सामूहिक शक्ति का महत्व

शाक्ति मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपेक्षित है। छोटे-छोटे दैनिक कार्यों से लेकर बड़े-बड़े सार्वजनिक निर्माण के कार्य सभी व्यक्तिगत या सामूहिक शक्ति के माध्यम से ही पूरे होते हैं। खेत में काम करना है तो शक्ति चाहिए। वजन उठाना है तो शक्ति चाहिये। विद्यालय में अध्यापन करने के लिए, कचहरियों में वकालत के लिए, सेना में भरती होकर युद्ध करने के लिए या राजनीतिक सेवाओं के लिए भी शक्ति के बिना काम नहीं चलता।

शक्ति का स्वरूप कैसा भी हो पर मनुष्य जीवन में उसकी आवश्यकता निर्विवाद है। सत्य और अहिंसा प्राणि जगत के दो आवश्यकता सिद्धान्त हैं किन्तु उनकी रक्षा भी शक्ति के बूते ही हो सकती है। शक्ति के बिना सिद्धान्त अधूरा है फिर वह कितना ही अहिंसक सत्यशील एवं सुकोमल क्यों न हो? ऋषि आध्यात्मिक, धार्मिक एवं नैतिक जीवन का लोक शिक्षण करते थे। बड़े कोमल सिद्धान्त थे उनके।

आचरण और व्यवहार उनका ऐसा सीधा सादा और सरल था कि सामान्य श्रेणी का व्यक्ति उनकी आन्तरिक पूर्णता का अनुमान भीनहीं कर सकता था। पर उनके जीवन में एक शाश्वत शक्ति कार्य किया करती थी, एक गजब की प्रेरणा प्रस्फुटित होती रहती थी, ऋषि उसके सहारे समय विचरण करते थे। जो उनके अदर्शों के विपरीत आचरण करता था उन्हें उनकी शक्ति का सामना करना होता था। ऐसी घटनाएं असामान्य समझी जाती थीं और उन्हें देखकर प्राय: सभी लोग उनकी शक्ति को शीश झुका देते थे।

ऋषियों की डाली सदाचारी परम्परायें बेरोकटोक विकसित होती थीं। उनका सामना करने की किसी में शक्ति नहीं होती थी। दुष्प्रवृत्तियों के विरूद्ध निरन्तर उत्कट संघर्ष, उनकी लगन, शौर्य, सहिष्णुता, कर्मठता और अनवरत क्रियाशीलता को देखकर भी उनकी शक्ति का आभास होता है। वेद इस बात के साक्षी हैं। वेदों के वजन का कोई भी ग्रंथ इस सृष्टि में नहीं। उनमें जो ज्ञान विज्ञाान भरा है वह ऋषियों के प्रचंड शक्ति का द्योतक है। सच कहें तो ऋषि शक्ति के मूर्तिमान स्वरूप ही हैं।

ऋषियों के जीवन से यह भली भांति स्पष्ट होता है कि शक्ति का आधार साधना है। चाहे वह भौतिक समृद्धि के लिए हो चाहे आध्यात्मिक उन्नति के लिए। शक्ति अपेक्षित हो तो साधना करनी ही पड़ेगी। धन जुटाने के लिए क्या कुछ नहीं करते। खेती करते हैं, हल चलाते हैं, नौकरी करते हैँ, रोजगार करते हैं, बची हुई कमाई बैंक में जमा करते हैँ ताकि ब्याज जुटाकर दूसरे व्यवसाय के लिये साधन जुटाना, दौड़, धूप यह सब क्या है? धन जुटाने की साधना ही तो है। मनुष्य को साधना से ही सफलता प्राप्त होती है। इसलिए उसे इससे बचना नहीं चाहिए।

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