हरित क्रांति के दौर को छोड़ दिया जाये जब देश में गंभीर खाद्यान्न संकट था, तो उसके बाद शायद ही कभी हमारे नीति निर्माताओं ने कृषि को मूल्यवान, कमाऊ और रोजगार प्रदाता क्षेत्र के रूप में देखा हो। नब्बे के दशक में जब आर्थिक सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाया गया तो कृषि को लेकर ऐसी भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित की गयीं मानो यह एक बोझ हो जिसे छूट, सब्सिडी, अनुदान आदि का ऑक्सीजन देकर ढोते रहने की मजबूरी हो। अगर देश की बढ़ती जनसंख्या लगातार कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार के सामने गंभीर चुनौती न प्रस्तुत करती, तो सरकारें कृषि का नाम लेना भी पसंद नहीं करतीं।
लेकिन बढ़ती खाद्यान्न जरूरतें और कृषि व किसानों से जुड़ा बड़ा वोट बैंक जो सरकार बनाने-गिराने के लिए पर्याप्त है, ये दो ऐसे फैक्टर थे जो सरकारों को मजबूरी में कृषि विकास और किसान कल्याण का शोर-शराबा करने पर मजबूत करते थे। इसी मजबूरी में गाहे-बगाहे सरकारें कुछ छूट, कुछ सब्सिडी और कुछ निवेश खेती में भी कर देती थीं।
लेकिन कृषि लाभप्रद व्यवसाय बन सकता है या सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता क्षेत्र है, इस नजरिये से देखा जाये और इसमें निवेश किया जाये, ऐसी मंशा बहुत कम देखने को मिली है। लेकि न जिस तरह से संकट के दौर में खेती और हमारे किसानों ने देश को संभालने का काम किया है, उससे एक बार फिर कृषि एवं प्राथमिक क्षेत्र की अन्तनिर्हित क्षमता प्रदर्शित हुई है।
बीते साल नवम्बर-दिसम्बर में जब चीन में कोरोना महामारी ने दस्तक दी और जनवरी 2020 तक यह पूर्वी एशिया और यूरोप में पहुंचने लगा तो दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट की भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी थी। जैसे-जैसे कोरोना बढ़ा तो वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार एवं निर्यात कारोबार में भी भारी गिरावट होने भी लगी। अब जो अनुमान सामने आ रहे हैं उसमें ग्लोबल जीडीपी के पांच-सात ट्रिलियन तक सिकुड़ने की बात कही जा रही है।
इससे सबसे अधिक निर्यात कारोबार प्रभावित हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इस भयानक संकट के बावजूद जिस तरह कृषि क्षेत्र के उत्पादन और निर्यात में चौतरफा हरियाली देखने को मिल रही है, वह न सिर्फ देशवासियों के लिए बड़ी उम्मीद और हर्ष का विषय है बल्कि किसानों की मेहनत और उनको प्रोत्साहित करने वाली सरकारी नीतियों की भी तारीफ करनी होगी।
कोरोना काल में कृषि उत्पादन तो बढ़ा ही है लेकिन चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही में जब जीडीपी में भारी गिरावट का अनुमान है, तब कृषि क्षेत्र का निर्यात अपै्रल से सितम्बर के बीच की प्रथम छमाही में 43.4 फीसद बढ़ना हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही सुखद एवं गुलाबी तस्वीर है। बीते साल इसी अवधि में 37397 हजार करोड़ का निर्यात कृषि क्षेत्र से हुआ था तो इस साल बढ़कर 53626 हजार करोड़ रुपये पहुंच गया है।
कृषि क्षेत्र के निर्यात में इस भारी उछाल के कारण करीब डेढ़ दशक बाद भारत में टेÑड सरप्लस की स्थिति बनी है और इस साल की प्रथम छमाही में देश को आयात-निर्यात व्यापार में 9002 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। टेÑड सरप्लस किसी देश के लिए वह स्थिति है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वह लाभ कमाता है। गौरतलब है कि देश को हमेशा अंतर्राष्ट्रीय व्यपार में घाटा ही हुआ है। बीते दो दशकों में यह दूसरा मौका है जब ग्लोबल टेÑड में भारत लाभ में है और यह लाभ कृषि के उम्दा प्रदर्शन के कारण संभव हुआ है।