नई दिल्ली। भारत अगले 80 वर्षों में जानलेवा लू और भीषण बाढ़ सहित जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना कर सकता है। एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है। अध्ययन में इन विनाशकारी प्रभावों से देश की आबादी, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को पेश आने वाले खतरे से बचाने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने को लेकर तत्काल कदम उठाने की अपील की गई है।
सऊदी अरब के शाह अब्दुलअजीज विश्वविद्यालय के प्रो. मंसूर अलमाजरूई के नेतृत्व वाले अध्ययन दल ने कहा कि समूचे भारत में 21वीं सदी के अंत में अधिक उत्सर्जन परिदृश्य में सालाना औसत तापमान 4.2 डिग्री सेल्सियस बढऩे की संभावना है। अलमाजरूई ने शुक्रवार को विश्व पर्यावरण दिवस पर एक ईमेल के जरिए पीटीआई-भाषा से कहा, भारत विश्व में सबसे घनी आबादी वाला देश है, जहां इसकी जलवायु में अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशीलता और कम अनुकूलन क्षमता है। ये सब कारण इसे 21 वीं सदी के शेष काल के दौरान किसी बदलावों के प्रति अधिक जोखिम वाला बनाते हैं।
पिछले महीने अर्थ इकोसिस्टम ऐंड इनवायरोन्मेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में उन्होंने कहा, भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था भी भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन को लेकर अधिक जोखिम में है। अध्ययन में कहा गया है कि तापतान में वृद्घि के चलते ग्लेशियर पिघलने से उत्तर पश्चिम भारत में बाढ़ आने का विशेष रूप से अधिक खतरा होगा। अध्ययन दल ने मैदानी इलाकों में जानलेवा लू चलने का भी पूर्वानुमान किया है।
साथ ही, सालाना वर्षा के साथ भीषण बाढ़ आ सकती है। अध्ययन दल ने अपने विश्लेषण के लिए एक सुपर कंप्यूटर का इस्तेमाल किया। अध्ययन के मुताबिक तापमान में एक से तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्घि होने पर गंगा के सिंचित मैदानी भागों मे कृषि और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने सर्दियों के मौसम में औसत तापमान में 4.7 डिग्री सेल्सियत तक वृद्घि होने और गर्मियों में 3.6 डिग्री सेल्सियत तक वृद्घि होने का पूर्वानुमान किया है।
अध्ययन के अनुसार गुजरात और राजस्थान सहित उत्तर पश्चिम भारत में अत्यधिक बारिश हो सकती है जबकि सर्दियों के मौसम मे होने वाली बारिश भी गुजरात औश्र इससे लगे राज्यों में भविष्य में बढ़ सकती है। उत्सर्जन के कारण मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश, खासतौर पर देश के पश्चिमी हिस्सों में, बढ़ सकती है। साथ ही, गर्मियों में ग्लेशियर के पिघलने से भविष्य में नदियों का जल स्तर बढ़ेगा।