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डॉ भारतेंदु का लेखन बहुआयामी रहा है : डॉ विद्या विंदु सिंह

अवधी भाषा में लिखी कृति ‘भाखा की गठरी’ का लोकार्पण
लखनऊ। आज प्रेस क्लब, उत्तर प्रदेश, लखनऊ में अवधी लोक भाषा में प्रकाशित पत्रिका ‘खरखइंचा’ का लोकार्पण किया गया। यह पत्रिका अवधी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ भारतेंदु मिश्र पर केंद्रित है। इस अवसर पर डॉ भारतेंद्र मिश्र की अवधी भाषा में लिखी कृति ‘भाखा की गठरी’ का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि भारतेंदु जी की साहित्यिक उपलब्धियां बहुत अधिक है। वे संस्कृत और हिंदी के विद्वान साहित्यकार रहे हैं, साथ ही अवधी भाषा के संवर्धन हेतु उन्होंने बहुत काम किया। चाहे गद्य हो या कविता, निबंध हो, उपन्यास हो उन्होंने सभी विधाओं पर लेखनी चलाई। इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों के लिए भी प्रेरक साहित्य रचा। आज वे हमारे बीच सशरीर तो नहीं है, परंतु वे अपने कार्य एवं व्यवहार के कारण हमेशा बने रहेंगे। इस कार्यक्रम के आयोजन की भूमिका उन्होंने खुद बनाई थी परंतु विडंबना देखिए कि इस अवसर पर हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं। मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ विद्या विंदु सिंह ने कहा कि डॉ भारतेंदु जी का लेखन बहुआयामी रहा है। बहुत ही सरल और मृदु भाषी थे परंतु गलत के खिलाफ कहने और लिखने में कभी संकोच नहीं किया। अवधी भाषा के लिए उन्होंने बहुत काम किया। शैलेन्द्र ने उन पर केंद्रित पत्रिका खरखइंचा निकाल कर उनके साहित्य को एक जगह सुव्यवस्थित कर दिया है। हम उनकी सराहना करते हैं। भारतेंदु जी को श्रद्धांजलि देते हैं। मन बहुत व्यथित है, इससे जादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।
मुख्य वक्ता डॉ शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने अपने विचार कुछ यूं रखे डॉ. भारतेन्द्र मिश्र अपने मूल अध्ययन-अध्यापन के अनुशासन संस्कृत भाषा साहित्य के क्षेत्र में अपने रचनात्मक दायित्वों का निर्वहन करते हुए हिन्दी भाषा एवं अवधी भाषा और साहित्य के लिए समर्पित रहे हैं। अवधी भाषा एवं साहित्य की मानवता के लिए बड़ी संवेदनशीलता से मिश्र जी प्रयास करते रहे हैं। अवधी गद्य की कई नई विधाओं का प्रारम्भ कर आपने अवधी भाषा के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। एक लम्बी बीमारी से लड़ते हुए अवधी भाषा एवं साहित्य के समक्ष आने वाली समकालीन चुनौतियों से भी भारतेंदु दद्दा लड़ते रहे हैं। सच्चे अर्थों में वे अवधी गद्य के विकास के भारतेंदु के रूप में याद किए जाएंगे। उन्होंने अवधी गद्य को सर्वथा आधुनिक संदर्भों के साथ जोड़ा हैं, उनके उपन्यासों में बदलते गांवों की तस्वीर दिखाई देती है। विरले साहित्यकार ही समय की आवाज सुनकर सृजन करते हैं, भारतेंदु जी इसी श्रेणी के साहित्यकार हैं। उनका चंदावती उपन्यास सहित अनेक रचनाएं रचनाएं अवधी विश्वविद्यालय एवं देवी पाटेश्वरी विश्वविद्यालय बलरामपुर में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में चयनित की गई है।
खरखइंचा के संपादक डॉ शैलेन्द्र कुमार शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा, भारतेन्दु मिश्र अवधी के एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने न केवल अवधी काव्य विविधता को नये आयाम दिए बल्कि अवधी गद्य को पहली बार साहित्य में प्रतिष्ठा दिलायी। वे सच्चे अर्थों में अवधी गद्य के पढ़ीस थे। पढ़ीस जी ने जो काम कविता में किया उसे भारतेन्दु मिश्र ने गद्य के जीवन संग्राम तक विस्तार दिया। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, आलोचना एवं आत्मकथा इत्यादि अवधी में लिख कर कई विधाओं को अवधी में एक प्रस्थान विंदु दिया। उनके निधन से अवधी की अपूर्णीय क्षति हुई है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ज्ञापित करते हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में परिजन एवं साहित्यगण उपस्थित रहे व अपने विचार व्यक्त किए तथा भारतेंदु को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन नवीन शुक्ल नवीन’, स्वागत भाषण इं. सुनील कुमार वाजपेयी ने, भारतेन्दु जी की कविताओं का पाठ रंचना मिश्र एवं मंजुल मयंक मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में भारतेन्दु जी के परिवार के सदस्य एवं उनके मित्र भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थी एवं आवारा नवीन जी ने किया। कार्यक्रम में लखनऊ नगर के लगभग सभी साहित्यकार उपस्थित रहे।

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