लखनऊ के सामाजिक जीवन की शान थे गोपाल जी : उदय प्रताप सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी का निधन
लखनऊ। पत्नी निशा चतुर्वेदी के निधन को अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि बृहस्पतिवार देर रात वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी भी इस दुनिया को अलविदा कह गए। गत 18 जुलाई को पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी निशा चतुर्वेदी का देहांत हुआ था। गोपाल चतुर्वेदी का जन्म 15 अगस्त 1942 को लखनऊ में हुआ था। हिंदी साहित्य में उनकी पहचान उत्कृष्ट व्यंग्यकार के रूप में थी। भारतीय रेल सेवा में अधिकारी रह चुके गोपाल चतुवेर्दी करीब दो दशक से स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यश भारती और केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। शुक्रवार को गोपाल चतुर्वेदी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस मौके पर कई जानेमाने लोग मौजूद रहे।
साहित्यकार उदय प्रताप सिंह ने कहा जो लोग उन्हें करीब से जानते हैं उनको पता है कि वे दोनों एक दूसरे पर किस सीमा तक अन्योन्याश्रित थे। वे जीवन भर परस्पर प्रेम के बंधन में बंधें हुए साथ-साथ रहे और साथ-साथ इस संसार से विदा हुए। दोनों ही लोग सच कहें तो लखनऊ के सामाजिक जीवन की शान थे। गोपाल चतुर्वेदी की प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में हुई थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में परास्नातक किया और फिर भारतीय रेल सेवा में अधिकारी के रूप में चयनित हुए। वर्ष 1965 से 1993 तक रेल व भारत सरकार के कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया। वे गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लेखन करते थे। उनके कविता संग्रह कुछ तो हो और धूप की तलाश प्रकाशित हुए। व्यंग्य संग्रह में प्रमुख रूप से धाँधलेश्वर, अफसर की मौत, दुम की वापसी, राम झरोखे बैठ के, फाइल पढ़ी, आदमी और गिद्ध, कुरसीपुर का कबीर, फार्म हाउस के लोग और सत्तापुर के नकटे काफी लोकप्रियता रहे। उन्हें 2001 में हिंदी भवन का लोकप्रिय व्यंग्य श्री सम्मान दिया गया। 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें यश भारती सम्मान मिला। केन्द्रीय हिंदी संस्थान से सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार भी मिल चुका था।

गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लेखन किया:
वरिष्ठ साहित्यकार और जाने-माने व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में उल्लेखनीय लेखन किया। गोपाल चतुवेर्दी के चर्चित कविता संग्रहों में कुछ तो हो और धूप की तलाश शामिल हैं। वहीं, उनके व्यंग्य संग्रहों में धाँधलेश्वर, अफसर की मौत, दुम की वापसी, राम झरोखे बैठ के, फाइल पढ़ी, आदमी और गिद्ध, कुरसीपुर का कबीर, फार्म हाउस के लोग और सत्तापुर के नकटे जैसे शीर्षक आज भी पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उनकी रचनाओं में व्यवस्था पर करारा व्यंग्य, सामाजिक विडंबनाओं की तीखी झलक और मानवीय संवेदनाओं की गहराई देखने को मिलती है।

कवि रूप में गोपाल चतुर्वेदी की कोमल संवेदनाएं:
अपने व्यंग्य की धार के विपरीत गोपाल चतुर्वेदी का काव्य पक्ष बेहद कोमल, भावुक और दार्शनिक था। उनके दो प्रमुख कविता संग्रह-कुछ तो हो और धूप की तलाश—इस बात के गवाह हैं कि वे हृदय की गहराइयों से लिखने वाले रचनाकार थे। उनकी कविताएं मानव जीवन की नश्वरता, प्रेम, अकेलेपन और अस्तित्व की तलाश को बेहद मार्मिक ढंग से उजागर करती हैं। वे विचार और भाव के संतुलन के कवि थे।

