लखनऊ। निआसरों के आसरे, निमानियों के मान, नितानियों के तान, निआसरों के आसरे सिखों के तीसरे गुरु साहिब श्री गुरु अमरदास जी महाराज का 450वां ज्योति जोत दिवस बुधवार को श्री गुरू सिंह सभा, ऐतिहासिक श्री गुरू नानक देव जी नाका हिंडोला लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर शाम का विशेष दीवान 6.30 बजे श्री रहिरास साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ जो रात्रि 9:30 बजे तक चला। जिसमें हजूरी रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह जी ने अपनी मधुरवाणी में शबद कीर्तन:-भले अमरदास गुण तेरे, तेरी उपमा तोहे बन आवै…गायन एवं समूह संगत को नाम सिमरन करवाया। ज्ञानी गुरजिंदर सिंह ने श्री गुरु अमरदास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरू जी का जन्म जिला अमृतसर में हुआ था। आपके पिता जी का नाम ी तेजभान जी व माता जी का नाम सुलखणी जी था। आप का जीवन बड़ा महान था, कहते है कि जब तक मनुष्य को मन की शान्ति तब तक मनुष्य इधर-उधर भटकता रहता है। इनका जीवन भी कुछ ऐसा ही था गुरु बनने से पहले आप जी ने कई बार तीर्थाे की यात्रा की, पर मन को शान्ति न मिल सकी। एक बार अपने ही घर में ही गुरु अंगद देव जी की सपुत्री बीबी अमरो जी से गुरु जी की बाणी सुनीे और गद्गद हो गये, पूछने पर पता चला कि यह श्री गुरु नानक देव जी की बाणी है, उनकी गद्दी पर श्री गुरु अंगद देव जी बैठे हुए हैं। आप खडूर साहिब में आकर गुरु जी के दर्शन कर निहाल हुए, तभी से श्री गुरु अंगद देव जी की सेवा में जुट गये उस समय आपकी उम्र 62 वर्ष की थी इतनी उम्र में आधी रात को उठकर ब्यास दरिया से पानी का कलश लाकर रोज गुरु जी कोे स्नान कराते थे और दिन रात उनकी सेवा मे जुटे रहते थे 73 वर्ष की आयु में सेवा करते देखकर श्री गुरु अंगद देव जी ने आपको गुरु गद्दी सौंप दी और ये निआसरों के आसरे, निमानियों के मान, नितानियों के तान श्री गुरु अमरदास जी बन गये।
गुरु अमर दास जी सती-प्रथा के विरोध में आवाज उठाने वाले पहले समाज-सुधारक थे। उन्होंने सती-प्रथा का जोरदार खंडन किया। सितंबर 1574 को गुरु अमर दास जी दिव्य ज्योति में विलीन हो गए। समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का बड़ा योगदान है। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया।
दीवान की समाप्ति के उपरान्त श्री गुरू सिंह सभा, ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव जी, नाका हिंडोला,लखनऊ के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने समूह संगत की उपस्थिति में साहिब श्री गुरु अमरदास जी महाराज को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उसके पश्वात् दशमेश सेवा सोसाइटी के सदस्यों द्वारा छोले चावल का लंगर संगत में वितरित किया गया।
गुरुद्वारा यहियागंज में शबद कीर्तन सुन संगत हुई निहाल
लखनऊ। ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी यहियागंज में आज श्री गुरु अमरदास जी का ज्योति जोत दिवस श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया। गुरुद्वारा सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि डॉक्टर गुरमीत सिंह के संयोजन मे विशेष रूप से भाई करनैल सिंह ने शबद कीर्तन द्वारा संगतो को निहाल किया। कार्यक्रम की शुरूआत शाम 7:00 बजे हुई एवं समाप्ति देर रात हुई। कथा वाचक ज्ञानी गुरमीत सिंह ने श्री गुरु अमरदास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरु अमरदास जी का जन्म सन 1479 ई में गांव बासरके श्री अमृतसर में हुआ वह 73 साल की उम्र में गुरु बने थे और 1552 ईस्वी में ज्योति जोत समा गए थे।