नई दिल्ली। सरकार ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की सीमा को बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया है। इस कदम का उद्देश्य विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करना है। इससे देश में बीमा की पहुंच बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को पहली बार कागज रहित बजट पेश करते कहा कि नए ढांचे के तहत ज्यादातर निदेशक और बोर्ड तथा प्रबंधन स्तर के अधिकारी निवासी भारतीय होंगे। कम से कम 50 प्रतिशत निदेशक स्वतंत्र निदेशक होंगे। इसके अलावा मुनाफे का एक निश्चित प्रतिशत सामान्य आरक्षित निधि के रूप में रखा जाएगा।
उन्होंने बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने तथा रक्षोपाय के साथ विदेशी भागीदारी तथा नियंत्रण की अनुमति के लिए बीमा अधिनियम-1938 में संशोधन का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि निवेशकों के संरक्षण के लिए सभी वित्तीय उत्पादों के लिए निवेशक चार्टर पेश किया जाएगा। यह सभी वित्तीय निवेशकों का अधिकार होगा।
सरकार ने 2015 में बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किया था। भारत में जीवन बीमा की पहुंच सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.6 प्रतिशत है। यह 7.13 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफी कम है। साधारण बीमा के मामले में स्थिति और खराब है। यह जीडीपी का मात्र 0.94 प्रतिशत है, जबकि इसका वैश्विक औसत 2.88 प्रतिशत है।
इससे पहले सरकार ने बीमा मध्यवर्ती इकाइयों में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी थी। मध्यवर्ती सेवाओं में बीमा ब्रोकर, पुनर्बीमा ब्रोकर, बीमा सलाहकार, कॉरपोरेट एजेंट, तीसरा पक्ष प्रशासक, सर्वेयर और नुकसान का आकलन करने वाले आते हैं। बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने के प्रस्ताव पर डेलॉयट इंडिया के भागीदार रसल गाइतोंडे ने कहा कि इस फैसले से क्षेत्र में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
साथ ही क्षेत्र को मजबूती मिलेगी। अलायंस इंश्योरेंस के सह-संस्थापक और निदेशक आतुर ठक्कर ने कहा कि बीमा क्षेत्र में अतिरिक्त पूंजी आने से इसकी वृद्घि को प्रोत्साहन मिलेगी और साथ जमीनी स्तर पर आखिरी छोर तक बीमा सेवाएं पहुंचाने में मदद मिलेगी। ठक्कर ने कहा, इस एक कदम से युवाओं के लिए अधिक रोजगार के अवसरों का सृजन हो सकेगा, जो आज समय की मांग है।