जिस तरह प्रत्येक धर्म में सुबह की प्रार्थना के अलग-अलग तरीके बताए गए हैं, उसी तरह प्रत्येक धर्म में शाम की प्रार्थना के भी अलग अलग तरीके हैं। लेकिन इन सबका उद्देश्य एक ही है। लोगों को नैतिक,चरित्रवान तथा अच्छा इंसान बनाने की कोशिश। हिन्दू धर्म में शाम की इस ईश्वरीय प्रार्थना को संध्या वंदन कहा गया है। जिस तरह मुस्लिम शाम की स्पेशल नमाज पढ़ते हैं, ईसाई प्रार्थना करते हैं, उसी तरह हिन्दू संध्या वंदन करते हैं। संध्या वंदन करने से मन शांत हो जाता है और हृदय निर्मल।
संध्या वंदन से न सिर्फ सकारात्मक भावना बल्कि सकारात्मक ऊर्जा भी हासिल होती है। संध्या वंदन को हिंदू कर्तव्यों में सर्वोपरी स्थान दिया गया है। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता और अन्य धर्मग्रंथों में संध्या वंदन की महिमा और महत्व का वर्णन किया गया है। संध्या वंदन प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। कृतज्ञता से सकारात्मकता का विकास होता है।
सकारात्मकता से मनोकामना की पूर्ति होती है और सभी तरह के रोग तथा शोक मिट जाते हैं। बहुत लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि जब हर पल, हर घड़ी पर परमपिता पमेश्वर की मौजूदगी है,तो फिर किसी समय विशेष को अलग से अतिरिक्त महत्व देने का क्या मतलब है। लेकिन ऐसा नहीं है। दिन के 24 घंटे हैं और हर एक घंटे का ही नहीं बल्कि हर एक मिनट का अपना निजी वैज्ञानिक महत्व है। इसीलिए समय को कई ईकाईयों में बांटा गया है।
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक दिन और रात के 24 घंटे में 8 प्रहर होते है। हर प्रहर का अपना अलग सांस्कृतिक और ज्योतिषीय महत्व है। एक प्रहर औसतन तीन घंटे या साढ़े सात घड़ी का होता है। इसमें जिसमें दो मुहूर्त होते हैं। चौबीस घंटों के ये 8 प्रहर इस तरह से हैं। दिन के चार प्रहर-1.पूर्वान्ह, 2.मध्यान्ह, 3.अपरान्ह और 4.सायंकाल। इसी क्रम में रात के चार प्रहर हैं – 5.प्रदोष, 6.निशिथ, 7.त्रियामा एवं 8.उषा। रात के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल भी कहते हैं। इसकी समयावधि शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक होती है। वास्तव में संध्या इसी प्रहर में की जाती है।
यह प्रहर में सतोगुण की प्रधानता रहती है। इस प्रहर में किसी भी प्रकार के तामसिक कार्य करना वर्जित है। क्रोध, कलह और बहस करना वर्जित है। इस प्रहर में भोजन करना और सोना भी वर्जित होता है। इस प्रहर में पूजा, प्रार्थना, संध्या वंदन, ध्यान आदि करने से बहुत लाभ मिलता है। इस समय में घर के पूजा के स्थान पर घी का या तिल के तेल का दीपक जलाना अच्छा रहता है। संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। याद रखें संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पाँच वक्त (समय) की होती है, लेकिन प्रात: काल और संध्या काल- उक्त दो समय की संधि प्रमुख है अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समशांति के लिए करें संध्या वंदनय।