साहित्यिक जगत में शोक की लहर
गोपाल चतुर्वेदी के निधन की खबर जैसे ही सामने आई, साहित्यिक समुदाय में गहरा शोक फैल गया। वरिष्ठ साहित्यकारों, युवा लेखकों, आलोचकों और पाठकों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सोशल मीडिया पर उनकी रचनाओं और व्यक्तित्व को याद करते हुए अनेक संदेश साझा किए गए। साहित्यकार अशोक चक्रधर, ज्ञान चतुर्वेदी, हरिशंकर परसाई के प्रशंसकों ने गोपाल जी को उसी परंपरा की सशक्त कड़ी माना। हिंदी अकादमी, केन्द्रीय हिंदी संस्थान और भारतीय रेलवे के विभिन्न संगठनों ने भी शोक संदेश जारी कर उनके योगदान को सराहा।
जीवनसंगिनी निशा चतुर्वेदी के निधन से टूट गए थे गोपाल जी
गोपाल चतुवेर्दी की पत्नी निशा चतुर्वेदी न केवल उनकी जीवन संगिनी थीं, बल्कि एक अत्यंत दक्ष प्रशासनिक अधिकारी भी थीं। 18 जुलाई को उनका निधन हुआ और इस सदमे ने गोपाल चतुर्वेदी को अंदर तक झकझोर दिया। वे पहले से ही अस्वस्थ चल रहे थे, लेकिन पत्नी के चले जाने के बाद जैसे उनके जीवन की डोर भी टूट गई। छह दिन बाद ही उन्होंने भी इस संसार को अलविदा कह दिया। यह घटना एक ऐसी प्रेम और आत्मीयता की मिसाल बन गई, जहां दो जीवन साथी अंतिम समय तक एक-दूसरे से जुड़े रहे।

उनके साहित्य की आज की प्रासंगिकता
आज जब लोकतंत्र, सत्ता, प्रशासन और सामाजिक ढांचे की आलोचना के नए-नए माध्यम उभर रहे हैं, ऐसे समय में गोपाल चतुर्वेदी का लेखन पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने जिन विषयों को 80-90 के दशक में उठाया, वे आज भी हमारे समाज में ज्यों के त्यों उपस्थित हैं। उनकी रचनाओं में सत्ता की विसंगतियों का जैसा सटीक विश्लेषण है, वैसा आज भी किसी भी समाजशास्त्री या पत्रकार की रिपोर्ट में दुर्लभ है। उन्होंने न केवल सवाल उठाए, बल्कि आम जनमानस को उस पर सोचने के लिए प्रेरित भी किया।

गोपाल चतुर्वेदी का निधन साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति है


लखनऊ। जाने माने साहित्यकार उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिंदी जगत के लिए बहुत दुखद समाचार है ,कि साहित्य के गौरव व्यंगकार गोपाल चतुर्वेदी का आज. प्रात:काल निधन हो गया है। उनकी पत्नी श्रीमती निशा चतुर्वेदी का निधन कुछ दिन पूर्व हुआ था तब से ही उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति ठीक नहीं रह रही थी। और इस दुख को वह सहन नहीं कर सके और इस संसार से विदा हो गए। जो लोग उन्हें करीब से जानते हैं उनको पता है कि वे दोनों एक दूसरे पर किस सीमा तक अन्योन्याश्रित थे।
वे जीवन भर परस्पर प्रेम के बंधन में बंधें हुए साथ-साथ रहे और साथ-साथ इस संसार से विदा हुए। दोनों ही लोग सच कहें तो लखनऊ के सामाजिक जीवन की शान थे। और लखनऊ की संस्कृति सभ्यता और लखनऊ की शराफत, सदाकत ,मेजबानी के प्रतीक भी थे ,संरक्षक भी थे और संवाहक भी थे । उनसे मिलने के बाद यह नामुमकिन था की कोई आदमी उनसे मिल कर प्रसन्न न लौटा हो । प्रिय गोपाल जी और निशा जी दोनों ही अखिल भारतीय सेवाओं में बड़े-बड़े पदों पर सम्मान सहित कार्यरत रह चुके थे। और उनके पास साहित्य राजनीति के कभी न चुकने वाले अनेक संस्मरण ऐसे थे जो ज्ञानवर्धक और मनमोहक हुआ करते थे । अजातशत्रु गोपाल जी के चेहरे पर एक मुस्कान हमेशा खेलती रहती थी जो सबका हृदय जीतने में सफल होती थी। लखनऊ के सामाजिक जीवन में यह अपूर्णनीय क्षति हुई है। परमपिता परमेश्वर दोनों की आत्माओं को शांत प्रदान करें और उनके परिवार के सदस्यों को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें ।

