीनी सैनिकों के आक्रामक रवैए के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाएंगे।

भारत-चीन सीमा विवाद 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी को लेकर है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत का इस पर अपना दावा है। दोनों पक्ष कहते रहे हैं कि सीमा मसले का अंतिम समाधान जब तक नहीं निकलता, सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना जरूरी है।

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