अभिनेता और गीतकार ने लखनऊ में अपनी यादों को किया साझा
लखनऊ। फिल्म अभिनेता, लेखक, गायक पीयूष मिश्रा ने अपनी जिन्दगी के किस्सों को लखनवी श्रोताओं के साथ साझा किया। द मिलेनियम स्कूल में बैठक शीर्षक से हुए कार्यक्रम में पियूष मिश्रा के साथ आरजे तुषार ने संवाद किया। तुषार के सवाल और पियूष मिश्रा के जवाब के साथ ही उनकी जिन्दगी, संघर्ष, कामयाबी की परतें दर्शकों के सामने खुलती गईं। बेबाक पीयूष मिश्रा ने बातों की शुरूआत अपने घर से की। कलाकार तबीयत के इंसान पीयूष और उनके घरवालों में हमेशा विरोधाभास रहा। घरवाले पीयूष की कला को समझ नहीं पाते और पीयूष खुद को घरवालों की नजर में समझा नहीं पाते। पीयूष को अपनी जिन्दगी में मोहब्बत भी खूब हुई है। उन्होंने बताया कि जब वे सिर्फ दसवीं क्लास में थे तो अपनी टीचर से मोहब्बत कर बैठे, वो टीचर को गाना सुनाते और टीचर भी खुश दिखती। इसके बाद बड़े हुए तो दिल्ली जाना हुआ और नाटकों में रम गए। यहां कथक केन्द्र की लड़कियों को देखने के बाद उनकी खूबसूरती पर कविता लिख डाली। पीयूष ने कहा कि मेरा लिखना हो, बजाना हो, अभिनय करना हो कभी कुछ सीखा नहीं, बस करता ही चला गया। इसके बाद फिल्में मिली। अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज जैसे दोस्त बने। पीयूष मिश्रा ने बताया कि पहली कविता कक्षा आठ में अपनी मां के लिए लिखी थी।
पीयूष मिश्रा ने कहा कि कभी अवार्ड या पैसों के लिए काम नहीं किया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बॉलीवुड में मिलने वाले अवार्ड तो नकली होते हैं। असली अवार्ड तो वो दर्शक होते हैं जो कलाकार को हमेशा जिन्दा रखते हैं। मेरा अवार्ड यहां मुझे सुनने के लिए उमड़ा हुजूम हैं। इसके बाद पीयूष से हर कार्यक्रम में होने वाली डिमांड यहां भी शुरू हो गई कि कुछ सुना दें। पीयूष मिश्रा ने बिना देर किए आरंभ है प्रचंण्ड के साथ ही एक बगल में चांद होगा जैसे गीतों को दर्शकों के सामने रख दिया। पीयूष ने बताया कि जल्दी ही अनुराग कश्यप एक फिल्म बनाने वाले हैं। जिसकी शूटिंग लखनऊ में होनी है। उस फिल्म के लिए कुछ गीत लिखे हैं।
स्कूलों में भगत सिंह को विस्तार से पढ़ाएं
पीयूष के साथ बैठक स्कूल में रही थी। उन्हे सुनने वालों में छात्र-छात्राएं शामिल थे। पीयूष मिश्रा ने क्रांतिकारी भगत सिंह को लेकर कहा कि भगत सिंह के बारे में स्कूलों में जो 20 साल पहले पढ़ाते थे वही आज भी पढ़ाया जा रहा है। जब ऐसे क्रांतिकारी के बारे में बहुत ही विस्तार से पढ़ाने की जरूरत है क्योंकि भगत सिंह के विषय में बच्चे और युवा आज भी बहुत कम जानते हैं।