संतान की दीघार्यु के लिए विधि विधान से पूजे गए गौरी पुत्र गणेश

पूजा के बाद महिलाओं ने कथा सुनाई

लखनऊ। संतान की लम्बी आयु के लिये किया जाने वाला सकट चौथ का व्रत माताओं ने शुक्रवार को रखा। यह त्यौहार हर वर्ष माघ के कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत रखा। शाम को चन्द्रोदय के समय तिल, गुड़ आदि का अर्ध्य चन्द्रमा को दिया।
पूजन मे तिल को भूनकर गुड़ के साथ तिलकुट का पहाड़ बनाया गया। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया गया। उसकी पूजा करके घर के कोई बच्चे से तिलकुट बकरे की गर्दन काटी गई। बाद में वही सबको उसका प्रसाद के रुप में दिया गया। पूजा के बाद महिलाओं ने कथा सुनाई। इस व्रत में महिलाओं ने संकट हरण गणपति गणेशजी का पूजन किया। पूजा में दूर्वा, शमी पत्र, बेल पत्र, गुड़ और तिल के लडडू चढ़ाये। पं. बिन्द्रेस दुबे ने बताया कि यह व्रत संतान के जीवन में विध्न बाधाओं को दूर करता है संकटों तथा दु:खों को दूर करने वाला और रिद्धि-सिद्धि देने वाला है। प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं भी इस व्रत के करने से पूरी हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस बार सकट चौथ शुभ योग में सम्पन्न हुई हैं। जो शुभ फल देने वाला है। माताएं इस व्रत का नियमपूर्वक पालन कर शाम को चंद्र दर्शन के बाद पूजन-अर्चन करती हैं तो उनके पुत्रों को दीघार्यु के साथ धन-धान्य से संपन्नता मिलती है। इसके अलावा कभी भी उनके जीवन में बाधाएं नहीं आती। शाम को महिलाओं ने तिल-गुड़, शकरकंद, रामदाना, सिंघाड़े के आटे आदि से तरह-तरह के पकवान बनाए। इसके बाद शाम को चतुर्थी के चांद का दर्शन कर सकट महरानी की काले तिल-गुड़ से बने पहाड़, सुपारी, अमरूद आदि फलों को रखकर पूजन-अर्चन किया। पूजन के बाद महिलाओं ने देर रात फलाहारी पकवान रूपी प्रसाद को ग्रहण कर व्रत समाप्त किया। पर्व को लेकर महिलाओं के साथ-साथ बच्चों में भी काफी उत्साह देखने को मिला।

संतान के लिए श्रेष्ठ व्रत है सकट चौथ
अनेक नामों से जाने जाने वाली यह चतुर्थी अत्यंत शुभदायक मानी जाती है। चतुर्थी का शुभ पर्व भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आने वाले समस्त प्रकार के कष्टों को दूर करने में मदद मिलती है। चौथ का व्रत जीवन में सुख समृद्धि लाता है। इस व्रत को संतान के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

शहर के मंदिरों में उमड़ी भीड़

राजधानी लखनऊ के मंदिरों में महिलाओं की भारी भीड़ दर्शन को उमड़ पड़ी तो घर-घर में एक दंत दयावंत चार भुजाधारी की स्तुति की गई। माताओं द्वारा रखा जाने वाला यह व्रत बच्चों की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी दूर करने वाला माना गया है। संतान पर भगवान गणेश की कृपा और आशीष बना रहता है। इस क्रम में संकट चौथ पर माताओं ने अपने बच्चों के लिए व्रत रखा। दूसरी तरफ भविष्यपुराण में ऐसा कहा गया है कि मनुष्य जब-जब भारी संकट में हो और खुद को संकटों और मुसीबतों से घिरा महसूस करे या निकट भविष्य में किसी अनिष्ट की आशंका हो तो उसे संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहिये। इससे इस लोक और परलोक में सुख मिलता है। इस व्रत को करने से व्रती के समस्त कष्ट दूर हो जाते है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से विद्यार्थी को विद्या और रोगी को आरोग्यता की प्राप्ति भी होती है। संकट चौथ पर मिट्टी से गणेश जी बनाकर पूजा किया गया। गणेश जी को पीला वस्त्र पहनाया गया और शाम को चंद्रमा को जल देकर व्रत सम्पन्न किया। व्रतियों ने भगवान गणेश को तिल, गुड़, गन्ना, फल आदि का भोग लगाकर परिवारीजनों में प्रसाद वितरित किया।

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