रांची। आम तौर पर अमेरिकी खिलाड़ी देश में पेशेवर ढांचे के अभाव की शिकायत नहीं करते लेकिन अमेरिकी महिला हॉकी खिलाड़ी अपवाद है जिनके लिये हॉकी स्टिक थामने का मूल मकसद मुफ्त शिक्षा की सुविधा हासिल करना है। भारत में खिलाड़ियों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रदर्शन पर करोड़ों रूपये ईनाम में दिये जाते हैं और इसके अलावा हॉकी का बेहतरीन ढांचा है लेकिन अमेरिका में हॉकी पेशेवर खेल भी नहीं है।
अमेरिका में हॉकी खेलने वालों को कॉलेज में स्कॉलरशिप मिलती है। यहां एफआईएच ओलंपिक क्वालीफायर खेल रही अमेरिकी महिला हॉकी टीम में स्टानफोर्ड यूनिवर्सिटी से एक मैकनिकल इंजीनियर भी है। यह खिलाड़ी अमेरिका की गोलकीपर केसले बिंग है। कप्तान अमांडा गोलिनी ने पीटीआई से कहा , अमेरिका में हॉकी उतना लोकप्रिय नहीं है। हम अपने कॉलेजों के लिये खेलते हैं लेकिन उसके बाद कोई पेशेवर ढांचा नहीं है। हम देश में हॉकी के विकास की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, हमारी कुछ खिलाड़ी सोशल मीडिया प्रबंधन में काम करती हैं तो हमारी गोलकीपर एयरोस्पेस इंजीनियर है। कॉलेज हमें हॉकी खेलने के लिये स्कॉलरशिप देता है जिससे मुफ्त शिक्षा मिल जाती है और हम दूसरे कैरियर में आगे बढ सकते हैं। अमेरिकी महिला हॉकी टीम ने छह ओलंपिक खेले हैं और 1984 में लॉस एंजीलिस में कांस्य पदक जीता। विश्व कप में अमेरिकी महिला टीम नौ बार उतरी और 1994 में कांस्य पदक जीता।
अमेरिका के कोच डेविड पासमोर ने कहा, अमेरिका में क्लब कल्चर नहीं है। कॉलेज से निकलने के बाद आपके पास हॉकी खेलने के लिये प्लेटफॉर्म ही नहीं है। या तो आप राष्ट्रीय टीम के लिये खेलें या खत्म। जब मैं यूरोप ये यहां पहली बार आया तो भारत में हॉकी का ढांचा देखकर दंग रह गया था।