अपने मनमोहक व्यक्तित्व से सबका दिल जीत लेते थे : राजेश अरोरा:
शहर के जानमाने साहित्यकार राजेश अरोरा शलभ ने गोपाल चतुर्वेदी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया, और कहा कि गोपाल जी के निधन से साहित्य जगत को बड़ी क्षति हुई है। आगे राजेश ने कहा हमारी 45 वर्ष पुरानी संस्था बिम्ब कला केंद्र में सन 2008 में बिम्ब में पद्मश्री के.पी सक्सेना जी जो उस समय बिम्ब के मुख्य संरक्षक थे के जन्मदिन के अवसर पर गोपाल चतुर्वेदी जी पहली बार आए थे और अपने मनमोहक व्यक्तित्व से सबका दिल जीत लिया था। गोपालजी कार्यक्रम के व्यवस्थित आयोजन से बहुत प्रभावित थे ।
कुछ ही दिनों बाद उन्होंने मुझे अपने घर पर बुला लिया। मेरे साथ हमारे साहित्यकार मित्र श्याम मिश्र भी उनके निवास पर गये थे। चाय और कार्यक्रम की कुछ बातचीत के बाद मैंने दबी जुबान से उनसे पूछा ,सर क्या आप बिम्ब के प्रमुख संरक्षक पद पर आकर हम सबको अनुग्रहीत करेंगे? उन्होंने बिना देर लगाये अपनी स्वीकृत दे दी और कहा, जहाँ के.पी. मुख्य संरक्षक हों, वहां मुझे क्या एतराज हो सकता है? तबसे बिम्ब के हर कार्यक्रम में अपना स्नेह और आशीर्वाद लुटाते रहे। के.पी.सर के जाने के बाद वे संस्था के मुख्य संरक्षक हो गए। तब वे बिम्ब कला केन्द्र से और अधिक गहनता से जुड़ गए। राजेश अरोरा ने कहा कि उनके जाने के समाचार से मैं हतप्रभ, स्तब्ध और भावुक हूं। उनके साथ निशा जी का भी ममतामयी स्नेह भी हमें मिलता रहा। अभी दो दिन पहले ही उनकी शोक सभा में बताया गया कि उनकी तबियत ठीक नहीं । वैकुण्ठ धाम में उनसे अंतिम मुलाकात कार्यक्रम में बैठकर चलते- चलते हुई थी। मैंने कहा, मैं जल्द ही आपसे मिलूंगा। पता नहीं था कि अब कभी मुलाकात नहीं हो सकेगी।

एक युग का अवसान : विद्या बिन्द ू सिंह


साहित्यकार विद्या बिन्दू सिंह ने कहा कि गोपाल चतुर्वेदी का जाना केवल एक व्यक्ति का निधन नहीं, बल्कि एक युग के अवसान जैसा है। वे साहित्य में संवेदना और विवेक के प्रतिनिधि थे। उनकी लेखनी ने न केवल व्यंग्य को सशक्त किया, बल्कि हिंदी साहित्य को जन-सरोकारों से जोड़ने का कार्य किया। उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी। निशा और गोपाल चतुर्वेदी की जोड़ी ने अपने-अपने क्षेत्र में जो अमिट छाप छोड़ी है, वह सदैव स्मरणीय रहेगी।

RELATED ARTICLES

द्वापर के युग के अजेय योद्धा सात्यकि की कहानी दुनिया के सामने आयी

दुष्यंत प्रताप सिंह की पौराणिक कृति सात्यकि द्वापर का अजेय योद्धा का विमोचनलखनऊ। बॉलीवुड के फिल्म निर्देशक एवं लेखक दुष्यंत प्रताप सिंह की पौराणिक...

1857 की गदर पर आधारित होगा बेगम हजरत महल उर्दू ड्रामा

कलाकारों की मौजूदगी में हुआ पोस्टर लांच30 जुलाई को संत गाडगे प्रेक्षागृह मंचित होगा नाटक लखनऊ। अवध की मिट्टी में पैदा हुई एक शेरनी बेगम...

रचनात्मक लोगों के लिए रंगों और संस्कृति का संगम

फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी द्वारा सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यशालाओं की शुरूआत टाई एंड डाई की पारंपरिक विधियाँ सिखाने पर केंद्रित पांच दिवसीय...