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जीवंत परम्परा है लोक संस्कृति : पद्मश्री विद्या विन्दु सिंह

लोक विमर्श संग सांस्कृतिक विभूतियां सम्मानित

लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय लोक विमर्श कार्यक्रम गहन परिचर्चा और सांस्कृतिक विभूतियों के अलंकरण के साथ सम्पन्न हुआ। शुक्रवार को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में आयोजित विमर्श के अंतिम सत्र में वरिष्ठ लोकगायिका श्रीमती नीरा मिश्रा के निर्देशन में 28 कलाकारों ने जन्म संस्कार, विवाह आदि संस्कार गीतों की सामूहिक प्रस्तुतियों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरदार परमिन्दर सिंह ने कहा कि लोक संस्कृति किसी भी समाज की आत्मा होती है। इसके संरक्षण से सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक पहचान और मानवीय मूल्यों की रक्षा संभव है।
कोलकाता से पधारीं लोक साहित्य अध्येता डॉ. कल्पना दीक्षित ने संस्कार से जुड़े लोकाचारों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पारंपरिक गीत, रस्में, लोक प्रतीक और सामूहिक अनुष्ठान केवल सामाजिक क्रियाएँ नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित सांस्कृतिक स्मृति और लोक चेतना की संवाहक हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह ने की। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति अतीत की स्मृति मात्र नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य को दिशा देने वाली जीवंत परंपरा है जिसे संरक्षण के साथ सम्मान भी आवश्यक है।

सांस्कृतिक विभूतियों का अलंकरण :

लोक संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान देने वाली विभूतियों को विभिन्न स्मृति सम्मानों से अलंकृत किया गया। सम्मानित विभूतियों में पद्मा गिडवानी एवं विमल पन्त को दीर्घकालीन सांगीतिक योगदान हेतु लोक रत्न सम्मान, डॉ. पूनम श्रीवास्तव को प्रो. कमला श्रीवास्तव स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, पुष्पलता अग्रवाल को पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीन स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, डॉ. स्मृति त्रिपाठी को आरती पाण्डेय स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, रमा अरुण त्रिवेदी को प्रभा श्रीवास्तव स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, वीना सक्सेना को सावित्री देवी स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, डॉ. कल्पना दीक्षित को रमावती देवी स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, डॉ. रिन्दाना रहस्या को शोभा देवी स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, डॉ. सुशील कुमार राय को सीताराम तिवारी स्मृति लोक संस्कृति सम्मान, अलका प्रमोद को पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह ध्वजवाहक लोक संस्कृति सम्मान तथा राजेन्द्र विश्वकर्मा को डॉ. रामबहादुर मिश्र ध्वजवाहक लोक संस्कृति सम्मान प्रदान किया गया।
लोक संस्कृति शोध संस्थान के अध्यक्ष इंजी. जीतेश श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों, सम्मानित विभूतियों एवं कलाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लोक संस्कृति, संस्कारों और सांस्कृतिक चेतना को समाज के केंद्र में स्थापित करने का एक सशक्त प्रयास है। आयोजन में संस्थान की सचिव डॉ. सुधा द्विवेदी, मुख्य संयोजक अर्चना गुप्ता सहित संस्थान के समस्त पदाधिकारियों एवं सदस्यों की सक्रिय भूमिका रही। काफी संख्या में साहित्यकार, शोधार्थी और लोक कलाकार उपस्थित रहे। इस दौरान वरिष्ठ पखावज वादक डॉ. राज खुशीराम के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखकर भावभीनी श्रद्धांजलि भी दी गई।

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