भारतीय संस्कृति में शिव की महिमा अनंत है। सनातन धर्म के बहुतेरे धार्मिक ग्रंथ आपकी महिमा की अलग-अलग तरीके से व्याख्या करते हैं। वस्तुतः शिव की महिमा को जानना, पूरी तरह से समझना और उसका संपूर्ण वर्णन करना असंभव है। शिव देवों में महादेव हैं और हर सनातनियों के अराध्य हैं। शिव का हर रूप मानव के लिये आनंद पूर्वक जीवन जीने की कला का उदाहरण है। शिव के गुणों को जानने का तथा शिवत्व को पहचानने के साथ शिवमय होने का दिन शिवरात्रि है।
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन की रात्रि को भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में अवतरित होने, लिंगरुप में प्रकट होने, सृष्टि को हलाहल विष से बचाने तथा महादेव और देवी पार्वती की विवाह वार्षिकी के रूप में हर्ष, उल्लास, उमंग, जोश के साथ तथा जप, तप, नियम, व्रत, धर्म से मनाने का प्रावधान है। शिव की विवाह वार्षिकी प्रत्येक मानव को यह संदेश देती है कि विवाह एक ऐसा पवित्र संस्कार है, बंधन है जिसमें स्त्री -पुरुष एक दूसरे के सुख- दुःख के साथी बनकर सृजन का हेतु बनते हैं। विज्ञान भी यही कहता है कि सृजन (संतानोत्पत्ति) में दोनों की बराबर की भागीदारी है। संतान का लालन-पालन भी तभी अच्छा होता है जब दोनों ही अपनी भूमिका, जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व को ठीक ढंग से समझें और उसका निर्वहन करें। शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप भी स्त्री -पुरुष को एक-दूसरे का पूरक मानते हुए, पारस्परिकता के महत्व को प्रतिपादित करते हुए, समदायित्व,समअधिकार की बात करता है, लैंगिक समानता पर जोर देता है तथा परिवार के महत्त्व को प्रतिपादित करता है। वे बच्चों को सीख देते हैं कि इस संसार में माता-पिता को सबसे से ऊपर मानते हुए उन्हें आदर और सम्मान देना तथा सुखी रखना प्रत्येक पुत्र/पुत्री का प्रथम दायित्व है। तभी तो आपने अपने छोटी संतान श्रीगणेश द्वारा शिव-पार्वती की तीन परिक्रमा को तीनों लोकों की परिक्रमा के बराबर माना। इस प्रसंग के माध्यम से आपने एक विशिष्ट संदेश भी दिया कि व्यक्ति को दिये गये कार्य को सम्पादित करते समय अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग अवश्य करना चाहिए। ऐसा करके व्यक्ति नवाचार के साथ श्रम और समय दोनों की बचत कर सकता है साथ ही जब श्रेष्ठ चयन की बात सामने आये तो उम्र के स्थान पर बुद्धि और ज्ञान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
भगवान शिव ने शिवरात्रि के दिन ही अमृत मंथन प्रक्रिया के दौरान निकले हलाहल विष को संसार की रक्षा के लिए ग्रहण कर गले में रोक लिया और नीलकंठ कहलाए। यह घटना यह संदेश देती है जो समर्थ है, सर्वोच्च स्तर पर विराजमान हैं, अपने आपको को प्रजा के पालनहार समझते हैं-उन्हें सामाजिक उत्थान के लिए, देश की प्रगति के लिए, राष्ट्र की सुरक्षा के लिए विष रुपी अपमान और अपशब्द को भी यदि सुनना पड़े तो भी बिना विचलित हुए उनका सामना करना चाहिए।
शिव कल्याणकारी है इसलिए उनका संदेश है कि प्रत्येक मानव को अपनी क्षमता और संसाधन के अनुकूल जरूरतमंद लोगों के कल्याण हेतु कार्य करते रहना चाहिए।
महादेव समभाव, सामाजिक समरसता की बात करते हैं तथा स्वयं समदृष्टा भी हैं। इन तीनों का आज के युग में प्रत्येक मानव के आचरण और व्यवहार में होना देश की उन्नति और प्रगति के लिए आवश्यक है। इसीलिए भगवान शिव के प्रमुख भक्तों में राक्षस रावण है, देवता शनि है, और ऋषि कश्यप भी हैं। गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र,चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय, विजय, पिशाच, दैत्य, नाग-नागिन, पशु आदि सम्मिलित हैं। वहीं भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी शिवभक्त दिखाई देते हैं। पृथ्वी पर जन्मे दो ईश्वरीय अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण ने भी कार्यसिद्धि के लिए भगवान शिव की पूजा की थी ऐसा उल्लेख मिलता है। यह सिद्ध करता है जहां कार्यों का बंटवारा होता है, जहां कार्य और उन्हें करने वाले परिभाषित हैं, वहां कोई छोटा और बड़ा नहीं होता है अपितु समन्वय जरूरी होता है, लक्ष्य हासिल करना महत्वपूर्ण है।
भगवान शिव का निवास कैलाश पर्वत को माना जाता है । पर्वत प्रकृति के अंग हैं। जो मनुष्य को प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के साथ जीवन जीने की सलाह देता है।सह अस्तित्व सभी जीवों (पेड़-पौधे, जीव-जन्तु) के फलने फूलने के साथ प्राकृतिक संतुलन के महत्व को भी प्रतिपादित करता है। प्रकृति तभी अपने स्वाभाविक स्वरूप में संतुलन रह कर फल-फूल सकती जब उसमें मानव जनित अनावश्यक हस्तक्षेप न हो अथार्त जरूरत से ज्यादा संसाधनों का दोहन न हो, उन्हें प्रदूषण मुक्त रखा जाए।
भगवान शिव की वेशभूषा जीवन में सादगी अपनाने का संदेश देती है, दिखावे से बचने की सलाह देती है। शिव के शरीर में लगी श्मशान की भस्म अंतिम सत्य नश्वर शरीर की ओर इशारा करती है। गरीब और अमीर दोनों को इस मानव योनि में अच्छे कर्म करते रहने की सीख देती है। वहीं शिव की ध्यान-मुद्रा मानव को तप/साधना/ध्यान करने की सलाह देती है ताकि मन को लक्ष्य पर केंद्रित करने के साथ ही एकाग्रचित्त, सत्यनिष्ठ , धर्मनिष्ठ रखा जा सके।
अतः मनुष्य का शिवरात्रि को हर्ष उल्लास से मनना तभी सार्थक होगा, जब वह महादेव की अराधना करते हुए सीमित संसाधनों में रहना सीखे, दूसरों के लिए जीना सीखें, अपव्यय को कम करना सीखें, परिवार , समाज, देश के साथ प्रकृति को महत्त्व देना सीखें।
लेखक:प्रो.मनमोहन प्रकाश